नेतृत्व परिवार के सदस्य को ही दिया जाने लगा. नेता सामाजिक या जाति समीकरण से बनने लगे. इसका लोकतांत्रिक ढांचा नहीं था. पिछले ढाई दशकों में यह चलन बढ़ा है. ऐसे नेता जिन्होंने पार्टियां बनायीं, वे काफी लोकप्रिय भी रहे. वह खासी भीड़ इकट्ठा करने में कामयाब रहे. कई राज्यों में यह चलन देखने को मिला. श्री जेटली ने कांग्रेस का नाम लिये बगैर कहा कि कि यह मॉडल केंद्र में भी अपनाया जाने लगा. क्या सत्ता का केंद्र बिंदु देश के 15 परिवारों में केंद्रित रहेगा. यह सवाल खुद से पूछा जाना चाहिए. संसद के नहीं चलने के लिए राज्यसभा को जिम्मेदार ठहराते हुए उनका कहना था कि इस चलन को रोकने की जरूरत है, अन्यथा चुनावी घोषणापत्र के आधार पर चुनी गयी सरकारें काम कैसे कर सकती हैं. कई देशों में ऐसी स्थितियों से निपटने के लिए कानून बने हैं. जजों की नियुक्ति के मामले में भी हुए फैसले में चुनी हुई सरकार के प्रति कहीं न कहीं अविश्वास की भावना दिखती है. यदि चुने गये लोगों के प्रति अविश्वास रहता है, तो वह संसदीय लोकतंत्र का अंत होगा.
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घरेलू संस्थानों को मजबूत बनाने की जरुरत : जेटली
कोलकाता. ऐसे समय जब चीन की आर्थिक वृद्धि को लेकर दुनियाभर के वित्तीय बाजार सहमे हुए हैं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि घरेलू संस्थानों को मजबूत और लचीला बनाये जाने की आवश्यकता है, ताकि वह वैश्विक चुनौतियों के समक्ष टिके रह सकें. उन्होंने कहा कि हम आज उतार चढ़ाव वाली दुनिया में रह […]
कोलकाता. ऐसे समय जब चीन की आर्थिक वृद्धि को लेकर दुनियाभर के वित्तीय बाजार सहमे हुए हैं वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि घरेलू संस्थानों को मजबूत और लचीला बनाये जाने की आवश्यकता है, ताकि वह वैश्विक चुनौतियों के समक्ष टिके रह सकें. उन्होंने कहा कि हम आज उतार चढ़ाव वाली दुनिया में रह रहे हैं. हमारे घरेलू संस्थानों को मजबूत होना चाहिए. वित्त मंत्री ने हालांकि इस संबंध में ज्यादा कुछ नहीं कहा कि संस्थानों को किस प्रकार से मजबूत किया जायेगा या फिर मौजूदा वैश्विक संकट से उबरने के लिए मामले में सरकार कोई हस्तक्षेप करेगी.
अरबपति जार्ज सोरोस ने वर्तमान वैश्विक संकट को 2008 की वित्तीय संकट की तरह बताया है. चीन द्वारा इस साल दूसरी बार अपनी मुद्रा के अवमूल्यन से निवेशकों में घबराहट थी जिससे एशियाई बाजारों में उतार चढ़ाव रहा. चीन की अर्थव्यवस्था को देखते हुये यह आशंका बढ़ती जा रही है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था लड़खड़ा सकती है. वित्त मंत्री ने कहा कि चीन की मुद्रा का दो बार अवमूल्यन होने के झटके से कुछ नरम पड़ने से पहले तक रुपये का प्रदर्शन दुनिया की सभी प्रमुख मुद्राओं के समक्ष काफी कुछ बेहतर रहा है.
श्री जेटली ने कहा कि विश्व बाजार में जिंसों के दाम घटने से कई मुद्राएं करीब-करीब धराशायी हो गयी हैं, रूस, ब्राजील की मुद्राओं में काफी अवमूल्यन हुआ है, जबकि चीन की मुद्रा समस्या के दूसरे दौर में है, हम इस समय उठापटक वाली दुनिया में हैं. इनके मुकाबले रुपया दुनिया की ज्यादातर मुद्राओं के समक्ष मजबूत हुआ है. यह अमेरिकी डॉलर के सामने भी डटा रहा, लेकिन चीन के झटके के बाद कुछ नीचे आ गया.
सेंट जेवियर्स कॉलेज में संसदीय लोकतंत्र के भविष्य के संबंध में भाषण देने के बाद मुद्रा के बारे में पूछे गये सवाल का जवाब दे रहे थे. भारतीय रुपये के बारे में उन्होंने कहा, रुपये की मजबूती विभिन्न बाजार प्रक्रियाओं पर निर्भर करती है. यह इस बात पर भी निर्भर करती है कि भारत में कितने डॉलर आ रहे हैं. यदि ज्यादा डॉलर आते हैं तो हमारा रुपये मजबूत होता है.
उन्होंने कहा, हमें विदेश व्यापार पर ध्यान देना चाहिये लेकिन इसमें चुनौती यह है कि वैश्विक व्यापार मूल्य के लिहाज से कम हो रहा है. वित्त मंत्री ने उम्मीद जतायी कि जब भी दुनिया इन सभी परेशानियों से उबर जायेगी तो मुद्राएं भी अपना स्तर तलाश लेंगी.
संसदीय लोकतंत्र में बाधा परिवारवाद
वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि संसदीय लोकतंत्र व भारतीय राजनीति की मजबूती में परिवारवाद बाधक बन रहा है. सेंट जेवियर्स कॉलेज में ‘संसदीय लोकतंत्र के भविष्य’ विषय पर श्री जेटली ने कहा कि 90 के दशक से देश की राजनीति में ऐसी स्थिति बनी कि कुछ पार्टियों को व्यक्तिगत नेताओं के जरिये पहचाना जाने लगा. यहां नेताओं ने ही पार्टियां बनायीं. ऐसी पार्टियों के आधारभूत तंत्र पर भी सवाल उठे. कई मामलों में नेताओं के परिवार थे.
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