समाचार पत्रों की आजादी में हस्तक्षेप नहीं: हाइकोर्ट

कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. एमपीएस कंपनी के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी को बुधवार को समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया. इस पर आपत्ति जताते हुए कुछ सरकारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 18, 2015 7:28 AM
कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने समाचार पत्रों की स्वतंत्रता के मामले में किसी प्रकार का हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. एमपीएस कंपनी के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी को बुधवार को समाचार पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित किया गया. इस पर आपत्ति जताते हुए कुछ सरकारी अधिवक्ताओं और बार एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रणब दत्त ने मुख्य न्यायाधीश से कुछ समाचार पत्रों के खिलाफ अवमानना आदेश जारी करने की अपील की. उनका कहना था कि मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी को गलत तरीके से दर्शाया गया है.

इस पर मुख्य न्यायाधीश कदम उठायें. प्रणब दत्त ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश संवैधानिक पद पर हैं. वह राज्य की औद्योगिक नीति के संबंध में कोई गलत वक्तव्य नहीं दे सकतीं. लेकिन बावजूद इसके कुछ समाचार पत्रों ने उनकी टिप्पणी को अलग तरीके से छापा है. इससे राज्य की छवि खराब हुई है.

विपक्ष इस टिप्पणी को हथियार बना रहा है. विधानसभा में भी इस पर चर्चा करने की मांग उठ रही है. इस पर मुख्य न्यायाधीश मंजुला चेल्लूर ने सवाल उठाया कि उनसे वह क्या चाहते हैं. पूर्व में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीशों के साथ ऐसे ही विषय पर चर्चा की थी. उनका भी कहना था कि न्यायापालिका को मीडिया के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए. संविधान ने हर किसी को अपना नजरिया रखने की आजादी दी है.

उन्होंने जो भी टिप्पणी की थी वह एक विशिष्ट मामले को लेकर टिप्पणी थी. हो सकता है कि कुछ समाचार पत्रों ने वक्तव्य को गलत तरीके से पेश किया. न्यायाधीश जयमाल्य बागची ने कहा कि मीडिया के खिलाफ अवमानना की नोटिस जारी करना न्यायापालिका के लिए उचित नहीं होगा. हालांकि प्रणब दत्त ने एक संवाददाता सम्मेलन में दावा किया कि मुख्य न्यायाधीश ने इस संबंध में कदम उठाने का भरोसा दिया है. उन्होंने बताया कि मुख्य न्यायाधीश को उन्होंने कुछ समाचार पत्रों की प्रतियां भी दी हैं. उल्लेखनीय है कि एमपीएस के मामले की सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कथित तौर पर सवाल उठाया था कि राज्य में निवेश का माहौल है क्या. वह केरल और कर्नाटक जैसे राज्यों के उद्योगपतियों की मानसिकता को समझती हैं. वे पश्चिम बंगाल में कभी नहीं आयेंगे. उन्होंने देखा है कि तेलंगाना में मुख्यमंत्री कार्यालय भी सीधे उद्योगपतियों से बातचीत करता है.

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