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भाव के भूखे हैं भगवान : क्षमाराम महाराज

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कोलकाता : संसार में अनेक सभ्यताएं हैं. सभी अपनी मान्यताओं और धर्म का आदर करते हैं, पर निष्पक्ष ढग से देखा जाये, तो हिंदू सभ्यता सबसे श्रेष्ठ है. जब लड़की का विवाह होता है. ससुराल आती है, तब उसके व्यवहार, दायित्व और जीवन में एक नया मोड़ आता है. सीताजी के जीवन में भी यही […]

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कोलकाता : संसार में अनेक सभ्यताएं हैं. सभी अपनी मान्यताओं और धर्म का आदर करते हैं, पर निष्पक्ष ढग से देखा जाये, तो हिंदू सभ्यता सबसे श्रेष्ठ है. जब लड़की का विवाह होता है. ससुराल आती है, तब उसके व्यवहार, दायित्व और जीवन में एक नया मोड़ आता है. सीताजी के जीवन में भी यही देखने को मिलता है.

वनवास यात्रा में गांव की भोली स्त्रियां, जब सीताजी के लुभावन स्वरूप को देखती हैं, तो उनसे राम और लक्ष्मण के बारे में पूछती हैं कि ये कौन हैं? सीताजी अपने पति राम का नाम नहीं लेती, क्योंकि हिंदू धर्म ही ऐसा धर्म है, जिसमें पति का नाम लेने की मनाही है. ऐसी मान्यता है कि यदि पत्नी, पति का नाम ले, तो उसकी उम्र घट जाती है.
सीताजी गांव की भोली स्त्रियों से कहती हैं कि गोरे रंग के जो हैं, वे मेरे छोटे देवर हैं और घूंघट के नीचे से राम की ओर इशारा करते हुए बताती हैं कि ये मेरे पति हैं. वन यात्रा में राम जब बाल्मीकि के आश्रम में पहुंचते हैं, उनसे यह पूछते हैं कि मैं चौदह वर्ष कहां रहूं. बाल्मिकी जी कहते हैं कि मैं आपके स्वरूप को जानता हूं. आप कहां नहीं हैं, लेकिन जब पूछ ही रहे हैं तो आपके रहने के लिए चित्रकूट उत्तम निवास स्थान है, वहीं रहें.
राम चित्रकूट में निवास करते हैं. वहां के आदिवासी राम को जंगल के बीहड़ रास्तों के बारे में बताते हैं. राम अनपढ़ लोगों के भाव को देखकर आनंदित होते हैं. भगवान भाव के भूखे होते हैं. ये बातें हावड़ा सत्संग समिति के तत्वावधान में रामचरितमानस का नवाह्न परायण पाठ करते हुए सिंहस्थल पीठाधीश्वर क्षमाराम महाराज ने हावड़ा हाउस के प्रांगण में कहीं.
श्रद्धालुओं का स्वागत मनमोहन मल्ल, निर्मला मल्ल, पुरुषोत्तम पचेरिया, पवन पचेरिया एवं हरि भगवान तापड़िया ने किया. महावीर प्रसाद रावत ने कार्यक्रम का संचालन करते हुए बताया कि रामचरितमानस का पाठ चार जनवरी तक प्रतिदिन दोपहर 12.15 बजे से शुरू होगा.

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