मेडिकल साइंस के लिए खास है बैरकपुर की एक महिला

कोलकाता: बैरकपुर की 60 वर्षीय एक महिला अपने इलाके के लिए एक आम महिला है, लेकिन मेडिकल साइंस के लिए वह खास है. यह महिला उन 300 महिलाओं में शामिल है, जो मैलिग्नेंट मेलेनोमा बीमारी से पीड़ित हैं. मेडिकल साइंस के अब तक के इतिहास में पूरे विश्व में मात्र 250 से 300 महिलाएं ही […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 15, 2013 8:24 AM

कोलकाता: बैरकपुर की 60 वर्षीय एक महिला अपने इलाके के लिए एक आम महिला है, लेकिन मेडिकल साइंस के लिए वह खास है. यह महिला उन 300 महिलाओं में शामिल है, जो मैलिग्नेंट मेलेनोमा बीमारी से पीड़ित हैं. मेडिकल साइंस के अब तक के इतिहास में पूरे विश्व में मात्र 250 से 300 महिलाएं ही इस बीमारी का शिकार बनी हैं.

साउथ एशियन जर्नल ऑफ कैंसर में इसका खुलासा किया गया है. जर्नल के अनुसार, राज्य में पहली बार इस बीमारी से ग्रसित होने का मामला सामने आया है. यह बीमारी विरल होने के साथ-साथ लाइलाज भी है. मेडिकल साइंस के पास अब तक इस मर्ज की दवा नहीं है. अधिकतर मामलों में इससे ग्रसित महिलाओं की मौत पांच साल के भीतर हो जाती है. एशियन जर्नल के अनुसार, मात्र 5 से 25 फीसदी मामलों में ही इससे ग्रसित महिलाएं पांच वर्ष व इससे अधिक समय तक जीवित रह पाती हैं.

क्या है मैलिग्नेंट मेलेनोमा

मैलिग्नेंट मेलेनोमा चमड़े का एक प्रकार का कैंसर है. काफी कम मामलों में यह महिलाओं के जननांग में डेरा बनाता है, जिसकी वजह से इसे विरल माना जाता है. महिलाओं के जननांग में पहले एक मांस की थैली यानी टय़ूमर बनना शुरू होता है, जो धीरे-धीरे कैंसर में बदल जाता है, जिसका इलाज लगभग नामुमकिन है. मेडिकल साइंस के पास कमोबेश हर तरह के कैंसरवाले टय़ूमर का इलाज है, लेकिन मैलिग्नेंट मेलेनोमा टय़ूमर के आगे मेडिकल साइंस घुटने टेक चुका है.

एनआरएस में राज्य का पहला मामला

साउथ एशियन जर्नल ऑफ कैंसर के अनुसार, बैरकपुर की उक्त महिला 2011 से इस बीमारी की चपेट में है. उसका इलाज महानगर के नील रतन सरकार (एनआरएस) मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के गायनो विभाग में चल रहा है. गायनोलॉजिस्ट डॉ स्नेहमय चौधरी व रेडियोलॉजिस्ट डॉ दीप्तिमय दास उसका इलाज कर रहे हैं. राज्य में मैलिग्नेंट मेलेनोमा का यह पहला मामला है. पीड़ित महिला को अब अस्पताल से छुट्टी दे दी गयी है.

Next Article

Exit mobile version