मिथिलेश झा
रांची : पश्चिम बंगाल (West Bengal)सरकार ने आठ साल (2004 से 2011-12 के बीच) में 14.2 फीसदी लोगों को गरीबी (Poverty) रेखा से बाहर निकालने में सफलता हासिल की. वर्ष 2004-05 और 2009-10 के दौरान 7.5 फीसदी लोग गरीबी रेखा से बाहर निकले, तो 2009-10 और 2011-12 के बीच 6.7 फीसदी लोग मध्यम वर्ग (Middle Class) की श्रेणी में आये. प्रदेश की एक बड़ी उपलब्धि यह है कि यहां राष्ट्रीय औसत 21.9 फीसदी से कम कुल 20 फीसदी आबादी ही गरीबी रेखा के नीचे (Below Poverty Line) है.
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गरीबी रेखा की सीमा तय करने के लिए डॉ सुरेश डी तेंडुलकर की अध्यक्षता में बने एक्सपर्ट ग्रुप की अनुशंसा को आधार मानकर कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने एक रिपोर्ट जारी की है, जिससे यह खुलासा हुआ है. कृषि मंत्रालय की रिपोर्ट ‘एग्रिकल्चरल स्टैटिस्टिक्स एट ए ग्लांस 2017’ (Agricultural Statistics at a Glance 2017) के मुताबिक, वर्ष 2004-05 में पश्चिम बंगाल में कुल 34.2 फीसदी बीपीएल परिवार था. 38.2 फीसदी ग्रामीण और 24.4 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में थी. वर्ष 2009-10 में शहरी गरीबों की संख्या 24.4 फीसदी से घटकर 22 फीसदी रह गयी, जबकि ग्रामीण गरीब आबादी 38.2 फीसदी से घटकर 28.8 फीसदी रह गयी.
इस तरह 6 साल में बंगाल में 9.4 फीसदी गरीब कम हुए. अगले तीन साल यानी वर्ष 2009-10 और वर्ष 2011-12 के दौरान इससे ज्यादा 7.3 फीसदी लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने में सरकार को सफलता मिली. वर्ष 2011-12 में इस प्रदेश में कुल 20 फीसदी गरीब परिवार रह गये, जिसमें 22.5 फीसदी लोग गांवों में रहते थे जबकि 14.7 फीसदी शहरों में.
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यहां बताना प्रासंगिक होगा कि वर्ष 2004-05 से वर्ष 2009-10 के बीच लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकालने में पश्चिम बंगाल सरकार केंद्र सरकार से भी तेज निकली. यानी राष्ट्रीय औसत से ज्यादा तेजी से लोगों को गरीबी रेखा से बाहर निकाला गया. इस दौरान केंद्र ने 7.4 फीसदी लोगों को गरीबी से मुक्ति दिलायी, जबकि बंगाल सरकार ने 7.5 फीसदी लोगों को. वर्ष 2009-10 और 2011-12 के बीच देश के 7.9 फीसदी बीपीएल परिवारों को गरीबी से बाहर निकाला गया, जबकि बंगाल में सिर्फ 6.7 फीसदी लोग ही इस दायरे से बाहर आ सके.