संसदीय सचिव की बर्खास्तगी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जायेगी सरकार

कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट द्वारा परिषदीय सचिव पद को अवैध करार देते हुए इसे खारिज करने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है. राज्य सचिवालय नबान्न भवन के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस फैसले के खिलाफ जल्द राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 19, 2015 6:49 AM
कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट द्वारा परिषदीय सचिव पद को अवैध करार देते हुए इसे खारिज करने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट में जाने का फैसला किया है. राज्य सचिवालय नबान्न भवन के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, इस फैसले के खिलाफ जल्द राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की जायेगी. इस पर चर्चा करने के लिए राज्य की कानून मंत्री चंद्रिमा भट्टाचार्य ने कानूनी विशेषज्ञों के साथ चर्चा की है. कानूनी विशेषज्ञों की राय लेने के बाद अब राज्य सरकार शुक्रवार को परिषदीय सचिव के पद को बरकरार रखने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने जा रही है.

संभवत: राज्य सरकार की ओर से इस मामले की पैरवी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल कर सकते हैं. गौरतलब है कि कलकत्ता हाइकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गये परिषदीय सचिव के पद को असंवैधानिक करार देते हुए इसे खारिज करने का निर्देश था. वर्ष 2013 में राज्य सरकार ने विभिन्न विभागों में मंत्रियों के साथ काम काज में सहायता करने के लिए परिषदीय सचिवों की नियुक्ति की थी, इसके लिए राज्य सरकार ने एक विधेयक ‘वेस्ट बंगाल पार्लियामेंट्री सेक्रेटरी एलायंस सैलरी एंड मिसलेनियस एक्सपेंडिचर एक्ट-2012 भी पारित किया था. लेकिन अंतत: हाइकोर्ट ने इस विधेयक को अंसवैधानिक करार दिया.

क्या कहा था हाइकोर्ट ने हाइकोर्ट की मुख्यमंत्री न्यायाधीश मंजुला चेल्लुर व न्यायाधीश असीम कुमार बनर्जी की डिवीजन बेंच ने अपने आदेश में कहा था कि संसदीय एक्ट 164 (1ए) के अनुसार किसी भी राज्य में वहां के कुल विधायक संख्या में से सिर्फ 15 प्रतिशत को ही मंत्री बनाया जा सकता है और उन्हें मंत्री की सभी सुविधाएं प्रदान की जा सकती हैं. लेकिन राज्य सरकार में इसकी संख्या इससे अधिक है, क्योंकि सरकार ने परिषदीय सचिवों की नियुक्ति की है और इन्हें भी राज्य मंत्री जैसी सुविधाएं दी जा रही हैं. यह संविधान के खिलाफ है. राज्य सरकार के पास परिषदीय सचिव नियुक्त करने का अधिकार ही नहीं है. राज्य के विभिन्न विभागों के लिए 44 मंत्री बनाये गये हैं और उसके बाद मुख्यमंत्री ने 25 परिषदीय सचिवों की नियुक्ति की है. इस तरह से आम जनता के रुपये की बरबादी हो रही है.

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