कोलकाता : सफाई कर्मियों के काम पर न आने व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की खामोशी के कारण महानगर के निजी नर्सिग होम रोग छुटकारे की जगह रोग प्रजनन केंद्र में बदलते जा रहे हैं.
कोलकाता में बड़ी संख्या में छोटे व बड़े नर्सिग होम हैं, जिनमें केवल कोलकाता के ही नहीं, बल्कि राज्य के अन्य जिलों, दूसरे राज्यों व कई पड़ोसी देशों के मरीज भी इलाज करवाने के लिए यहां आते हैं. अस्पतालों से बैंडेज, सीरिंज, दवाई के डब्बे आदि के रूप में जो मेडिकल कचरा निकालता है, उसे कोलकाता नगर निगम के कूड़ेदान में फेंकना मना है.
इस कचड़े को निगम के सफाईकर्मी भी नहीं उठाते हैं, बल्कि इसे उठाने के लिए समरंकी इनवायरन्मेंटल मैनेजमेंट नामक एक संस्था के साथ शहर के नर्सिग होम वालों ने समझौता कर रखा है. इसी संस्था के कर्मी न केवल महानगर के नर्सिग होम से मेडिकल कचड़ा उठाते हैं, बल्कि कचड़ा रखने के लिए बनाये गये विशेष पोलिथीन बैग भी इसी संस्था से ही नर्सिग होम वालों को खरीदना पड़ता है.
पर पिछले एक सप्ताह से इस संस्था ने नर्सिग होमों से कचड़ा उठाना बंद कर दिया है. इस वजह से शहर के नर्सिग होमों में एक अजीब स्थिति उत्पन्न हो गयी है.
सेंट्रल एवेन्यू स्थित रिकवरी नर्सिग होम के डॉ सुशील अग्रवाल ने बताया कि हम लोग अधिक से अधिक दो दिन तक अपने यहां कचरा रख सकते हैं. पर इससे अधिक दिन रखने पर गंध के साथ संक्रामक रोग फैलने की आशंका उत्पन्न हो जाती है.
एक तो नर्सिग होम में इतनी जगह नहीं होती है कि वहां मेडिकल कचरे को जमा किया जा सके. सबसे मुश्किल बात यह है कि घरों से निकलनेवाले कचरे की तरह इसे अधिक देर तक रखना संभव नहीं है. मरीजों के शरीर से खोले गये बैंडेज से दरुगध आने लगती है.
डॉ अग्रवाल ने बताया कि इस मुद्दे पर समरंकी से बात करने पर कोई संतोषप्रद जवाब नहीं मिलता है. पता चला है कि कचरा उठानेवाली इस संस्था के आपसी विवाद के कारण मेडिकल कचरा उठाने का काम बंद कर दिया गया है. डॉ अग्रवाल के अनुसार यह स्थिति पिछले ढाई महीने से चल रही है.
बीच में एक–दो दिन के लिए ये लोग काम बंद कर देते थे. लेकिन इस बार तो हद हो गयी है. सात दिन से नर्सिग होम में मेडिकल कचरा जमा है. आसपास के लोग भी शिकायत कर रहे हैं.
डॉक्टरों व कर्मियों को दरुगध के कारण काम करने में दिक्कत हो रही है. मरीज व परिजन भी परेशान हैं. पर कुछ नहीं किया जा रहा है. प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी खामोश बैठा है.