दार्जिलिंग : करीब तीन दशक में यह पहली बार है जब अलग गोरखालैंड राज्य की मांग दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में कोई चुनावी मुद्दा नहीं है. स्थानीय पार्टी जीजेएम और जीएनएलएफ समेत अन्य दल क्षेत्र में विकास और लोकतंत्र की बहाली पर जोर दे रहे हैं. साल 1986 में गोरखालैंड आंदोलन की शुरुआत से लेकर अब तक कई बार दार्जिलिंग पर्वतीय क्षेत्र में अलग राज्य की मांग और संविधान की छठी अनुसूची को लागू करना बड़े चुनावी मुद्दे रहे हैं.
इस बार विपक्षी दलों तृणमूल कांग्रेस, भाजपा, जीजेएम और जीएनएलएफ के लिए अलग राज्य की मांग कोई मुद्दा नहीं है. जीजेएम और जीएनएलएफ चुनावी मैदान में नहीं हैं लेकिन फिर भी वे दार्जिलिंग लोकसभा सीट पर निर्णायक भूमिका में हैं.
गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएम) के पूर्व विधायक एवं इस सीट से तृणमूल कांग्रेस उम्मीदवार अमर सिंह राय ने कहा, ‘‘इस बार अलग राज्य का दर्जा हमारे लिए मुद्दा नहीं है. हम पहाड़ी क्षेत्र के पूर्ण विकास पर जोर दे रहे हैं, जिससे वह वर्षों तक वंचित रहा है.”
इस क्षेत्र में 2017 में 104 दिन लंबी चली हड़ताल के दौरान गोरखालैंड के कट्टर समर्थक रहे राय ने कहा, ‘‘हमारा एजेंडा विकास का है. पिछले 10 साल में भाजपा सांसद ने पहाड़ी क्षेत्र के लोगों के लिए कुछ नहीं किया.”
रिष्ठ टीएमसी नेता एवं मंत्री गौतम देब का मानना है कि अलग राज्य के दर्जे की मांग ने पहाड़ी क्षेत्र में काफी खूनखराबा मचाया जबकि विकास गौण मुद्दा रहा. उन्होंने कहा कि इस बार वह क्षेत्र के लोगों के विकास के लिए लड़ रहे हैं. जीजेएम के बिमल गुरुंग धड़े के कार्यकारी अध्यक्ष लोकसांग लामा ने भी ऐसी ही राय व्यक्त की.
उन्होंने कहा, ‘‘हम पहाड़ी क्षेत्र में समस्याओं का राजनीतिक समाधान चाहते हैं.”
दार्जीलिंग ने भाजपा नेता जसवंत सिंह और सुरिंदर सिंह अहलूवालिया को क्रमश: 2009 और 2014 में संसद भेजा था. इस बार लड़ाई तृणमूल और भाजपा के बीच मानी जा रही है. तृणमूल को बिनय तमांग के नेतृत्व वाले जीजेएम और भाजपा को बिमल गुरुंग के नेतृत्व वाले जीजेएम और जीएनएलएफ का समर्थन हासिल है.