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कैदियों की पेंटिंग ऑनलाइन
अलीपुर केंद्रीय संशोधनागार ने कैदियों के लिए अभिनव प्रयास किया है. अब यहां के कैदी अपनी पेंटिंग ऑनलाइन बाहर के लोगों को बेच पायेंगे. इन कैदियों में सबसे बुजुर्ग 86 वर्षीय कैनिंग कुलतली के भुवनखाली ग्राम के रहनेवाले श्रीकांत हालदार भी शामिल हैं. इन कलाकारों को अपने गुजरे जीवन से उपजे दर्द की अभिव्यक्ति का […]
अलीपुर केंद्रीय संशोधनागार ने कैदियों के लिए अभिनव प्रयास किया है. अब यहां के कैदी अपनी पेंटिंग ऑनलाइन बाहर के लोगों को बेच पायेंगे. इन कैदियों में सबसे बुजुर्ग 86 वर्षीय कैनिंग कुलतली के भुवनखाली ग्राम के रहनेवाले श्रीकांत हालदार भी शामिल हैं. इन कलाकारों को अपने गुजरे जीवन से उपजे दर्द की अभिव्यक्ति का माध्यम पेंटिंग की यह कला है. इस मुहिम को प्रारंभ करनेवाले प्रख्यात कलाकार चित्तो दे बताते हैं कि 2007 में दो दिनों के वर्कशॉप में यहां 8 साल गुजारने के बाद इस पड़ाव पर उन्हें काफी सुखद अहसास होता है.
जब इनकी कला को वैश्विक पहचान मिली. यहां के हर कैदी की अलग-अलग कहानी है, पर उनके दर्द को समेटे यह पेंटिंग तमाम तकलीफ में राहत की सांस है. बुधवार को इस कार्यक्रम का औपचारिक उदघाटन किया गया. इस अवसर पर जेल मंत्री हैदर अजीज सफवी के साथ राज्य के संशोधनागार विभाग के मुख्य सचिव शिवाजी घोष, एडीजी व आइजी अरुण कुमार गुप्ता, अतिरिक्त सचिव (संशोधनागार) लियाकत अली, आर्ट मिकाडो के निदेशक ऋषि जैन, क्षितिज घक्कर व इस कार्य के प्रेरणास्त्रोत रहे प्रख्यात चित्रकार चित्तो दे व मीरा सेनगुप्ता शामिल थे.
चिन्मय अपनी पत्नी और बेटी को कुछ कहना चाहते हैं : रेलवे में इंजीनियर रहे चुके चिन्मय बसु को बचपन से ही पेंटिंग का शौक था. इस पेंटिंग के माध्यम से वह अपनी पत्नी व पुत्री को यह बताना चाहते हैं कि पिता का प्यार आज भी उसी तरह से जीवंत है. अपनी व्यथा को रंगों के माध्यम से व्यक्त करनेवाले मालदा के श्री बसु की पत्नी लिलुआ में रेलवे में कार्यरत हैं. आठ वर्ष की सजा काट चुके बसु इस इंतजार में हैं कि शायद उनकी पेंटिंग से उनके परिवार को उनकी भावनाओं का पता चले.
86 वर्षीय पेंटर कैदी : दो पुत्र, पुत्रियों व बहुओं को छोड़ जेल की जिंदगी बिताना 86 वर्षीय कैनिंग निवासी श्रीकांत हालदार को हर पल व्यथित करता है. बिना शिक्षा के ही मामूली प्रशिक्षण से आज वह अपने बचे-खुचे जीवन को पार करने की आशा व्यक्त करते हैं.
पत्थर पर आकार देते हैं पल्टू : पेशे से शिल्पकार पल्टू दास जेल में भी अपनी कला को जीने का आधार मानते हैं. 21 वर्षों से जेल में बंद श्री दास पेंटिंग ही नहीं, पत्थर पर भी आकार देने में माहिर हैं. जेल में आने के बाद तो एक बार उन्हें लगा कि जिंदगी में कुछ नहीं है, लेकिन छेनी हथौड़ी और रंगों के ब्रश उनके जीने की वजह बन चुके हैं.
मकसूद की रियायत की गुजारिश : कॉलेज स्ट्रीट के रहनेवाले मकसूद नवाज भी 21 वर्षों से अलीपुर जेल में हैं. अब रंगों के माध्यम से अभिव्यक्ति की इस मुहिम में शामिल हैं. जेल प्रशासन से उनकी गुजारिश है कि और भी कुछ रियायत की व्यवस्था हो ताकि उन जैसे कैदियों को राहत मिल सके.
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