आनंद कुमार सिंह
कोलकाता : राज्यपाल जगदीप धनखड़ के गुरुवार रात को जादवपुर विश्वविद्यालय में न पहुंचने पर हालात क्या होते यह भले ही अनुमान का विषय है, लेकिन इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि जादवपुर विश्वविद्यालय का हालिया इतिहास हंगामाखेज, आंदोलन और घेराव का रहा है. केंद्रीय मंत्री बाबुल सुप्रियो को बड़ी तादाद में विद्यार्थियों ने घेर कर रखा है और उन्हें वहां से निकलने नहीं दिया जा रहा है. इस तरह के दृश्य जादवपुर विश्वविद्यालय में हमेशा देखे जाते रहे हैं. हालांकि यह घेराव आमतौर पर विश्वविद्यालय के ही आला अधिकारियों तक अब तक सीमित रहा था. हालांकि गुरुवार की घटना ने यह साबित कर दिया कि अब घेराव केंद्रीय मंत्रियों का भी हो सकता है. इससे पहले विभिन्न मुद्दों पर जेयू में कुलपति तथा अन्य प्रशासनिक अधिकारियों का घेराव किया गया है. 2016 में तत्कालीन राज्यपाल केशरी नाथ त्रिपाठी ने जादवपुर विश्वविद्यालय को, ‘सेंटर ऑफ डिस्टर्बेंस’ करार दिया था. 2014 में विश्वविद्यालय में आंदोलन तो चार महीने तक चला था. ‘होक कलरव’ के स्लोगन के तले जेयू के विद्यार्थियों ने लगातार आंदोलन किया था. दरअसल एक छात्रा के साथ विश्वविद्यालय के ही कुछ अन्य छात्रों द्वारा छेड़खानी किये जाने का आरोप लगाते हुए विद्यार्थियों ने कुलपति का घेराव किया था. घेराव से मुक्त होने के लिए वीसी ने कैंपस में पुलिस बुलायी थी. आरोप है कि पुलिस ने लाठीचार्ज करते हुए वीसी को घेरावमुक्त किया था.
जेयू कैंपस में पुलिस बुलाये जाने से नाराज विद्यार्थी सड़कों पर उतर आये थे. इसका असर जेयू के दीक्षांत समारोह में भी देखने को मिला था जब बड़ी तादाद में विद्यार्थियों ने समारोह में वीसी की मौजूदगी का प्रतिवाद करते हुए समारोह का बहिष्कार किया था. ऐसा नहीं है कि वर्ष 2014 में पुलिस ने पहली बार जेयू के कैंपस में प्रवेश किया था. इससे पहले 2005 में विद्यार्थियों के आमरण अनशन को खत्म करने के लिए पुलिस सख्ती का सहारा लिया था. हालांकि पुलिस पर तब भी आरोप लगा था कि कुछ विद्यार्थियों को पुलिस ने अस्पताल में भी पीटा है, लेकिन पुलिस ने इस आरोप से इन्कार किया था. हालिया आंदोलनों पर नजर डालें तो 2016 में ‘बुद्धा इन ए ट्रैफिक जाम’ शीर्षक फिल्म के जेयू में प्रदर्शन का जबर्दस्त विरोध देखने को मिला था.
भाजपा नेत्री रूपा गांगुली को विश्वविद्यालय में प्रवेश करने से रोका गया था. फिल्म में शिक्षण संस्थान में वाम-माओवाद संबंधों को दिखा गया था. हालिया घटनाओं के लिहाज से राज्यपाल के समय पर जेयू में पहुंचने को भाजपा नेताओं के अनुसार एक बड़ी घटना को रोकने का कारक बना है.
जेयू जाकर राज्यपाल ने रखी नयी परंपरा की नींव
कोलकाता : राज्यपाल जगदीप धनखड़ ने नक्सली वामपंथी छात्रों से घिरे केंद्रीय राज्य मंत्री बाबुल सुप्रियो को बाहर निकाल कर केवल जादवपुर विश्वविद्यालय के इतिहास में नहीं, वरन पश्चिम बंगाल के राजनीतिक इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा है और परंपरा की नयी नींव रखी है. सिंगूर आंदोलन के समय तात्कालीन राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी ने आंदोलनरत ममता बनर्जी और तात्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के बीच समझौता कराने की कोशिश की थी तथा राजभवन में समझौता पत्र पर हस्ताक्षर भी हुआ था, लेकिन बंगाल के राजनीतिक इतिहास में ऐसा कोई भी राज्यपाल नहीं था, जिसने आंदोलन कर रहे छात्रों या नेताओं के बीच से किसी केंद्रीय मंत्री को बाहर निकाल कर लाये हों, हालांकि इसे लेकर सत्तारूढ़ दल तृणमूल कांग्रेस ने सवाल उठाये हैं. तृणमूल कांग्रेस के महासचिव ने इसे राज्यपाल की मर्यादा के खिलाफ करार दिया है, लेकिन प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष दिलीप घोष ने श्री घोष के विश्वविद्यालय में सुप्रियो को भीड़ से बचाने के लिए राज्यपाल जगदीप धनखड़ के वहां पहुंचने के फैसले का समर्थन किया.वह राज्यपाल को उचित समय पर फैसला लेने के लिए सैलूट करते हैं. राज्यपाल ने केवल एक अभिज्ञ राजनीतिज्ञ हैं. कानूनी विशेषज्ञ भी हैं. उन्होंने सही समय पर फैसला लिया. तृणमूल कांग्रेस के महासचिव पार्थ चटर्जी का जवाब देते हुए श्री घोष ने कहा कि यदि राज्यपाल नहीं जाते हैं, तो राष्ट्रविरोधी वामपंथी छात्र मंत्री को मार देते. और उसके बाद वे लोग क्या मृत मंत्री के पार्थिव शरीर पर माल्यार्पण करते.राज्यपाल ने केवल मुख्यमंत्री को नहीं, वरन सरकारी अधिकारियों को भी बार-बार परिस्थिति के बारे में सूचित किया था, जब कोई रिस्पांस नहीं मिला, तो राज्यपाल जादवपुर गये और केंद्रीय मंत्री को छात्रों के चंगुल से बाहर निकाला. प्रदेश भाजपा के महासचिव सायंतन बसु ने कहा कि यदि राज्यपाल सही समय पर जादवपुर विश्वविद्यालय नहीं जाते, तो वे लोग बाबुल सुप्रियो को जिंदा वापस नहीं निकाल पाते.