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स्कूली बच्चों में बदल रहा है नशा करने का ट्रेंड

स्कूली बच्चों में नशा करने का तरीका बदल रहा है. आमतौर पर लोग शराब, सिगरेट, गांजा, हेरोइन को ही नशा का प्रमुख कारक मानते हैं, लेकिन बच्चे नशा के लिए डेनड्राइट, सिर दर्द में लगाया जाने वाला बाम, कफ सिरप व अन्य कुछ दवाओं को ज्यादा सहारा बना रहे हैं. नशा के लिए कई टैबलेट […]

स्कूली बच्चों में नशा करने का तरीका बदल रहा है. आमतौर पर लोग शराब, सिगरेट, गांजा, हेरोइन को ही नशा का प्रमुख कारक मानते हैं, लेकिन बच्चे नशा के लिए डेनड्राइट, सिर दर्द में लगाया जाने वाला बाम, कफ सिरप व अन्य कुछ दवाओं को ज्यादा सहारा बना रहे हैं. नशा के लिए कई टैबलेट भी होते हैं.

कुछ मामलों में ऐसे लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिन पर स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को नशे का टैबलेट सप्लाई करने का आरोप है. शराब और सिगरेट का नशा करनेवालों का पता चल जाता है, लेकिन नशे का टैबलेट, बाम, कफ सिरफ जैसी चीजों से अभिभावकों को भी किसी तरह का संदेह नहीं होता है.
स्कूली बच्चों में नशा करने का तरीका बदल रहा है. आमतौर पर लोग शराब, सिगरेट, गांजा, हेरोइन को ही नशा का प्रमुख कारक मानते हैं, लेकिन बच्चे नशा के लिए डेनड्राइट, सिर दर्द में लगाया जाने वाला बाम, कफ सिरप व अन्य कुछ दवाओं को ज्यादा सहारा बना रहे हैं. नशा के लिए कई टैबलेट भी होते हैं.
कुछ मामलों में ऐसे लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है, जिन पर स्कूलों और कॉलेजों के विद्यार्थियों को नशे का टैबलेट सप्लाई करने का आरोप है. शराब और सिगरेट का नशा करनेवालों का पता चल जाता है, लेकिन नशे का टैबलेट, बाम, कफ सिरफ जैसी चीजों से अभिभावकों को भी किसी तरह का संदेह नहीं होता है.
क्या कहना है पुलिस का
पुलिस की सख्ती व छापेमारी के कारण अब ड्रग्स तस्करों ने अपने धंधे का तरीका बदला है. वे अब बच्चों को नशे का आदी बनाने के लिए विदेशों से लाये गये छोटे-छोटे चॉकलेट व कागज के फार्मेट में मिलने वाले ड्रग्स को शुरुआत में बच्चों तक पहुंचाते हैं. पहले प्रत्येक चॉलकेट की कीमत भी 20 से 30 रुपये ही होती है.
बेहतरीन टेस्ट व कीमत भी काफी कम होने के अलावा विदेशी चॉकलेट के नाम पर छात्र-छात्राएं जल्द ही इनके प्रति आकर्षित हो जाते हैं और अनजाने में ड्रग्स का सेवन कर धीरे-धीरे इसके आदी होने लगते हैं.
फिर ये तस्कर विद्यार्थियो को महंगे दाम पर ड्रग्स की सप्लाई करने लगते हैं. इसी तरह से अब उनका धंधा फूल-फल रहा है. इससे निबटने के लिए कोलकाता पुलिस की तरफ से विभिन्न थानों से पुलिसकर्मी अपने इलाकों में स्थित स्कूलों में जाकर छात्र-छात्राओं को ड्रग्स के सेवन से होने वाले नुकसान की बात बताकर उन्हें जागरूक करते हैं.
उनके अभिभावकों को भी बच्चों पर ध्यान रखने की सलाह दी जाती है. तस्करों की थोड़ी भनक मिलते ही उनकी गिरफ्तारी के लिए लालबाजार के एंटी नारकोटिक्स सेल की टीम तत्पर रहती हैं. इस धंधे को जड़ से खत्म करने के लिए इन तस्करों के खिलाफ पुलिस का अभियान लगातार जारी है.
प्रवीण त्रिपाठी, ज्वाइंट सीपी (आर्म्ड पुलिस)
कुछ मामले
जादवपुर, पार्क स्ट्रीट, बेनियापुकुर, पार्क सर्कस, गार्डेनरीच, मटियाबुर्ज, बेलियाघाटा, सियालदह रेलवे स्टेशन के पास, वाटगंज, साउथ पोर्ट, राजाबाजार, जोड़ासांको, बालीगंज रेलवे स्टेशन के पास, गरियाहाट के गरचा समेत महानगर के अन्य कुछ इलाकों में ड्रग्स सप्लायर्स की गिरफ्तारी हो चुकी है.
ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि महानगर में ड्रग्स बेचने वालों के प्रमुख अड्डे भी यही हैं. सूत्रों के अनुसार 10 ग्राम ड्रग्स की एक पुड़िया की कीमत तीन महीने पहले लगभग 150 से 250 रुपये थी. कारोबार में फायदा और पुलिस की सख्ती के बाद इसकी कीमत 300 से 1000 हो गयी है.
तनाव व उपेक्षा के कारण नशे के शिकार हो रहे टीनएजर्स
हाल ही में पार्क स्ट्रीट के एक स्कूल के बाहर गांजा बिक्री करते हुए एक युवा को पकड़ा गया. इससे पहले भी स्कूल के बाहर चॉकलेट के रूप में नशीले पदार्थ की बिक्री किये जाने की खबरें प्रकाश में आयी थीं. विद्यार्थियों या टीनएजर्स का नशे की गिरफ्त में आना बेहद चिंताजनक है. सिगरेट, गुटखा, अलकोहल के सेवन के अलावा आजकल टीनएजर्स हुक्का बारों में जाने के आदि हो रहे हैं.
स्कूलों में विद्यार्थियों पर निगरानी रखने के साथ नियमित उनकी काउंसेलिंग की जरूरत है. यह भी देखा गया है कि पारिवारिक कारणों व पढ़ाई के दवाब या स्ट्रेस में आकर टीनएजर्स नशे की ओर बढ़ रहे हैं. यह चिंता व्यक्त कर रहे हैं स्कूल के प्रिंसिपल, जानते हैं उनकी राय. उनसे बातचीत की भारती जैनानी ने .
कोई भी टीनएजर जब तनाव में रहता है, तो उसको आसान तरीका यही लगता है कि वह माइंड को फ्यूज कर दे, इसके लिए वह ड्रग्स का सेवन करता है. कुछ तो हिंसा या एडवेंचरर हरकत भी कर बैठते हैं. इसमें पैरेंट्स का भी रोल है. वे बच्चों से बहुत ज्यादा उम्मीदें कर बैठते हैं. कई बार वह अपनी महत्वाकांक्षाओं को बच्चों पर थोपने की कोशिश करते हैं, जिससे बच्चे स्ट्रेस में आ जाते हैं. इससे मुक्त होने के लिए बच्चे नशे का सहारा ले रहे हैं.
पैरेंट्स को सूझबूझ के साथ बच्चों की भावनाओं को भी समझना होगा. स्नेह व प्यार के अभाव में युवा भटक रहे हैं. उनका माइंड डाइवर्ट करने के लिए उनको रचनात्मक कार्यों से जोड़ेने की जरूरत है. साथ ही मेडिटेशन का नियमित अभ्यास, एक बेहतर विकल्प है. इसके लिए स्कूल व घर-परिवार में एक स्वस्थ, मोटीवेशन एनवायरमेंट बनाना होगा.
एससी दूबे, प्रिंसिपल व रेक्टर ऑक्सफोर्ड हाइस्कूल (आंदुल रोड, हावड़ा)
स्कूल के आसपास ड्रग्स बेचे जाने की घटना चिंताजनक है. इसका असर नकारात्मक होगा. हालांकि हमारे स्कूल के आसपास कभी इस तरह की घटना नहीं हुई है. हमारे स्कूल का ऐसा बेहतरीन मैकेनिज्म है कि यहां प्रत्येक विद्यार्थी पर टीचर्स अटेंशन देते हैं. सभी विद्यार्थियों की नियमित काउंसेलिंग की जाती है. इसके लिए स्पेशल काउंसेलर्स की व्यवस्था की गयी है. स्कूल परिसर में कई ऐसे आयोजन किये जाते हैं, जिससे विद्यार्थी जुड़े रहें.
इसमें रचनात्मक प्रतियोगिताओं के अलावा जागरूकता कार्यक्रम, ओल्ड एज होम का दौरा, एनजीओ में जाकर गरीब बच्चों को पढ़ाने, पौधारोपण जैसे कार्यों में बच्चों को जोड़ा जाता है, ताकि उनके अंदर सामाजिक दायित्व की भावना बढ़े. टीनएजर्स को नशे से बचाने के लिए गार्जियन को भी विशेष निगरानी रखनी होगी.
जोयती चाैधरी, प्रिंसिपल, डीपीएस, रूबी पार्क
एडल्ट के अलावा 18 साल से कम उम्र के बच्चों में भी नशे की लत बढ़ रही है. स्कूल या कॉलेज के आसपास आजकल चॉकलेट के रूप में भी नशा बिक रहा है, यह समाचार युवा पीढ़ी के लिए खतरनाक संकेत है. इससे युवाओं को बचाने की जरूरत है. आज के दौर में टीनएजर्स पर प्रेशर के अलावा गार्जियन भी हाइयेस्ट अंक लाने का दबाव डालते हैं.
इसके अलावा अभी संयुक्त परिवार व सोसायटी का चलन खत्म हो गया है, जिसमें बच्चे सामूहिक रूप से मस्ती या खेलकूद करते थे. अपनी सोसायटी में एक साथ खेलकूद या ज्वाइंट फैमिली में सभी सदस्यों के साथ एक मेंटल सपोर्ट रहता था. बच्चे भावनात्मक रूप से इतने कमजोर या अधीर नहीं होते थे. आज दौर बदल गया है. डिप्रेशन व इग्नोरेंस से भी टीनएजर्स में नशे का चलन बढ़ा है.
ऐसे कई मामले हमारे पास भी आते हैं. नशीली सामग्री बेचनेवालों के खिलाफ भी कोई सख्त कानून नहीं है. यह खुलेआम बिक रहा है, इसमें अब स्टूडेंट्स को भी टारगेट किया जा रहा है. वे अपने बच्चों को क्रिएटिव या सामाजिक कार्यों की ओर प्रेरित करें, जिससे उनको नशे की गिरफ्त में जाने से रोका जा सके.
डॉ संजय गर्ग, मनोचिकित्सक (एचओडी, मनोचिकित्सा)
2.7 प्रतिशत आत्महत्या का कारण बना नशा
एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015 में आत्महत्या के कुल मामलों में 2.7 प्रतिशत का कारण नशा था. इस वर्ष 18 वर्ष से कम आयु वाले 64 लड़के-लड़कियों ने नशा के कारण अपनी जान दे दी. इनमें लड़कों की संख्या 43 और लड़कियों की संख्या 21 है. जबकि इस वर्ष 3670 लोगों की आत्महत्या की वजह नशा रहा.
सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय ने हाल ही में देश के सर्वेक्षण के बाद एक रिपोर्ट जारी की है. उसके अनुसार यह बताया गया कि देश की कुल जनसंख्या में कितने लोग शराब व ड्रग्स के अन्य साधन की गिरफ्त में हैं. आइये जानते हैं रिपोर्ट के कुछ तथ्य :
शराब
देश में करीब 16 करोड़ लोग शराब पीते हैं. इनमें से लगभग 5.7 करोड़ लोग किसी समस्या के कारण शराब का सेवन करते हैं और करीब 2.1 करोड़ लोगों को शराब की लत है.
गांजा
देश में करीब 3.1 करोड़ लोग गांजा पीते हैं. इनमें से लगभग 72 लाख लोग किसी समस्या के कारण गांजा का सेवन करते हैं और करीब 25 लाख लोगों को गांजा की लत है.
अफीम
देश में करीब 2.3 करोड़ लोग अफीम का सेवन करते हैं. इनमें से लगभग 77 लाख लोग किसी समस्या के कारण अफीम का सेवन करते हैं और 28 लाख लोगों को अफीम की लत है.
ड्रग्स के विकल्प भी कम नहीं
देश में करीब 77 लाख लोग ड्रग्स के अन्य विकल्पों का भी सेवन करते हैं. ऐसे 22 लाख लोग समस्याएं देख ड्रग्स का सेवन करते हैं.

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