अपनी भावना से किसी को खेलने नहीं दें, हर परिस्थिति में संतुलन बनाये रखें

भारत चैंबर ऑफ काॅमर्स की परिचर्चा में मनोविज्ञानिकों ने रखी राय कहा : पुरुषों की तुलना में महिलाएं होती हैं ज्यादा संवेदनशील हर स्थिति को अलग नजरिये से देखने की है जरूरत कोलकाता : पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा संवेदनशील होती हैं, तभी वह प्रत्येक परिस्थिति में अपना संतुलन बना लेती हैं. महिला का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 1, 2019 1:57 AM

भारत चैंबर ऑफ काॅमर्स की परिचर्चा में मनोविज्ञानिकों ने रखी राय

कहा : पुरुषों की तुलना में महिलाएं होती हैं ज्यादा संवेदनशील
हर स्थिति को अलग नजरिये से देखने की है जरूरत
कोलकाता : पुरुषों की तुलना में महिलाएं ज्यादा संवेदनशील होती हैं, तभी वह प्रत्येक परिस्थिति में अपना संतुलन बना लेती हैं. महिला का जन्म कहीं और होता है, लेकिन विवाह के बाद वह अपना जीवन कहीं और भी व्यतीत करती हैं. उनके जीवन में यदि कोई समस्या आ भी जाती है, तो ऐसी स्थति में उन्हें हार नहीं माननी चाहिए, वरन उनका पूरे साहस के साथ सामना करना चाहिए.
शुक्रवार को भारत चैंबर ऑफ कामर्स और भाारत चैंबर लेडिज फोरम के संयुक्त तत्वावधान में अायोजित परिचर्चा के दौरान भारत चैंबर ऑफ काॅमर्स के चेयरमैन सीताराम शर्मा ने कहीं. उन्होंने कहा कि आज लोग सबसे ज्यादा मानसिक पीड़ा से ग्रसित हैं. इसका कारण सामाजिक दवाब और सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव है. उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यवस्था में काफी खामी है. इसमें सुधार की जरूरत है, क्योंकि इससे बच्चों को अनावश्यक दवाब बनता है तथा बच्चा सफलता के पीछे भागने के लिए विवश हो जाता है और उसके कई दुष्परिणाम देखने के लिए मिल रहे हैं.
उन्होंने कहा कि आज का छात्र सफलता के पीछे भाग रहा है, जबकि व्यवसायी व्यापार में असफलता नहीं मिले, इसके पीछे भाग रहा है. ग्रे मैटर्स वेलनेस की सीइओ व संस्थापक पिया बनर्जी ने कहा कि कि चाहे महिला हो या पुरुष, दोनों के अच्छे या बुरे भाव, उन्हें बनाता है और बिगाड़ देता है. जैसे कोई व्यक्ति आपकी जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा बन जाये और किसी कारणवश वह आपको छोड़ दे तो आप या तो संभल जायेंगे या टूटकर संभलेंगे. उस पीड़ा से ग्रस्त नही‍ं रहेंगे.
इसलिए व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति को अलग नजरिये से देखना जरूरी है. भारत चैंबर ऑफ कामर्स के सह-अध्यक्ष कुसुम मुसाद्दी ने कहा कि हमारे अस्तित्व की सात परतें हैं. इनमें शरीर और सांस दिखती हैं, लेकिन वहीं दिमाग, यादें, अंहकार, अंदरूनी क्रोध आदि नहीं दिखते और ये सभी आपस में मिल कर भाव बनते हैं. उन्होंने सचेत करते हुए कि अपनी भावना से किसी को खेलने नहीं दें. उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में बहुत दु:ख की बात है कि 15 से 24 वर्ष के युवक-युवतियां आत्महत्या कर रहे हैं. इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि उनमें कितनी हताशा है.

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