मादरे वतन से वफादारी के मिशाल थे अब्दुल हामिद खान

कोलकाता. शिक्षा के प्रति समर्पित, मृदुभाषी और सरल व्यक्तित्व के धनी अब्दुल हामिद खान का रविवार सुबह टीटागढ़ में देहांत हो गया. अपने पीछे वह भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. स्वर्गीय खान के पार्थिव शरीर को उनके गृह नगर गाजीपुर ले जाया गया, जहां उन्हें सुपुर्दे खाक किया जायेगा. पेशे से शिक्षक खान साहब ने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 19, 2015 9:20 AM

कोलकाता. शिक्षा के प्रति समर्पित, मृदुभाषी और सरल व्यक्तित्व के धनी अब्दुल हामिद खान का रविवार सुबह टीटागढ़ में देहांत हो गया. अपने पीछे वह भरा-पूरा परिवार छोड़ गये हैं. स्वर्गीय खान के पार्थिव शरीर को उनके गृह नगर गाजीपुर ले जाया गया, जहां उन्हें सुपुर्दे खाक किया जायेगा.

पेशे से शिक्षक खान साहब ने 1963 से लेकर अपने जीवन के अंतिम दिन तक उत्तर 24 परगना जिले के टीटागढ़ के केल्विन प्राइमरी स्कूल में अध्यापन का कार्य किया. उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के नगसर गांव के मूल निवासी हामिद खान पहली बार 1962 में कोलकाता आये थे. रोजगार की तलाश में जब वह कोलकाता आये, तब उनकी उम्र महज 21 वर्ष थी. खेतीहर परिवार से ताल्लुक रखनेवाले खान साहब को अध्ययन-अध्यापन में बड़ी रुचि थी.

वह कहते थे : मैं तो बस शिक्षक बनने के लिए ही पैदा हुआ और अध्यापन मेरा पेशा नहीं, बल्कि मेरा धर्म है. जीवन के 72 बसंत देख चुके अब्दुल हामिद खान ने केल्विन प्राइमरी स्कूल में 50 वर्षों तक अध्यापन का कार्य किया. पढ़ने-पढ़ाने और इलाके के लोगों के प्रति उनके अनुराग को देखते हुए स्कूल प्रबंधन ने उन्हें आजीवन स्कूल की जिम्मेदारी दे दी थी. अध्यापन से जज्बाती तौर पर जुड़े खान साहब कहते थे : स्कूल और छात्रों के साथ रिश्ता इस जीवन में मरने के बाद ही छूटेगा, क्योंकि मैं अध्यापन को पेशा नहीं, अपना धर्म मानता हूं. जीवन भर निष्ठापूवर्क अध्यापन करनेवाले अब्दुल हामिद खान ने अपने छात्रों को जीवन की सबसे अनमोल पूंजी माना.

वह कहते थे : मेरे पढ़ाये हुए बच्चे जब मिलते हैं और यह कहते हैं कि मास्टर जी आपने जो दिया, वह हमारे जीवन की सबसे अनमोल पूंजी है, सुन कर ऐसा लगता है, मानो बूढ़े हो रहे मेरे दिलो-दिमाग के लिए उनके शब्द संजीवनी समान हैं. वह कहते थे : मैं एक सच्चा मुसलमान हूं और पैगंबर हजरत मोहम्मद द्वारा कहे गये एक-एक शब्द का पालन भी करता हूं, लेकिन साथ ही अपने हिंदू पूर्वजों से मिले धार्मिक संस्कारों के लिए उनका तहे दिल से शुक्रगुजार भी हूं.

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