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सारधा की 14 कंपनियों की धोखाधड़ी पकड़ी

कोलकाता : गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) ने निवेशकों के हजारों करोड़ रुपये डकार चुके सारधा समूह की 14 कंपनियों को धोखाधड़ी का दोषी माना है. एसएफआइओ ने सोमवार को कहा कि इन कंपनियों को पोंजी योजनाएं चलाने का दोषी पाया गया. इन पर कई कानूनों के उल्लंघन के मामले में मुकदमा चलेगा. जांच में […]

कोलकाता : गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआइओ) ने निवेशकों के हजारों करोड़ रुपये डकार चुके सारधा समूह की 14 कंपनियों को धोखाधड़ी का दोषी माना है. एसएफआइओ ने सोमवार को कहा कि इन कंपनियों को पोंजी योजनाएं चलाने का दोषी पाया गया. इन पर कई कानूनों के उल्लंघन के मामले में मुकदमा चलेगा.

जांच में पाया गया कि समूह नये निवेशकों से पैसे लेकर निवेश के जरिये आय अर्जित करने के बजाय पुराने सदस्यों को भुगतान कर रहा था जो पोंजी योजना की तरह ही है.

एसएफआइओ की जांच पूरी होने पर कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि अन्य चीजों के अलावा इन कंपनियों की गतिविधियों में कंपनी कानून, सेबी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता के विभिन्न प्रावधानों के गंभीर उल्लंघन हुआ. मंत्रालय ने कहा कि जिन कंपनियों को सामूहिक निवेश योजनाओं से जुड़े सेबी के नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया गया है, उन पर कंपनी अधिनियम के बजाय सेबी अधिनियम के उल्लंघन का मुकदमा दायर होगा क्योंकि सेबी अधिनियम के तहत ज्यादा लंबी कैद का प्रावधान है.
इसके अलावा राज्य सरकारें भी प्राइज चिट एवं मनी सर्क्युलेशन योजना (प्रतिबंध) अधिनियम के उल्लंघन के संबंध में मुकदमा शुरू कर सकती हैं जबकि जांच रपट और आवश्यक साक्ष्य सीबीआइ के साथ साझा किये जायें ताकि मुकदमों की पुनरावृत्ति रोकी जा सके.
इस घोटाले में पश्चिम बंगाल और पड़ोसी राज्यों के लाखों निवेशकों को गैरकानूनी तौर पर धन संग्रह की गतिविधि के कारण हजारों करोड़ रुपये का चूना लगा. यह मामला पिछले साल की शुरुआत में सामने आया जिसने राजनीति हलकों को भी लपेटे में लिया. यह मामला राजनीतिक तौर पर भी बेहद विवादास्पद हो गया क्योंकि विभिन्न पक्ष ममता बनर्जी सरकार की आलोचना कर रहे हैं.
जांच एजेंसी ने तृणमूल कांग्रस पार्टी के नेताओं समेत कई लोगों से पूछताछ की जबकि सारधा समूह के प्रमुख सुदीप्त सेन और कुछ अन्य को सलाखों के पीछे भेजा. एसएफआइओ ने अंतरिम रपट सितंबर 2013 में सौंपी थी. पश्चिम बंगाल में निवेशकों के भारी विरोध के फौरन बाद सेबी ने भी पिछले साल अप्रैल में सारधा रीयल्टी के खिलाफ एक आदेश जारी किया था.
सेबी ने अन्य निर्देशों के अलावा कंपनी से निवेशकों की राशि वापस करने का भी आदेश दिया था. सारधा समूह की 14 कंपनियों की जांच पूरी होने की घोषणा करते हुए एसएफआइओ ने कहा कि यह चिट फंड घोटाले के तौर पर मशहूर हुआ. इनमें निवेशकों को जो ऊंचा ब्याज देने का वायदा किया गया था वह अव्यावहारिक था. ये इकइयां चिट फंड के तौर पर भी पंजीकृत नहीं थीं. सरकार ने कहा, जांच का निष्कर्ष है कि ऐसी कंपनियां जो योजनाएं चला रही थीं वे पोंजी योजनाएं (धोखाधड़ी वाली) थीं.
नये ग्राहकों के निवेश का इस्तेमाल आय पैदा करने के बजाय पुराने ग्राहकों को भुगतान करने पर हो रहा था. एसएफआइओ को जांच के दौरान सारधा समूह की विभिन्न कंपनियों के प्रवर्तकों द्वारा गंभीर वित्तीय कुप्रबंधन और धन के गबन के मामले पाये गये.
इस साल मई में उच्चतम न्यायालय ने सारधा चिट फंड घोटाले की जांच का जिम्मा सीबीआइ को सौंपा था और राज्य सरकारों को निर्देश दिया था कि वे इस मामले की जांच के लिए हर जरूरी सुविधा सुलभ कराएं. तृणमूल कंागे्रस के नेताओं पर इस घोटाले में शामिल होने का आरोप है लेकिन पार्टी ने हाल ही में कहा है कि मुख्यमंत्री किसी भी तरह की निष्पक्ष जांच में मदद देंगी.
सारधा समूह की 14 कंपनियों के अलावा एसएफआइओ ने अन्य समूहों की भी जांच की है जिनमें रोज वैली, आईकोर ई-सर्विसेज और सनशाईन इंडिया लैंड डेवलपर्स शामिल हैं. कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय ने पिछले अप्रैल में एसएफआइओ जांच का आदेश देते हुए कहा था कि यह फैसला ऐसे मामलों में शामिल जनहित को ध्यान में रखकर किया गया है.
साथ ही इस कार्रवाई के पीछे यह चिंता भी थी कि कंपनियों द्वारा गैरकानूनी तरीके से अर्जित संपत्ति का दुरपयोग-लांडरिंग की जा सकती है और इन कंपनियों के प्रवर्तक इन कंपनियों को संपत्तिविहीन कर सकते हैं. हालांकि चिट फंड अधिनियम, 1982 के तहत चिट फंड कंपनियों का नियमन राज्य सरकारें अधिकार क्षेत्र में आता है पर लेकिन पश्चिम बंगाल में सारधा घोटाले पर जनता के भारी आक्रोश के बीच अप्रैल में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय ने इस घोटाले की एसएफआइओ जांच का आदेश दिया था.
इस घोटाले के बाद अब पोंजी योजनाओं पर प्रतिबंध और निवेशकों के हितों की रक्षा के लिए विभिन्न एजेंसियों के बीच सहयोग बढ़ाने की व्यवस्था करने के प्रयास किए जा रहे हैं. सेबी एवं रिजर्व बैंक और कार्पोरेट मामलों के मंत्रालय जैसी नियामक एजेंसियों ने निवेशकों को जागरुक करने के लिए एक मीडिया प्रचार-अभियान भी शुरु है किया ताकि लोग धोखेबाजों के झांसे में न आएं.
सेबी अधिनियम में हालिया संशोधन से पूंजी बाजार नियामक को गैरकानूनी तरीके से जनता से सामूहिक रूप से धन जुटाने वाली योजनाओं पर अंकुश लगाने के लिए और शक्तियां दी गयी हैं. सेबी 100 करोड़ रपये या इससे अधिक की ऐसी योजनाओं पर कार्रवाई करने को अधिकृत है. इसके अलाव सेबी ने अनधिकृत रुप से धन इकट्ठा करने की गतिविधयां चलाने वाली ऐसी कई इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई की है और जिन्होंने कुल मिलाकर 1 लाख करोड़ रुपये जुटाए हैं.
* केंद्र सरकार ने क्या कहा है
केंद्र सरकार के बयान में कहा गया कंपनी, उनके प्रवर्तक, निदेशक और प्रबंधन कर्मचारियों को कंपनी अधिनियम के विभिन्न प्रावधानों के तहत कई मामलों में दोषी पाया गया. प्राइज चिट एवं मनी सर्क्युलेशन योजना (प्रतिबंध) अधिनियम, 1978 के उल्लंघन के भी कई मामले पाये गये. इस कानून के तहत संबंधित राज्य सरकारें कार्रवाई शुरू कर सकती हैं इसलिए सीबीआइ के साथ साक्ष्य के साथ रपट साझा किया जा रहा है. सरकार ने कहा अनधिकृत-गैरकानून संग्रह निवेश योजना (सीआइएस) चलाने की दोषी पाई कंपनियों कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के लिए सेबी के साथ रपट साझा की जा रही है.
* सीबीआइ से साझा किया जायेगा जांच निष्कर्ष
सरकार ने कहा ह्यसीबीआइ अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तहत जांच कर रही है इसलिए अब फैसला किया गया है कि एसएफआइओ द्वारा इकट्ठा किए गये तथ्यों को सीबीआइ के साथ साझा किया जायेगा ताकि मुकदमे की पुनरावृत्ति नहीं हो.ह्ण लोगों के आक्रोश के मद्देनजर मंत्रालय से अप्रैल 2013 में एसएफआइओ से इन मामलों की जांच करने के लिए कहा था. 60 से अधिक कंपनियों की जांच की गयी.
* कैसे की गयी ठगी
जांच में पाया गया कि समूह नये निवेशकों से पैसे लेकर निवेश के जरिये आय अर्जित करने के बजाय पुराने सदस्यों को भुगतान कर रहा था जो पोंजी योजना की तरह ही है.
* नियमों का घोर उल्लंघन
बयान में कहा गया कि गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय को भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं के उल्लंघन के भी साक्ष्य मिले हैं. सरकार ने कहा ह्यइन धाराओं में 107 (अपराध के लिए उकसाना), 120बी (आपराधिक षड्यंत्र), 403 (गैरकानूनी तरीके से धन इकट्ठा करना), 406 (भरोसा तोड़ने का आपराधिक मामला), 409 (सरकारी कर्मचारी द्वारा भरोसा तोड़ने का आपराधिक मामला), 415 (धोखाधड़ी), 418 (यह जानते हुए धोखाधड़ी करना कि इससे नाजायज तौर पर नुकसान होगा), 419 (बहाने से धोखाधड़ी के लिए दंड) व 477ए (खाते में जालसाजी) शामिल है.
* इस्ट बंगाल क्लब के तीन अधिकारियों से पूछताछ
कोलकाता. सारधा चिटफंड घोटाले में प्रवर्तन निदेशालय (इडी) ने सोमवार को इस्ट बंगाल क्लब के तीन अधिकारियों से स्पांसरशिप के संबंध में पूछताछ की. जांच एजेंसी की ओर से तलब किये जाने पर सोमवार को इस्ट बंगाल क्लब के अधिकारी शांति रंजन दासगुप्ता, सचिव कल्याण मजूमदार तथा अकाउंटेंट तपन दास इडी कार्यालय पहुंचे. गौरतलब है कि 2008 से 2013 तक मैदान के चार क्लबों मोहन बागान, इस्ट बंगाल, कालीघाट एमएस तथा भवानीपुर स्पोर्टिंग को सारधा समूह की ओर से अनुदान दिया गया था. इडी इसकी जांच कर रही है.
* पूर्व डीजीपी के साथ लॉकअप में वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने की बैठक
कोलकाता. सीबीआइ हिरासत के दौरान सारधा चिटफंड घोटाले के आरोपी पूर्व डीजीपी रजत मजूमदार के साथ न्यूटाउन थाने में एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बैठक की थी. लॉकअप में खाना पीना भी हुआ. सीबीआइ अधिकारियों ने इसका खुलासा किया है. 11 सितंबर को सारधा कांड में सीबीआइ ने रजत मजूमदार को हिरासत में लिया, लेकिन पूर्व डीजीपी ने अभी तक मामले में मुंह नहीं खोला है.
इस बीच, मजूमदार व पुलिस अधिकारी के बीच बैठक से सीबीआइ की चिंता बढ़ गयी है. जानकारी के अनुसार, सीबीआइ हिरासत के दूसरे दिन सीजीओ कम्प्लेक्स स्थित सीबीआइ दफ्तर में रजत मजूमदार को खाना दिया गया. उन्हें खाना अस्पताल द्वारा तैयार किये गये डाइट के अनुरूप दिया गया, लेकिन उन्होंने खाना खाने से इनकार कर दिया. सीबीआइ अधिकारी के अनुसार, उसी रात राज्य पुलिस के एक वरिष्ठ अधिकारी न्यूटाउन थाने पहुंचे.
कुछ देर बाद मजूमदार का एक परिचित भी वहां आ गया. लॉकअप में तीनों के बीच बैठक शुरू हुई. सीबीआइ अधिकारियों का कहना है कि पुलिस अधिकारी ने वहां ड्यूटी पर तैनात सीबीआइ कांस्टेबल को हटने का निर्देश दिया. सीबीआइ अधिकारियों ने जांच शुरू की है कि आखिर पुलिस अधिकारी क्यों रजत मजूमदार से मिलने आये थे. हालांकि विधाननगर पुलिस कमिशनरेट ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है.

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