बाबा तारकनाथ का शुरू हो गया श्रावणी मेला

हुगली : रिमझिम बारिश के बीच बोलबम के नारे लगाते हुए कांवरियों का दल बैद्यवाटी के निमाई तीर्थघाट से अपने कांवर में गंगा जल भर कर तारकेश्वर धाम के चल दिये हैं. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में चंदननगर महकमा क्षेत्र में पड़नेवाला यह एक प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थल है. यहां हालांकि साल भर तीर्थयात्रियों का […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 26, 2015 2:30 AM
हुगली : रिमझिम बारिश के बीच बोलबम के नारे लगाते हुए कांवरियों का दल बैद्यवाटी के निमाई तीर्थघाट से अपने कांवर में गंगा जल भर कर तारकेश्वर धाम के चल दिये हैं. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में चंदननगर महकमा क्षेत्र में पड़नेवाला यह एक प्रसिद्ध शैव तीर्थस्थल है.
यहां हालांकि साल भर तीर्थयात्रियों का तांता लगा रहता है, पर सावन का महीना खास होता है, जब लाखों की संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं. कोलकाता से 58 किलोमीटर और बैधवाटी से 37 किलोमीटर की दूरी पर स्थित इस मंदिर में हजारों की संख्या में श्रद्धालु जलाभिषेक करते हैं. श्रद्धालुओं को कोई तकलीफ न हो इसके लिए जुलाई व अगस्त महीने में 2000 पुलिसकर्मी को तारकेश्वर धाम जाने वाले हर मार्ग में तैनात किया है. जिला पुलिस अधीक्षक प्रवीण कुमार त्रिपाठी ने बताया कि बैद्यवाटी के निमाई तीर्थ घाट और तारकेश्वर मंदिर और दूधपुकुर में सुरक्षा की चौकस व्यवस्था की गयी है. सीसीटीवी, डोर मेटल फ्रेम, आरटी मोबाइल के अलावा मोटर साइकिल मोबाइल की व्यवस्था है.
स्पीड बोट की भी व्यवस्था की गयी है. बैद्यवाटी, तारकेश्वर रोड, दिल्ली रोड और दुर्गापुर एक्सप्रेस हाई-वे पर पुलिस की विशेष व्यवस्था है. बैद्यवाटी नगर पालिका और तारकेश्वर नगर पालिका भी अपनी और से साफ-सफाई की व्यवस्था रखी है.तारकेश्वर के विधायक और राज्य के पूर्व पर्यटन मंत्री रक्षपाल सिंह तारकेश्वर को बंगाल के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र में शामिल करने के लिए अपनी ओर से प्रयास जारी रखे हुए है.
आरामबाग संसदीय क्षेत्र में यह मंदिर आता है, इसलिए वहां के सांसद अपरूपा पोद्दार उर्फआफरीन अली ने भी इसे पर्यटन क्षेत्र के तौर पर विकसित करने के लिए काफी प्रयास चला रही हैं. उनका मानना है कि तारकेश्वर में शिव धाम के अलावा तारकेश्वर के ही देवलपाड़ा में बौद्ध मंदिर है और कामारपुकुर में रामकृष्ण परमहंस का जन्मस्थल है. तारकेश्वर का मंदिर अति प्राचीन और आठ चाला की आकृति में बनी हुई है, इसे राजा भार्म्मल देव ने निर्मित करवाया था. मंदिर के उत्तर में दूधपुकुर है.
उसमें स्नान कर जो तारकनाथ के मंदिर में पूजा करते हैं, उनकी हर मनोकामना पूर्ण होती है ऐसा लोगों का विश्वास है. मंदिर परिसर में ही काली और लक्ष्मी नारायण का मंदिर भी है. फागुन की शिवरात्रि और चैत महीने के गजन उत्सव के दौरान भी मंदिर में काफी भीड़ उमड़ती है.

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