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नाक से पानी खींचने की क्रिया से हो सकती है मौत

कोलकाता. भारत में लाखों लोग रोजाना नदियों व तालाबों में स्नान करते हैं, काफी लोग योग क्रिया के तहत नाक से पानी खींचते हैं, लेकिन ऐसा करना जानलेवा हो सकता है. चिकित्सकों का कहना है कि नदियों व तालाबों में स्नान करना व नाक से पानी खींचना जानलेवा साबित हो सकता है. डॉक्टरों की इस […]

कोलकाता. भारत में लाखों लोग रोजाना नदियों व तालाबों में स्नान करते हैं, काफी लोग योग क्रिया के तहत नाक से पानी खींचते हैं, लेकिन ऐसा करना जानलेवा हो सकता है. चिकित्सकों का कहना है कि नदियों व तालाबों में स्नान करना व नाक से पानी खींचना जानलेवा साबित हो सकता है. डॉक्टरों की इस चिंता का कारण पिछले दिनों महानगर के कोठारी मेडिकल सेंटर में इलाज के लिए आये एक 15 वर्षीय किशोर की बीमारी है.

महानगर के वाटगंज निवासी उस किशोर को इस वर्ष अप्रैल में कोठारी मेडिकल सेंटर में भरती कराया गया था, उसे काफी तेज बुखार, शरीर में खिंचाव व जबरदस्त दर्द इत्यादि की शिकायत थी. कुछ दिन इलाज के बाद हालत थोड़ी ठीक होने के बाद उक्त किशोर को अभिभावक अस्पताल से लेकर चले गये. बाद में उसकी मौत हो गयी. उसकी जांच में लगी डॉक्टरों को यह जानकर होश उड़ गये कि उक्त किशोर नेगलेरिया फावलेरी नामक एक दुर्लभ रोग से ग्रस्त था. कोठारी मेडिकल सेंटर के डॉ मनीष चौधरी ने बताया कि 1965 में अॉस्ट्रेलिया में सबसे पहले इस रोग का पता चला था, तब से लेकर आज तक पूरी दुनिया में इस रोग के केवल 300 मामले सामने आये हैं.

भारत में सबसे पहले 2001 में बेंगलुरु में नेगलेरिया फावली का मामला सामने आया था. उत्तर-पूर्व में पहली बार इस रोग के प्रकोप का पता चला है. डॉ चौधरी के अनुसार, यह बेहद ही खतरनाक रोग है. इस रोग में मृत्यु दर 100 में 95 है.

अस्पताल के एक और चिकित्सक डॉ सुजीत कुमार भट्टाचार्य ने बताया कि आमतौर पर नदी व तालाबों के गंदे पानी के नाक के द्वारा दिमाग तक पहुंचने के कारण लोग इस रोग का शिकार हो सकते हैं. हिंदू धर्म में नाक के द्वारा पीने खींचने की एक क्रिया है, ऐसा करना भी इस रोग को आमंत्रित करने के समान है. डॉ चौधरी ने कहा कि हो सकता है कि इससे पहले भी लोग इस रोग का शिकार हुए हों, लेकिन शोध नहीं होने के कारण अब तक आम लोगों के साथ-साथ चिकित्सक भी इससे अनजान थे. अब इस मामले के सामने आने के बाद हमें सचेत रहने की जरूरत है. डॉ चौधरी ने कहा कि भले ही यह रोग बेहद जानलेवा है, लेकिन अगर आरंभ में ही इसकी पहचान हो जाये, तो इसका इलाज संभव है.

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