बिहार का कटु अनुभव लेकर रांची जायेंगे उद्योगपति

कोलकाता. एडवांटेज झारखंड फूड प्रोसेसिंग इनवेस्टर समिट-2015 में हिस्सा लेने के लिए कोलकाता से करीब एक दर्जन उद्योगपतियों को न्योता मिला है. महानगर के उद्योगपतियों ने झारखंड के मुख्यमंत्री का न्योता स्वीकार तो किया है हालांकि उनके मन में अब भी आशंका है कि उनकी इस समिट में भागीदारी कितनी सफल हो सकेगी. बिहार का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 23, 2015 6:29 AM
कोलकाता. एडवांटेज झारखंड फूड प्रोसेसिंग इनवेस्टर समिट-2015 में हिस्सा लेने के लिए कोलकाता से करीब एक दर्जन उद्योगपतियों को न्योता मिला है. महानगर के उद्योगपतियों ने झारखंड के मुख्यमंत्री का न्योता स्वीकार तो किया है हालांकि उनके मन में अब भी आशंका है कि उनकी इस समिट में भागीदारी कितनी सफल हो सकेगी. बिहार का पूर्व का अनुभव कइयों के मन में पूर्वाग्रह की स्थिति उत्पन्न कर रहा है.

समिट में हिस्सा लेनेवाले अधिकांश उद्योगपतियों ने तो इस बाबत कुछ भी औपचारिक रूप से कहने से इनकार किया लेकिन खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में अग्रणी केवेंटर ग्रुप के चेयरमैन एमके जालान को आज भी बिहार के कटु अनुभव की पीड़ा है. वह कहते हैं कि राज्य सरकारों का निवेश का न्योता स्वागतयोग्य कदम है. लेकिन उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन निवेशकों को वह बुला रहे हैं उनकी मूलभूत समस्याओं की तरफ भी ध्यान दें. अन्यथा न्योता निर्थक हो जाता है.

श्री जालान बताते हैं कि बिहार फूड पार्क प्रोजेक्ट के लिए वह करीब 700 करोड़ रुपये का निवेश करने को तैयार थे. निवेश के तहत और 150 करोड़ रुपये बिजली उत्पादन के लिए भी खर्च करनेवाले थे. फूड पार्क के लिए बिहार बिल्कुल उपयुक्त था क्योंकि यह देश का तीसरा सबसे बड़ा सब्जी उत्पादक राज्य तथा सातवां फल उत्पादक राज्य है. यह मकई, दुग्ध, चारा आदि के प्रसंस्करण तथा केले को पकाने की इकाई स्थापित करने के लिए आदर्श राज्य था.

इस परियोजना के लिए विश्व की अग्रणी खाद्य संबंधी प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंपनी, पीएम ग्रुप को बतौर प्रोजेक्ट कंसलटेंट नियुक्त किया गया था. छह विदेशी कंपनियों के साथ भी उनका करार हो गया था, जो पार्क में उत्पादित सामानों को खरीदती. इससे बिहार के किसानों को भी खासा फायदा होता. जैसा कि बंगाल के लगभग 40 हजार किसान हर रोज केवेंटर ग्रुप को अपना उत्पाद बेचते हैं. परियोजना के लिए भले ही बीआइएडीए ने 80 एकड़ जमीन मुहैया कराने का वादा किया था लेकिन वह जमीन नहीं दे पाये. तीन वर्षो तक उनके चक्कर काटने के बाद कहा गया कि निजी तौर पर जमीन वह खरीद लें. भागलपुर से 15 किलोमीटर दूर 50 एकड़ जमीन का पता चला. 45 एकड़ जमीन का अधिग्रहण भी कर लिया गया. लेकिन पांच एकड़ जमीन में स्थानीय लोगों ने अड़ंगा लगा दिया. वह वहां की मौजूदा कीमत से 10 गुणा अधिक कीमत मांगने लगे. इससे 45 एकड़ जमीन देनेवाले भी कहने लगे कि यदि कीमत अधिक अदा की गयी तो वह भी अधिक पैसे लेंगे. समस्या हल के लिए मुख्यमंत्री कार्यालय को छह पत्र लिखे गये.

वे सभी पत्र आज भी उनके पास सुरक्षित हैं. लेकिन मुख्यमंत्री से मुलाकात संभव नहीं हो सका. आखिरकार कंपनी ने फूड पार्क से हाथ खींच लेने का फैसला किया. श्री जालान कहते हैं कि भले ही कंपनी को इससे 25 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, लेकिन सर्वाधिक नुकसान उन किसानों का हुआ जिनकी आय इस फूड पार्क से बढ़ने वाली थी. वह कहते हैं कि अब झारखंड से बुलावा आया है. आशा है कि पूर्व की कठिनाइयों का सामना अब उन्हें नहीं करना होगा. राज्य सरकारों को निवेशकों की मूलभूत जरूरतों को ध्यान में रख कर सभी किस्म की तैयारी करनी चाहिए. शायद पूर्व का कटु अनुभव उनके रास्ते का रोड़ा अब न बने.

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