इनका आरोप है कि वर्ष मार्च, 2008 से सितंबर, 2009 तक इन्हें कोई ऑनोरेरियम (सम्मानजनक पारिश्रमिक) नहीं मिला. न्यायाधीश देवांशु बसाक ने चार हफ्तों के भीतर राज्य सरकार को पारिश्रमिक देने का निर्देश दिया. इस पर सरकारी वकील का कहना था कि केंद्र द्वारा इस परियोजना को बंद कर दिया गया है. वह इतना पैसा कहां से लायेंगे. जवाब में न्यायाधीश देवांशु बसाक ने कहा कि वहीं से लायेंगे जहां से क्लबों को देने के लिए पैसे मिलते हैं.
उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार द्वारा क्लबों को पैसे दिये जाने पर हाइकोर्ट में पहले भी सवाल उठे हैं. पूर्व में न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने एक मामले की सुनवाई में यह सवाल उठाया था. उक्त मामले में याचिकाकर्ताओं का कहना था कि राष्ट्रीय राजमार्ग-34 के निर्माण के लिए उन्होंने जमीन तो दी लेकिन उन्हें कोई मुआवजा नहीं दिया गया. तब न्यायाधीश संजीव बनर्जी ने कहा था कि, तो क्या यह मान लिया जाये कि केंद्र के पैसे ही राज्य के क्लबों को दिये जा रहे हैं.