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वीरभूम मामले में अदालत की रहेगी नजरदारी

कोलकाता: पारुई के सात्तारे ग्राम की रहने वाली गृहिणी रात भर पेड़ से बांध कर पीटने के मामले से कलकत्ता हाइकोर्ट अपनी नजरदारी फिलहाल नहीं हटायेगा. इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी. मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर व न्यायाधीश जयमाल्य बागची की खंडपीठ में स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) मामले पर सुनवाई […]

कोलकाता: पारुई के सात्तारे ग्राम की रहने वाली गृहिणी रात भर पेड़ से बांध कर पीटने के मामले से कलकत्ता हाइकोर्ट अपनी नजरदारी फिलहाल नहीं हटायेगा. इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्ते बाद होगी. मंगलवार को मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर व न्यायाधीश जयमाल्य बागची की खंडपीठ में स्वत: संज्ञान (सुओ मोटो) मामले पर सुनवाई के दौरान पीड़ित के पति ने पुलिस पर निष्क्रियता का मामला दायर करने की अनुमति मांगी. खंडपीठ ने यह अनुमति दे दी. उपयुक्त फोरम में इसके लिए आवेदन करने का निर्देश दिया गया है.

उल्लेखनीय है कि सुओ मोटो के मामले की सुनवाई के दौरान वकील विकास रंजन भट्टाचार्य ने कहा कि इस घटना में बर्बरता अपने चरम पर थी. अदालत इसका सुओ मोटो के जरिये विचार करे. पीड़िता के वकील फिरोज एडुलजी ने पुलिस निष्क्रियता का मामला करने के लिए अदालत की अनुमति मांगी. खंडपीठ ने कहा कि रिट आवेदन करने पर सुओ मोटो करने की जरूरत नहीं होती. खंडपीठ ने उपयुक्त फोरम में यह आवेदन करने की अनुमति दी. हालांकि पुलिस की जांच को लेकर राज्य सरकार पर सवालिया निशान लगे.

खंडपीठ ने जांच की प्रगति के संबंध में सरकारी वकील से सवाल पूछा. मौजूद सरकारी वकील, अतिरिक्त एडवोकेट जनरल लक्ष्मी गुप्त ने कहा कि जांच शुरू हुई है. अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक की निगरानी में जांच हो रही है. न्यायाधीश ने पूछा कि पुलिस अधीक्षक के जरिये जांच क्यों नहीं हो रही, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक क्यों. राज्य सरकार की जिला पुलिस पर इतनी आस्था क्यों है. लक्ष्मी गुप्त ने कहा कि राज्य सरकार घटना की जांच सीआइडी से कराने की सोच रही है. खंडपीठ ने टिप्पणी की कि पुलिस जांच करने पर भी पीड़ित को कई बार उपयुक्त न्याय नहीं मिलता. मुख्य न्यायाधीश ने केरल की एक घटना का उल्लेख करते हुए कहा कि 15 वर्ष बीत जाने पर भी पीड़ित को अभी तक न्याय नहीं मिला है.

हाइकोर्ट में भाजपा के वकील सोम मंडल ने बताया कि वीरभूम में इस तरह की घटना अरसे से हो रही है लेकिन राज्य सरकार कोई कदम नहीं उठा रही. अदालत को इस संबंध में हस्तक्षेप करना चाहिए.

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