बाल विवाह मेले में उमड़ रही भीड़

कोलकाता: त्योहारों के मौसम में अलग-अलग तरह के मेले लगना आम बात है लेकिन बाल विवाह के गैरकानूनी होने के बावजूद आज भी आदिवासी जनजातीय बहुल पश्चिम मेदिनीपुर में बाल विवाह मेले आयोजित किये जाते हैं, जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जमा होती है. महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 22, 2013 8:29 AM

कोलकाता: त्योहारों के मौसम में अलग-अलग तरह के मेले लगना आम बात है लेकिन बाल विवाह के गैरकानूनी होने के बावजूद आज भी आदिवासी जनजातीय बहुल पश्चिम मेदिनीपुर में बाल विवाह मेले आयोजित किये जाते हैं, जहां बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ जमा होती है.

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन सुचेतना की रिपोर्ट के अनुसार बाल विवाह के ऐसे मेले उत्सवों के इस मौसम में हर वर्ष आयोजित किये जाते हैं. माओवादी हिंसा में कमी आने के बाद आदिवासी लोग निडर होकर अधिक संख्या में इस प्रकार के मेलों में भाग ले रहे हैं. सुचेतना की सचिव स्वाति दत्त ने पश्चिम मेदिनीपुर के बीनपुर के निकट आयोजित ओरगोंडा पाताबिंदा मेले के बारे में बताया. जहां पुरुलिया और बांकुड़ा जैसे निकटवर्ती जिलों से हजारों आदिवासी कम उम्र की अपनी लड़कियों की शादी कराने आते हैं.

श्रीमती दत्त ने बताया कि इस दौरान सिलदा से बेलपहाड़ी तक 20 किलोमीटर के इलाके में एक लाख से अधिक आदिवासी लोग कई स्थानों पर मेले आयोजित करते हैं, जहां लड़की के माता-पिता अपनी बेटी से अपनी पसंद का दूल्हा ढूंढने को कहते हैं, लेकिन लड़कियों के पास अपना जीवनसाथी चुनने के लिए ज्यादा विकल्प नहीं होते हैं. यदि वे इनकार कर देती हैं तो इन किशोरियों का विवाह जबरन करा दिया जाता है. जिले में संथाल, लोढा, खीरी और महतो जैसे कई आदिवासी समुदायों में लड़की की आयु 12 वर्ष हो जाने पर उसके लिए दूल्हे की तलाश करने की परंपरा है. इसके अलावा गरीबी के कारण भी ग्रामीण अपनी लड़कियों का बाल विवाह कराते हैं.

श्रीमती दत्त ने कहा कि बाल विवाह मेलों के कारण पश्चिम मेदिनीपुर जिले में बड़ी संख्या में लड़कियां स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं. बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के तहत 18 वर्ष से कम आयु में विवाह करना न केवल कानूनी रूप से अवैध है, बल्कि यह लड़कियों के स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है.

श्रीमती दत्त ने बताया कि उनके संगठन ने गोपीबल्लवपुर-1, बीनपुर-2, संकरैल और केसियारी ब्लॉक में सर्वेक्षण करवाया था, जिसमें पता चला कि शादी के बाद अधिकतर लड़कियां स्कूल की पढ़ाई बीच में ही छोड़ देती हैं. कुछ गांवों में तो 60 से 70 प्रतिशत लड़कियों का बाल विवाह होता है. उन्होंने कहा कि इन बाल दुल्हनों पर विवाह के बाद घर के काम का बोझ डाल दिया जाता है. अधिकतर लड़कियां इस परिस्थिति से निपट नहीं पाती, जिसके कारण घरेलू हिंसा और वैवाहिक झगड़े होते हैं.

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