महंगा पड़ सकता है बच्चों में नशे की लत को छिपाने की कोशिश
स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे भी अब नशे की गिरफ्त में कोलकाता :नशा समाज के लिए घातक है. हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आये, जिसमें स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों के भी नशे की गिरफ्त में आने की बात पता चली है. जानकारों का मानना है कि कई मामलों में कुछ अभिभावक समाज में उनकी […]
स्कूलों में पढ़नेवाले बच्चे भी अब नशे की गिरफ्त में
कोलकाता :नशा समाज के लिए घातक है. हाल ही में कई ऐसे मामले सामने आये, जिसमें स्कूल में पढ़नेवाले बच्चों के भी नशे की गिरफ्त में आने की बात पता चली है. जानकारों का मानना है कि कई मामलों में कुछ अभिभावक समाज में उनकी प्रतिष्ठा खो न जाये, इस भय से बच्चों में नशे की लत को छिपाने या उस पर पर्दा डालने की कोशिश करते हैं.
कई मामलों में कुछ अभिभावक नशे की बात की अनदेखी भी करते हैं, लेकिन शायद ऐसा करना उनके लिए महंगा पड़ सकता है, क्योंकि नशा के चंगुल में जकड़े व इसके आदी हो चुके बच्चे जब अंतिम चरण में पहुंच जाते हैं तो उनके इलाज में खासी परेशानी होती है. समय रहते यदि बच्चों का इलाज कराया जाये तो स्थिति पहले जैसी सामान्य हो सकती है. बच्चों में नशे की लत के कारण व उससे बचने के उपाय के बारे में मनोचिकित्सक अभिषेक हंस से बात हुई. उन्होंने कई अहम पहलुओं से अवगत कराया.
बच्चों के नशा के आदी होने के कई कारण : बच्चों में नयी चीजों के प्रति जिज्ञासा काफी होती है. वे नयी चीजों को जानने की कोशिश करते हैं. आसपास जब कोई व्यक्ति नशा करता है तो बच्चों को उसके प्रति जिज्ञासा होती है और वे नशा की चंगुल मेें फंस सकते हैं.
मनोचिकित्सक अभिषेक हंस के अनुसार बच्चों में नशा के आदी होने का यह पहला और सबसे महत्वपूर्ण कारण है. कई मामलों में दोस्तों और अपने आसपास के लोगों द्वारा दिये गये दबाव से भी बच्चे नशा करने लगते हैं. जैसे स्कूल में पढ़ने वाला कोई विद्यार्थी नशा का आदी है तो वह अपने साथियों को भी नशा करने के लिए दबाव बनाता है या उकसाता है.
यह बच्चों के लिए सही नहीं है. वर्तमान में सोशल मीडिया का क्रेज है. यह नये लोगों से परिचय करने का एक जरिया भी है. लेकिन गलत लोगों से परिचय होना बच्चों के लिए सही नहीं है. बच्चे सबसे पहले अपने अभिभावकों से सीखते हैं. अभिभावकों को ध्यान रखने की जरूरत है वे अपने बच्चों के सामने नशा ना करें. प्राय: बच्चे अपने अभिभावकों का अनुसरण करते हैं और उनके नशा करने से वे भी नशा के आदी हो सकते हैं. अपनी मानसिक दबाव को कम करने के लिये कई बच्चे नशा को सहारा मानने लगते हैं.
ऐसे में नशा के सामान का जुगाड़ करने के लिए वे गलत कार्य में भी शामिल हो सकते हैं. कई बार अभिभावकों को बच्चों को समय नहीं दे पाना भी उनके नशा के चंगुल में फंसने की वजह बनता है. कई अभिभावकों की व्यस्त दिनचर्या होने की वजह से वे अपने बच्चों की हर जरूरत को पूरा कर देते हैं लेकिन बच्चा क्या करता है, इसका ध्यान नहीं रहता है. बच्चों के स्वाभाव में अचानक परिवर्तन होने पर अभिभावकों को इसका कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए. अन्य कारण बायोलॉजिकल कारण है. हार्मोन संबंधी कारण से भी कुछ बच्चे नशा के लत में आ सकते हैं.
बदल रहा है नशा करने का ट्रेंड :
स्कूली बच्चों में नशा करने का तरीका बदल रहा है. आमतौर पर लोग शराब, सिगरेट, गांजा, हेरोइन को ही नशा का प्रमुख कारक मानते हैं. लेकिन बच्चे नशा के लिए डेनड्राइट, सिर दर्द में लगाया जाने वाला बाम, कफ सिरप व अन्य कुछ दवाओं को ज्यादा सहारा बना रहे हैं. नशा के लिये कई टैबलेट भी होते हैं.
कुछ मामलों में ऐसे लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है जिनपर स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को नशे का टैबलेट सप्लाई करने का आरोप है. शराब और सिगरेट का नशा करने वालों का पता चल जाता है लेकिन नशे का टैबलेट, बाम, कफ सिरफ जैसी चीजों से अभिभावकों को भी किसी तरह का संदेह नहीं होता है.
शुरू में ही इलाज जरूरी :
मनोचिकित्सक का कहना है कि बच्चों को शुरू से ही नशा के खतरनाक पहलुओं के बारे में अभिभावकों और शिक्षकों को अवगत कराना जरूरी है. पारिवारिक समस्या, रोजगार की व्यस्तता घरों में हो सकती है लेकिन बच्चों को समय देना सबसे ज्यादा अहम है. बच्चे पॉकेट मनी का क्या करते हैं, वे स्कूल और बाहर क्या करते हैं, उनके मित्र कौन-कौन हैं व कैसे हैं, बच्चों का बर्ताव बदल तो नहीं रहा? ऐसे कई बातों की जानकारी अभिभावकों को होनी चाहिए.
यदि बच्चा नशा करने लगता है तो शुरू में ही उसका इलाज कराना चाहिए. मनोचिकित्सक के अनुसार यदि कोई बच्चा नशे का आदी हो चुका है तो अभिभावकों पर उसपर सख्ती नहीं बरतनी चाहिए. पहले उससे बातचीत कर, उसे समय देकर समस्या को सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए. यदि बात नहीं बने तो एक्सपर्ट की मदद लेनी काफी जरूरी हो जाती है. अभिभावकों द्वारा बच्चों में नशा की लत को छिपाना, उनके लत को बढ़ा सकता है.
2.7 % आत्महत्या का कारण नशा :
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में आत्महत्या के कुल मामलों में 2.7 प्रतिशत का कारण नशा था. इस वर्ष 18 वर्ष से कम आयु वाले 64 लड़के-लड़कियों ने नशा के कारण अपनी जान दे दी. इनमें लड़कों की संख्या 43 और लड़कियों की संख्या 21 है. जबकि इस वर्ष 3670 लोगों की आत्महत्या की वजह नशा रहा.