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बेरुखी. फरजाना के भाई ने ममता पर साधा निशाना, कहा न खुद आयीं, न ही किया फोन

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कोलकाता: दिवंगत फरजाना आलम के भाई खुर्शीद आलम ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि ममता बनर्जी ने हमारे साथ इंसाफ नहीं किया है. हमें किसी से नहीं केवल ममता बनर्जी से शिकायत है. जो फरजाना आलम के मरने के बाद न तो हमारे घर आयीं और न ही फोन किया और न कोई […]

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कोलकाता: दिवंगत फरजाना आलम के भाई खुर्शीद आलम ने मुख्यमंत्री पर निशाना साधते हुए कहा कि ममता बनर्जी ने हमारे साथ इंसाफ नहीं किया है. हमें किसी से नहीं केवल ममता बनर्जी से शिकायत है. जो फरजाना आलम के मरने के बाद न तो हमारे घर आयीं और न ही फोन किया और न कोई संदेश दिया.

यह बड़े शर्म की बात है. श्री आलम ने कहा कि शराब पी कर मरनेवालों को देखने के लिए ममता बनर्जी दौड़ी चली जाती हैं, पर फरजाना आलम जो उनकी पार्टी की एक अहम हस्ती थी, उन्हें देखने के लिए वह नहीं आयीं. जिस तरह से फरजाना आलम को अपमानित किया गया और चुनाव में पार्टी के लोगों ने उन्हें हराया, पार्टी प्रमुख होने के नाते ममता बनर्जी और सुब्रत बक्सी को दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए थी, लेकिन कुछ भी नहीं किया गया. उनके ग्यारह वर्ष के बेटे के सिर पर कोई हाथ रखने तक नहीं आया.

अल्पसंख्यकों के वोट के लिए ही बनाया था डिप्टी मेयर
दिवंगत फरजाना आलम के भाई ने आरोप लगाया कि केवल अल्पसंख्यकों के वोट को खींचने के लिए उनकी बहन को डिप्टी मेयर बनाया गया था. श्री आलम ने कहा कि ममता बनर्जी ने जब उन्हें डिप्टी मेयर बनाया था, तब हमें लगा कि उन्हें इनाम मिला है. पर बाद में पता चला कि केवल अल्पसंख्यकों के वोट बैंक को आकर्षित करने के लिए उन्हें यह पद दिया गया था. दो वर्ष तक तो उन्हें काम तक नहीं करने दिया गया, पर जब उन्होंने अपनी मेहनत व लगन से वार्ड में काफी काम कर अपनी जगह बना ली तो उन्हें वहां से हटा कर दूसरी जगह भेज दिया गया. 144 वार्ड में से केवल फरजाना आलम का ही वार्ड बदला गया, जो यह दर्शाता है कि तृणमूल और उसके नेताओं की नीयत ठीक नहीं थी. श्री आलम ने कहा कि हम लोग यहां राजनीति करने नहीं आये हैं, पर सब कुछ लोगों की नजर के सामने है. फरजाना आलम के साथ तृणमूल कांग्रेस ने जो हरकत की है.

अब जनता ही उसका फैसला करेगी. श्री आलम ने इलजाम लगाया कि तृणमूल कांग्रेस पर उनकी बहन की लाश के साथ राजनीति करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि वह जब तक जिंदा थीं, तब तक तृणमूल की सदस्य थी, पर मरने के बाद तो कम से कम उनकी लाश के साथ राजनीति नहीं की जाये. जब वह अस्पताल में भर्ती हुई थीं, तो उसे नाटक बताया जा रहा था, लेकिन जब उनकी मौत हो गयी तो उन लोगों को लगा कि भूल हो गयी है. उस भूल को सुधारने के लिए तृणमूल कांग्रेस उनकी लाश को विभिन्न जगह ले जा कर अपनी खराब हुई छवि को सुधारना चाहती थी, जो हमें मंजूर नहीं. उन्हें अस्पताल में कोई देखने तक नहीं आया, अब सहानुभूति दिखा रहे हैं.

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