कोलकाता/नयी दिल्ली: राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वर्ष 1975 में जो आपातकाल लगाया था, उसके संबंध में पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसकी अनुमति देनेवाले संवैधानिक प्रावधानों से वाकिफ नहीं थी.
सिद्धार्थ शंकर राय के सुझाव पर उन्होंने यह निर्णय लिया था. श्री मुखर्जी के मुताबिक, लेकिन बड़ी विडंबना रही कि यह पश्चिम बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री राय ही थे, जिन्होंने शाह आयोग के समक्ष आपातकाल लगाने में अपनी भूमिका से पलटी मार ली. आपातकाल के दौरान की ज्यादतियों की इस आयोग ने जांच की थी. उक्त बातें राष्ट्रपति ने अपनी पुस्तक ‘द ड्रैमेटिक डिकेड : द इंदिरा गांधी इयर्स’ में कही है.
पुस्तक अभी हाल ही में जारी हुई है. मुखर्जी ने लिखा है, ‘इंदिरा गांधी ने मुझसे बाद में कहा कि अंदरूनी गड़बड़ी के आधार पर आपातकाल की घोषणा की अनुमति देनेवाले संवैधानिक प्रावधानों से, तो वह वाकिफ भी नहीं थीं. खासकर ऐसी स्थिति में जब 1971 के भारत पाकिस्तान लड़ाई के फलस्वरूप आपातकाल लगायी जा चुकी थी.’ पुस्तक के अनुसार, यह दिलचस्प पर आश्चर्यजनक बात नहीं थी कि जब आपातकाल घोषित हो गयी, तब कई लोगों ने दावा कि उसके सूत्रधार तो वे ही हैं.
लेकिन यह भी आश्चर्य की बात नहीं थी कि ये ही लोग शाह आयोग के समक्ष पलट गये. न केवल उन्होंने अपनी भूमिका से इनकार किया, बल्कि उन्होंने खुद को निदरेष बताते हुए सारा दोष इंदिरा गांधी पर मढ़ दिया. सिद्धार्थ बाबू कोई अपवाद नहीं थे.
शाह आयोग के सामने पेशी के दौरान आयोग के हाल में वह इंदिरा गांधी के पास गये, जो गहरी लाल साड़ी में थीं और उनसे कहा, आज आप बहुत अच्छी लग रही हैं. रुखे शब्दों में इंदिरा ने जवाब में कहा, ‘आपके प्रयास के बावजूद.’ राष्ट्रपति द्वारा लिखी गयी 321 पृष्ठों की इस पुस्तक में बांग्लादेश की मुक्ति, जेपी आंदोलन, 1977 के चुनाव में हार, कांग्रेस में विभाजन, 1980 में सत्ता में वापसी और उसके बाद के विभिन्न घटनाक्रमों पर कई अध्याय हैं. मुखर्जी का कहना है, ‘द ड्रैमेटिक डिकेड रचना त्रय का पहला हिस्सा है, यह पुस्तक 1969 से लेकर 1980 के कालखंड पर है. मैं दूसरे खंड में 1980 और 1998 के बीच की अवधि और तीसरे खंड में 1998 और 2012, जब सक्रिय राजनीति के मेरे कैरियर का समापन हो गया, के बीच की अवधि पर लिखना चाहता हूं.’