इच्छाओं का निरोध करना तप है. पांचों इंद्रिय विषयों को तथा चारों कषायों को रोक कर शुभ ध्यान की प्राप्ति के लिए आत्म-चिंतन करना और एकांकी ध्यान में लीन होना तप है. कर्मों का क्षय करना ही तप है. हावड़ा के विभिन्न जैन मंदिरों में भी काफी उत्साह के साथ दसलक्षण पर्व मनाया जा रहा है. बृहस्पतिवार को बंगवासी मंदिर में भी सुबह करीब 6 बजे कलश प्रक्षाल के बाद पूजा शुरू हुई जो करीब 10 बजें तक चली. लखनऊ से पधारे पंडित अकलंकजी शास्त्री के पूजा के बाद रोज प्रवचन हो रहे हैं. पूजा में नवीन बज, कमल काला, जम्बू पाटनी, संतोष सेठी, रतनलाल गंगवाल, सुरेश बज, स्वदेश जैन, राजेश काला, संदीप काला, दयाचंद जैन, राजेश पहाड़िया, चन्दन जैन, नवनीत बज, पवन छाबड़ा, धनराज छाबड़ा, संजय बड़जात्या, राजेश काला, चंदा पाटनी, अनीता धगड़ा, सुनीता सेठी, गुणमाला देवी, सुमित्रा छाबड़ा, खुशबु जैन, समेत काफी बड़ी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे. हर साल की तरह इस साल भी प्राप्त सुचना के अनुसार करीब 40 की संख्या में महिला पुरुषों ने दस दिन के उपवास किये है.
दमदम की डिंपल सेठी ने तो 16 दिन के उपवास रखे हैं. सबसे बड़ा त्याग और उपवास कर रखा है बेलगछिया उपवन जैन मंदिर में चातुर्मास कर रहे मुनि श्री 108 सुपार्श्वसागरजी महाराज के संघ में संघस्थ ब्रह्मचारी सुरेश भैया ने जिन्होंने सौलह कारण के 32 दिनों तक उपवास रखने का संकल्प ले रखा है. बंगाल दिगम्बर जैन तीर्थ संरक्षिणी महासभा के सूचना और प्रसारण मंत्री ललित सरावगी ने बताया कि शुक्रवार को त्याग धर्म की पूजा होगी.