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पश्चिम बंगाल : 101 साल के रनिंद्रनाथ सिन्‍हा को आज भी बेसब्री से रहता है आम चुनाव का इंतजार

– आजाद भारत के पहले चुनाव में किया था मतदान – 28 अप्रैल को मनायेंगे अपनी 101वीं वर्षगांठ – ‘नोटा’ से होती है बहुमूल्य मतों की बर्बादी शिव कुमार राउत, कोलकाता देश की आजादी में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आजादी के साक्षी बने रनिंद्रनाथ सिन्हा लाइफ लाइन के पिच पर सौ रन पूरे करके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 15, 2019 10:41 PM

– आजाद भारत के पहले चुनाव में किया था मतदान

– 28 अप्रैल को मनायेंगे अपनी 101वीं वर्षगांठ

– ‘नोटा’ से होती है बहुमूल्य मतों की बर्बादी

शिव कुमार राउत, कोलकाता

देश की आजादी में अपनी महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाने वाले आजादी के साक्षी बने रनिंद्रनाथ सिन्हा लाइफ लाइन के पिच पर सौ रन पूरे करके पुरजोश डटे हुए हैं. आगामी 28 अप्रैल को वह 101 साल के हो जायेंगे. गौरतलब है कि हावड़ा उत्तर लोकसभा केंद्र के 10 नंबर वार्ड स्थित सीता नाथ बोस लेन के रहनेवाले स्वतंत्रता सेनानी श्री सिन्हा का जन्म अप्रैल 1919 में हुआ था. उन्होंने देश में 1951-52 में हुए प्रथम आम चुनाव में 30 साल की उम्र में पहली बार मतदान किया था.

इस साल हो रहे 17वीं लोकसभा के चुनाव में अगामी 6 मई को वह 101 साल के उम्र में अपना मतदान करेंगे. इस बात से खासे उत्साहित रनिंद्रनाथ कहते हैं कि मैं अंतिम सांस तक मतदान करूंगा. इतिहास गवाह है कि हमने इस दिन के लिए एक बड़ी लड़ाई लड़ी है. चुनाव देश के शासन में सबकी साझेदारी का प्रतीक है. इसलिए सभी को मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेना चाहिए. आखिरकार मतदान से ही तो देश की नियति तय होती है. हम सबका का जीवन सुचारू रूप से चलता है.

ओछी राजनीति कर रहे हैं आज के राजनेता

उम्र के इस दौर में भी देश व राजनीति की दशा व दिशा के चिंतन-मनन में जुटे श्री सिन्हा बेबाकी से कहते हैं, ‘आज राजनीति का स्तर बहुत ही गिर गया है. साम-दाम-दंड-भेद आज की राजनीति का आदर्श वाक्य बन गया है. मैंने तो वह दौर देखा है जब दो अगल विचारधारा के लोग भी वैचारिक रूप से असहमति के बाद भी एक-दूसरे को नीचा नहीं दिखाते थे. अपनी बात को पूरी मर्यादा से कहते थे.

गांधी, तिलक से लेकर सुभाश चंद्र बोस जी को मैंने खासे नजदीक से देखा और समझा तो मुझे पता चला कि वाकई राजनीति एक जज्बा होता है. जिसमें स्वार्थपरता के लिए दूर-दूर तक कोईं जगह नहीं. पर अफसोस आज राजनीति स्वार्थ का तकाजा बन गया है और व्यंग्य व तीखे बयान राजनीति के पर्याय.

सीएम ममता की राजनीति के बड़े प्रशंसक

रनिंद्रनाथ कहते हैं कि जमीन से उठकर जनता के लिए जीनेवाली पश्चिम बंगाल की तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी में वह जोश व जज्बा नजर आता है, जो आज की दिशाहीन राजनीति को एक नई राह दिखा सकता है. वह कहते हैं कि गत वर्ष अपने 100 वें जन्मदिवस पर मैं तृणमूल उम्मीदवार प्रसून बनर्जी से मिला था. मेरी यह दिली इच्छा है कि अंतिम सांस लेने से पहले एक बार ममता बनर्जी से मिलूं.

सेहत के भी धनी, बिना चश्में के पढ़ते हैं अखबार

100 साल के रनिंद्रनाथ सेहत के भी धनी हैं. वह आज भी बिना चश्में के अखबार पढ़ते हैं. हालांकि कुछ बातें उन्हें याद नहीं रह पाती हैं. पर शारीरिक रूप से वह पूरी तरह फिट हैं. वह कहते हैं कि मेरी सेहत का राज है प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकर चलना. ना कि सफलता के नाम पर अपने स्वास्थ्य को दांव पर लगा देना. नयी पीढ़ी जितनी जल्दी इस बात को समझ लें वह बेहतर है.

विविधता की संस्कृति को चोट पहुंचाता ‘नोटा’

चुनाव पांच साल में एक बार होता है. विभिन्न विचाधारा व दल के लोग इसमें खड़े होते हैं. भारत तो विविधता का देश रहा है. ऐसे में ‘नोटा’ यानि ‘नन ऑफ द एबब’ का विकल्प देश की विविधता की संस्कृति पर चोट पहुंचाता है. इसलिए जरूरी है कि मतदाता वोट की कीमत को समझें. चुनाव के लिए खड़े सभी उम्मीदवारों को समझते-बूझते हुए किसी एक को जरूर अपना वोट दें. ना कि नोटा दबाएं

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