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अचार बेचनेवाली बन गयी कार्यकारी निदेशक

कोलकाता: बचपन में हर किसी ने अलाउद्दीन के चिराग की कहानी सुनी होगी. चिराग में बंद एक जिन कैसे चिराग के मालिक को फकीर से बादशाह बना देता है. कुछ ऐसी ही कहानी सारधा ग्रुप के मालिक सुदीप्त सेन व उसके करीबी देबजानी मुखर्जी की है. जमीन-जायदाद की दलाली करनेवाला एक मामूली शख्स जहां पांच […]

कोलकाता: बचपन में हर किसी ने अलाउद्दीन के चिराग की कहानी सुनी होगी. चिराग में बंद एक जिन कैसे चिराग के मालिक को फकीर से बादशाह बना देता है. कुछ ऐसी ही कहानी सारधा ग्रुप के मालिक सुदीप्त सेन व उसके करीबी देबजानी मुखर्जी की है.

जमीन-जायदाद की दलाली करनेवाला एक मामूली शख्स जहां पांच वर्ष में सारधा ग्रुप नामक एक साम्राज्य का मालिक बन बैठा, वहीं छह वर्ष पहले अपनी मां के साथ विभिन्न इलाकों में घूम-घूम कर अचार बेचनेवाली एक युवती एक कंपनी की एक्जिक्यूटिव डायरेक्टर बन बैठी. वह युवती और कोई नहीं सारधा ग्रुप के मालिक सुदीप्त सेन की खास साथी देबजानी मुखर्जी है.

बेचना पड़ा था तेल कारखाना
ढाकुरिया स्टेशन रोड पर आज भी मुखर्जी परिवार का घर मौजूद है, पर फिलहाल उसमें कोई रहता नहीं है. देबजानी के फर्श से अर्श तक पहुंचते ही उन्होंने वह घर छोड़ दिया. स्थानीय लोगों का कहना है कि एक समय मुखर्जी परिवार की आर्थिक हालत काफी अच्छी थी. कभी उनके दो मंजिला पैतृक निवास में हिरण पाला जाता था. इसलिए लोग उस मकान को हिरणबाड़ी के नाम से पुकारने लगे. परिवार के नाम पर इलाके का नाम भी मुखर्जीपाड़ा था. पर बाद में स्थिति खराब हो गयी. व्यवसाय में लगातार नुकसान के कारण पैतृक तेल कारखाने को बंद कर देना पड़ा.

मां के साथ अचार बेचती थी
स्थिति इतनी खराब हो गयी कि घर चलाने के लिए देबजानी के पिता तिमिर मुखर्जी उर्फ मोहन बाबू को ढाकुरिया में एक राशन की दुकान में काम करना पड़ा. घर की गाड़ी को चलाने के लिए उनकी पत्नी शरवरी देवी घूम-घूम कर अचार बेचने लगी और मां के साथ देबजानी भी जाने लगी. उस समय देबजानी एक अंगरेजी माध्यम स्कूल में पढ़ रही थी.

एक पड़ोसी के अनुसार 2007 से मुखर्जी परिवार की आर्थिक हालत बदलने लगी. उसी समय देवयानी को सारधा ग्रुप में नौकरी मिली थी. देबजानी की एक रिश्ते की बहन अर्पिता दे ने बताया कि उसकी दीदी ने सारधा में अपने कैरियरी की शुरुआत एक साधारण कर्मी के रूप में की थी. वह सारधा के शेक्सपीयर सरणी स्थित दफ्तर में रिसेप्शनिस्ट के रूप में काम करती थी, जहां से सुदीप्त सेन ने उसे सारधा का एक्जक्यूटिव डायरेक्टर बना डाला.

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