दुर्लभ बीमारी एसएमए पर संपन्न हुआ पहला राष्ट्रीय सम्मेलन

कोलकाता : पीयरलेस हॉस्पिटल की ओर से स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलन रविवार को संपन्न हुआ. सम्मेलन में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों ने भी हिस्सा लिया. इसके अलावा सम्मेलन में राज्य स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा, राज्यसभा सांसद तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 11, 2019 2:09 AM

कोलकाता : पीयरलेस हॉस्पिटल की ओर से स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) पर पहला राष्ट्रीय सम्मेलन रविवार को संपन्न हुआ. सम्मेलन में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों ने भी हिस्सा लिया.

इसके अलावा सम्मेलन में राज्य स्वास्थ्य विभाग के स्वास्थ्य शिक्षा निदेशक प्रो. डॉ प्रदीप मित्रा, राज्यसभा सांसद तथा इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शांतनु सेन, स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रो. डॉ के राय, पीयरलेस हॉस्पिटल के प्रबंध निदेशक डॉ सुजीत कर पुरकायस्थ, अस्पताल के पेडियाट्रिक विभाग के क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ संजुक्ता दे समेत अन्य गणमान्य उपस्थित थे.

आईएमएम के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ शांतनु सेन ने बताया कि यह न्यूरो से संबंधित यह एक जटिल बीमारी है. इस बीमारी से पीड़ित बच्चे को चलने में समस्या होती और बच्चा धीरे-धीरे ह्वील चेयर पर चला जाता है. इस जटिल बीमारी के इलाज पर लाखों रुपये का खर्च आता है, लेकिन काफी दु:ख की बात है कि इस बीमारी के इलाज के लिए केंद्र सरकार के पास किसी तरह की अनुदान की व्यवस्था नहीं है.

उन्होंने कहा, अगर राज्य के सरकारी अस्पतालों में इलाज नि:शुल्क हो सकता है ,तो ऐसी बीमारी के इलाज के लिए केंद्र सरकार के पास व्यवस्था होनी चाहिए, ताकि सरकारी खर्च पर बच्चों का इलाज हो सके. उन्होंने मौके पर उपस्थित बच्चों के अभिभावकों व चिकित्सकों आश्वासन देते कहा कि वह राज्यसभा सदस्य के साथ हेल्थ स्टैंडिंग कमेटी (भारत सरकार) के सदस्य भी है.

सरकारी खर्च पर इन बच्चों का इलाज हो इसके लिए वह राज्यसभा में इस प्रस्ताव को रखेंगे. इसके साख ही मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ भी विचार विमर्श करेंगे. सम्मेलन में उपस्थित डॉ मित्रा ने कहा कि यह एक अनुवांसिक बीमारी है. अगर माता-पिता दोनो इसके वाहक हो तो 25 फीसदी संभावना रहती है कि उनसे होने वाले बच्चे इस बीमारी की चपेट में आये.

जबकि प्रति एक लाख बच्चों में एक इस बीमारी के चपेट में आता है. डॉ संजुक्ता दे ने कहा कि विदेशों में इस बीमारी के लिए दवा उपलब्ध है. लेकिन दवा काफी महंगी होने के कारण यह आम लोगों की पहुंच से दूर हैं. डॉक्टर ने कहा कि आमतौर इस बीमारी के लक्षणों का पहचानना कठीन है. जबकि कुछ चिकित्सक व फिजियोथैरेपिस्टों के पास भी इस बीमारी को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं.

उन्होंने कहा कि इस बीमारी से ग्रसित बच्चे दूसरे बच्चों की तरह ही होते है, लेकिन धीरे-धीरे इनके पांव की मांसपेशी कमजोर होती जाती है, जिसके कारण चलने में परेशानी होती है. इस बीामारी के कई प्रकार हैं. कई बार दो तीन माह में ही बच्चों में इस बीमारी के लक्षणों को देखा जा सकता हैं. बीमारी से ग्रसित बच्चों इस उम्र बैठक नहीं पाते, हाथ-पैर काफी नरम रहता है. वहीं बड़े बच्चे धीरे-धीरे कमोजर पड़ जाते हैं. सीढ़ी चढ़ने में परेशानी होती है. लेकिन इन बच्चों का दिमाग अन्य बच्चों की तुलना में काफी अच्छा होता है.

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