कोलकाता : भाजपा सांसद शत्रुघ्न सिन्हा ने आज कहा कि उनके ‘‘दिल की बात” उन्हें दूसरे नेताओंं से अलग बना देती है. हालांकि, सिन्हा ने माना कि अक्सर भावनाएं उन्हें अपने वश में कर लेती हैं और यह महंगा पड़ जाता है. सिन्हा ने यहां एपीजे कोलकाता साहित्योत्सव में कहा कि कभी-कभी मैं भावुक हो जाता हूं. तब मुझे अहसास होता है कि मैं इसके लिए नहीं बना. मैं ‘मन की बात’ नहीं करता जो मुझे दूसरों से अलग करता है, यह तो कोई और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करता है. मैं तो ‘दिल की बात’ करता हूं. मैं जो महसूस करता हूं, वही बोल देता हूं जो कभी-कभी महंगा पड़ जाता है.
अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके सिन्हा ने कहा कि एक ऐसा भी वक्त था जब उन्होंने सोचा था कि राजनीति उनके लिए नहीं है और उन्होंने इसे छोड़ना भी चाहा था. उन्होंने कहा कि फिर मैं अपने मित्र और मार्गदर्शक लाल कृष्ण आडवाणी जी के पास गया. मैंने उनसे कहा कि यह नहीं हो सकेगा, खासकर भाजपा में. इसके बाद उन्हें महात्मा गांधी की याद दिलाते हुए कहा कि पहले वे आपकी अनदेखी करते हैं, फिर वे आपका मजाक उड़ाते हैं, फिर वे आपसे लड़ते हैं और फिर आप जीत जाते हैं. हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान चुनाव प्रचार से दूर रहे सिन्हा ने कहा कि व्यावहारिक और सकारात्मक होने के नाते वह जीवन में संतुलन बनाना चाहते हैं.
भारती एस प्रधान की ओर से लिखी गई अपनी जीवनी ‘एनिथिंग बट खामोश: दि शत्रुघ्न सिन्हा बायोग्राफी’ का विमोचन करते हुए सिन्हा ने कहा कि जब मैं घर जाता हूं तो अपनी पत्नी के सामने ‘खामोश’ रहता हूं, लेकिन राजनीति में मैं दूसरों को खामोश कर देता हूं. सिन्हा ने कहा कि कई लोग मुझसे पूछते हैं कि मैं किस चरण में हूं. मैं उनसे कहता हूं – अंतिम दो चरणों के बीच में. शत्रुघ्न ने कहा कि उन्हें सबसे ज्यादा राजनीतिक अफसोस इस बात का है कि उन्होंने बॉलीवुड स्टार राजेश खन्ना के खिलाफ चुनाव लड़ा .
साल 1991 में दिल्ली में हुए उप-चुनाव का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि यह इसलिए हुआ कि क्योंकि मैं आडवाणीजी को ना नहीं कह सका. इस चुनाव में खन्ना ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ा था. बिहार चुनावों में भाजपा की करारी हार पर सिन्हा ने कहा कि इसके लिए पूरी पार्टी नहीं बल्कि कुछ लोग जिम्मेदार हैं. सिन्हा ने कहा कि मैंने उनसे कहा कि यह न बोलें कि बिहार में ‘जंगलराज’ है. आखिरकार, दूसरी पार्टियों के भी शुभचिंतक और समर्थक हैं और इससे ऐसा लगता है कि आप उन लोगों को ‘जंगली’ कह रहे हैं. मैं दीवार पर लिखी इबारत को देख पा रहा था. मुझे उम्मीद थी कि उनमें सदबुद्धिआएगी.