कोलकाता : पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे एक व्यक्ति को 12 वर्ष बाद कलकत्ता हाइकोर्ट ने बेकसूर करार देते हुए रिहा करने का निर्देश दिया. न्यायाधीश जयमाल्य बागची व न्यायाधीश मनोजीत मंडल की खंडपीठ ने मंगलवार को हावड़ा के उलबेड़िया के गड़चुमुक निवासी कमलेश पोल्ले नामक व्यक्ति को जेल से रिहा करने का निर्देश दिया.
कमलेश की वकील तथा ‘एमिकस क्यूरी’ (अदालत बांधव) काकली चट्टोपाध्याय ने बताया कि 2007 में छह अप्रैल को शंपा पोल्ले की हत्या हुई थी. शंपा के पिता मनोरंजन माइती ने उलबेड़िया थाने में अपने दामाद कमलेश के खिलाफ शिकायत दर्ज करायी थी.
शंपा तड़के शौच के लिए घर से निकली थी. उस समय उसकी हत्या की गयी थी. हत्या के वक्त शंपा गर्भवती थी. पुलिस ने चार दिन बाद कमलेश को गिरफ्तार कर लिया. कमलेश के जेल में रहने के दौरान ही अदालत में हत्या का मामला चलता रहा. वर्ष 2013 में 25 मार्च को उलबेड़िया अदालत ने पत्नी की हत्या का दोषी करार देते हुए कमलेश को आजीवन कारावास की सजा सुनायी.
कुछ दिन बाद इस निर्देश के खिलाफ कमलेश ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की. मामले की सुनवाई में कमलेश की वकील ने अदालत में बताया था कि शंपा की दो बहनें मुख्य गवाह थीं. पुलिस को उन्होंने बताया था कि उनके सामने ही कमलेश ने उनकी बहन की धारदार हथियार से हत्या कर उसे तालाब में धक्का दे दिया था.
निचली अदालत में उन्होंने गवाही के दौरान कहा था कि हत्या को देखने के बाद घर आकर वह दोनों फिर सो गयी थीं. दोनों बहनों का यह व्यवहार असामान्य है. अन्य गवाहों का बयान भी विश्वसनीय नहीं था. किस वक्त शंपा की हत्या हुई, इस बाबत भी गवाहों ने अलग-अलग बयान दिये थे.
कमलेश के वकील का कहना था कि हत्या के एक दिन पहले कमलेश अपनी पत्नी को लेकर ससुराल के लोगों के साथ गांव में कीर्तन सुनने गया था. पुलिस के हाथ ऐसा कोई सबूत नहीं लगा, जिससे यह पता चलता है कि पति-पत्नी में कोई झगड़ा था. हत्या के उद्देश्य को लेकर भी पुलिस कोई सटीक कारण पेश नहीं कर सकी थी.