ढूंढ़ा लेटेराइट मिट्टी में आर्सेनिक का हल

कोलकाता. भू-जल में आर्सेनिक विषाक्तता का सबसे सरल और सस्ता हल कुछ और नहीं बल्कि भारत के कई हिस्सों में पाई जानेवाली लाल लेटेराइट मिट्टी है. यह जानकारी वैज्ञानिकों ने दी है. आइआइटी खड़गपुर के केमिकल इंजीनियरों के एक दल ने लेटेराइट मिट्टी का इस्तेमाल करते हुए कम कीमत, कम रखरखाव वाले और पर्यावरण के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 5, 2015 8:08 AM
कोलकाता. भू-जल में आर्सेनिक विषाक्तता का सबसे सरल और सस्ता हल कुछ और नहीं बल्कि भारत के कई हिस्सों में पाई जानेवाली लाल लेटेराइट मिट्टी है. यह जानकारी वैज्ञानिकों ने दी है. आइआइटी खड़गपुर के केमिकल इंजीनियरों के एक दल ने लेटेराइट मिट्टी का इस्तेमाल करते हुए कम कीमत, कम रखरखाव वाले और पर्यावरण के अनुकूल काम करनेवाला ऐसा स्वदेशी वाटर फिल्टर तैयार किया है, जो कि महज दो पैसे प्रति लीटर की दर से पीने योग्य पानी तैयार कर सकता है. भू-जल में आर्सेनिक विषाक्तता पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, झारखंड, पंजाब, हरियाणा और असम में स्वास्थ्य से जुड़ी एक गंभीर समस्या है. अधिकतर प्रभावित जिले ब्रह्मपुत्र या गंगा नदी बेसिन में स्थित हैं.

इस नवोन्मेषी हल से पहले 12 साल से ज्यादा समय तक अध्ययन का नेतृत्व करनेवाले प्रोफेसर शीर्षेंदु डे ने बताया कि उन्हें यह नवीन विचार उस समय आया, जब उन्हें यह समझ आया कि जिन स्थानों पर लेटेराइट मिट्टी पायी जाती है, वहां आर्सेनिक विषाक्तता की समस्या नहीं है. इस फिल्टर में बैक्टीरिया पैदा करनेवाले सक्रिय कार्बन, चारकोल, दानेदार रेत, सक्रिय लेटेराइट और कच्ची लेटेराइट की परतें होंगी. इस फिल्टर को व्यवसायिक तौर पर अगले कुछ माह में लॉन्च किया जा सकता है. वोन्मेष के लिए आइआइटी ने दो पेटेंट करवाये हैं और इसके साथ ही झारखंड के एक उद्यमी को खड़गपुर में फिल्टर निर्माण संयंत्र लगाने के लिए लाइसेंस दिया गया है.

आर्सेनिक युक्त जल से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, आर्सेनिक युक्त जल के कारण लंबे समय से स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं पेश आती रही हैं. इन समस्याओं में त्वचा से जुड़ी समस्याएं, त्वचा का कैंसर, किडनी, फेफड़े और ब्लैडर का कैंसर और कुछ अन्य बीमारियां शामिल हैं. डे ने कहा कि आइआइटी के इन नवोन्मेष की प्रशंसा यूनिसेफ के जल, सफाई व स्वच्छता विशेषज्ञ एसएन दवे ने की है. इस नवोन्मेष को केंद्रीय विज्ञान व तकनीक मंत्रालय, आर्सेनिक टास्क फोर्स और पश्चिम बंगाल के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग की ओर से पहले ही मंजूरी मिल चुकी है.

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