कोलकाता. पूर्व जिमनास्ट और 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में जज रह चुकीं सौमिता डे शहर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रही है. 2012 से न्यूरोसार्कोइडोसिस से जूझ रही 27 वर्षीय सौमिता अपने पैर उठा भी नहीं सकती हैं. उनके शरीर के निचले हिस्से को लकवा मार चुका है. करीब एक दशक ( 1998 से 2008 ) तक राष्ट्रीय स्तर पर बंगाल का प्रतिनिधित्व करने के साथ ही सौमिता ने 2005 से कोचिंग में कैरियर शुरू किया. उसने पटियाला के नेताजी सुभाष राष्ट्रीय खेल संस्थान से 2008 में कोचिंग प्रशिक्षण कार्यक्रम पूरा किया. अस्पताल में अपने बिस्तर से बातचीत करते हुए सौमिता ने कहा कि मेरी जिंदगी अच्छी चल रही थी लेकिन अचानक सब कुछ थम गया. उनकी बहन सोमा डे ने कहा कि शुरुआत में उसे मूत्राशय संबंधी परेशानियां आयीं जिसका इलाज स्थानीय अस्पताल में कराया गया. उसके दो दिन के भीतर उनकी हालत बिगड़ गयी और वह चल भी नहीं पा रही थीं. उसके बाद हम उसे एसएसकेएम ले गये, जहां डाक्टरों ने कहा कि उसकी हड्डियों में टीबी हो गया है. उन्होंने उपचार शुरू किया लेकिन कोई फायदा नहीं होता देख हम उसे घर ले आये और न्यूरोलाजिस्ट से उपचार शुरू कराया. उसमें भी फायदा नहीं होने पर उसे बेंगलूरु स्थित निमहैंस में दिखाया गया. सौमिता ने बताया कि मुझे हड्डियों का टीबी नहीं हुआ था. मेरा गलत उपचार हुआ. निम्हैंस में उपचार के बाद मेरी स्थिति सुधरी लेकिन उसके बाद हालत खराब हो गयी और दोनों पैरों में लकवा मार गया. मेरे बाल भी उड़ गये और शरीर सूज गया.
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जिंदगी और मौत के बीच जूझ रही है पूर्व जिमनास्ट
कोलकाता. पूर्व जिमनास्ट और 2010 दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में जज रह चुकीं सौमिता डे शहर के एक अस्पताल में जिंदगी और मौत के बीच लड़ाई लड़ रही है. 2012 से न्यूरोसार्कोइडोसिस से जूझ रही 27 वर्षीय सौमिता अपने पैर उठा भी नहीं सकती हैं. उनके शरीर के निचले हिस्से को लकवा मार चुका है. करीब […]
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