लोकसभा चुनाव से पहले छलका नंदीग्राम के पीड़ित का दर्द, तृणमूल ने सत्ता हासिल करने के लिए हमें इस्तेमाल किया
नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल) : तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा दी गयी सरकारी नौकरी और वित्तीय मुआवजा उन लोगों के परिजनों के जख्मों पर मरहम लगाने में नाकाम रहा है, जिन्होंने 2007 में नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान पुलिस गोलीबारी में जान गंवायी थी, क्योंकि एक दर्जन से अधिक परिवार अभी भी अपराधियों पर […]
नंदीग्राम (पश्चिम बंगाल) : तृणमूल कांग्रेस सरकार द्वारा दी गयी सरकारी नौकरी और वित्तीय मुआवजा उन लोगों के परिजनों के जख्मों पर मरहम लगाने में नाकाम रहा है, जिन्होंने 2007 में नंदीग्राम में भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन के दौरान पुलिस गोलीबारी में जान गंवायी थी, क्योंकि एक दर्जन से अधिक परिवार अभी भी अपराधियों पर मामला दर्ज किये जाने का इंतजार कर रहे हैं. 14 मार्च, 2007 को भूमि अधिग्रहण के खिलाफ प्रदर्शन पर हुई गोलीबारी में 14 व्यक्ति मारे गये थे और इस घटना से देश भर में आक्रोश फैल गया था.
कलकत्ता हाइकोर्ट ने इस मामले में स्वत: संज्ञान लेते हुए सीबीआई जांच का आदेश दिया था. इस घटना ने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया, जिससे 34 साल से चले आ रहे वाम शासन का अंत हो गया और 2011 में पश्चिम बंगाल की सत्ता पर फायरब्रांड नेता ममता बनर्जी के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस काबिज हो गयीं और यहीं से पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी को एक नयी पहचान मिली.
एक दशक से भी अधिक समय के बाद, मृतक के परिजनों ने टीएमसी पर आरोपी पुलिस अधिकारियों को पदोन्नति देने और दोषी माकपा कार्यकर्ताओं को बचाने का आरोप लगाते हुए नाराजगी जतायी. पुलिस द्वारा की गयी गोलीबारी में मारे गये एक स्थानीय व्यक्ति बादल मंडल के बेटे रॉबिन मंडल ने दुख जताते हुए कहा, ‘टीएमसी सरकार ने हमें नौकरी, मुआवजा दिया. परिवार के कुछ सदस्यों को सरकारी नौकरी भी मिल गयी, लेकिन मुआवजा और नौकरी मेरे पिता को वापस नहीं ला सकती. न ही उन्हें मन की शांति मिलेगी.’
पिछले 10 वर्षों से गांव में तृणमूल सरकार द्वारा स्थापित शहीद स्मारक पर प्रतिदिन जाने वाले मंडल ने कहा, ‘न्याय क्या मिल पाया, घटना में शामिल पुलिस अधिकारियों और राजनीतिक नेताओं को क्या अब तक सजा मिली?’ गोलीबारी में मारे गए गोबिंद दास के रिश्ते में भाई बिकास दास के अनुसार, किसी भी वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को दंडित नहीं किया गया और माकपा के कुछ स्थानीय नेता, जो इस कांड के पीछे थे, वे या तो सत्तारूढ़ टीएमसी में शामिल हो गये हैं या मुख्य विपक्षी दल भाजपा में.
दास ने आरोप लगाया कि यह वादा किया गया था कि आरोपी पुलिसकर्मियों पर मुकदमा चलाया जायेगा, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. आरोपी वरिष्ठ पुलिसकर्मियों को छुआ तक नहीं गया, यहां तक कि टीएमसी के सत्ता में आने के बाद उन्हें पदोन्नति भी मिली. उन्होंने कहा, ‘माकपा के वरिष्ठ नेता भी बेखौफ घूम रहे हैं. हमें नहीं पता कि हमें न्याय मिलेगा या नहीं?’ गांव के 14 मृतकों के परिवारों के अधिकांश सदस्यों का भी यही कहना है.
पुलिस की गोलीबारी में जान गंवाने वाले राखल गिरि के एक रिश्तेदार ने कहा, ‘इसने केवल टीएमसी को अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करने में मदद की. सत्ता पाने के बाद उन्होंने न्याय दिलाने को लेकर कुछ नहीं किया.’ गौरतलब है कि तत्कालीन वाम मोर्चा की सरकार के दौरान इंडोनेशिया की कंपनी सलीम समूह की 14,000 एकड़ की रासायनिक हब परियोजना के लिए किये जाने वाले भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जनवरी 2007 में आंदोलन शुरू हुआ, जो खूनी आंदोलन में तब्दील हो गया, जब मार्च में पुलिस गोलीबारी में 14 लोगों की मौत हो गयी थी.
भूमि अधिग्रहण विरोधी आंदोलन पर सवार होकर, तृणमूल कांग्रेस ने बंगाल में 34 साल से चली आ रही वाम मोर्चा सरकार को उखाड़ फेंका था. पूर्वी मिदनापुर जिले में आने वाले नंदीग्राम के आंदोलन और हुगली जिले में आने वाले सिंगूर के आंदोलन को दो स्तंभ माना जाता है, जिसने वर्ष 2011 में बनर्जी के नेतृत्व वाली टीएमसी सरकार की नींव रखी थी. तमलूक लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले, नंदीग्राम में आम चुनाव के छठे चरण के तहत 12 मई को मतदान होना है.