तपने के उपरांत ही जीवन सार्थक है : राजन जी महाराज
हावड़ा. मानव जीवन में तप का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है. जीवन में तपे रहने से कुछ भी असंभव नहीं है. यदि आप चाहते हैं कि आप की बात आपकी संतान सुने,आपकी प्रतिष्ठा व सम्मान बनी रहे व आप स्वयं के जीवन के सार्थक उत्थान की मंशा रखते हैं, तो जीवन को तप में लगायें, क्योंकि […]
हावड़ा. मानव जीवन में तप का बड़ा महत्वपूर्ण स्थान है. जीवन में तपे रहने से कुछ भी असंभव नहीं है. यदि आप चाहते हैं कि आप की बात आपकी संतान सुने,आपकी प्रतिष्ठा व सम्मान बनी रहे व आप स्वयं के जीवन के सार्थक उत्थान की मंशा रखते हैं, तो जीवन को तप में लगायें, क्योंकि जो तपेगा वो गलेगा, जो गलेगा वो ढलेगा, जो ढलेगा वो बनेगा, जो बनेगा वो मिटेगा और जो मिटता है, वही सदा के लिए बना रहता है. ये बातें पूज्य राजन जी महाराज ने मानस मंथन समिति के तत्वावधान में हावड़ा के श्याम गार्डेन में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के पांचवें दिन कहीं. पूज्य महाराज श्री ने केवट प्रेम की कथा सुनाते हुए कहा कि यदि संभव हो तो मानव को भगवान से मांगने की प्रवृत्ति को त्यागने की कोशिश करनी चाहिए, क्योंकि केवट भइया ने अपने पूरे जीवन में भगवान से कुछ नहीं मांगा. भगवान के देने पर भी उन्होंने नहीं स्वीकारा. हालांकि, अंत में प्रभु ने केवट भइया को प्रभु की विमल भक्ति प्राप्त हुई. इसी प्रकार यदि हम भगवान से कुछ मांगने की इच्छा नहीं रखेंगे तो, भगवान हमें अपनी भक्ति स्वयं ही देंगे. शनिवार को यजमान मानस मंथन समिति के कर्णधार ओमप्रकाश मिश्र, विशिष्ट अतिथि रामेश्वर प्रसाद, श्याम बिहारी सिंह, अरुण पांडेय, जेपी पांडेय, शंभुनाथ पाठक व अन्य मौजूद रहे.