कोलकाता. लंबे समय तक केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक (पीजीटी-हिंदी) के पद पर सेवा देने के बाद सेवानिवृत्त शिक्षक पेंशन के लिए दर-दर भटक रहे हैं. उत्तर 24 परगना जिला के हाजीनगर इलाका निवासी सेवानिवृत्त शिक्षक आइजे सिंह ने केंद्रीय विद्यालय संगठन मुख्यालय के अधिकारियों से पेंशन के लिए निवेदन किया, लेकिन उन्हें निराशा ही हाथ लगी. इसके बाद मानव संसाधन विकास मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति से भी गुहार लगायी गयी, लेकिन फायदा नहीं हुआ.
क्या है मामला
केंद्रीय विद्यालय में आइजे सिंह की वर्ष 1980 में बतौर प्राथमिक शिक्षक (पीआरटी) के रूप में नियुक्त हुई. वर्ष 1986 में केंद्र सरकार ने केंद्रीय विद्यालय संगठन के कर्मचारियों के लिए जीपीएफ पेंशन स्कीम को अनिवार्य कर दिया. इस योजना के तहत वर्ष 1986 में नयी नियुक्तिवाले कर्मचारियों की जीपीएफ पेंशन स्कीम की सुविधा देकर ही नियुक्ति की गयी. वर्ष 1986 से पहले नियुक्त शिक्षकों को जीपीएफ पेंशन का विकल्प (ऑप्शन) दिया गया. जिन कर्मचारियों ने सीपीएफ योजना जारी रखने का विकल्प चुना, उन्हें जीपीएफ पेंशन स्कीम में शामिल नहीं किया गया.
प्राथमिक शिक्षक के तौर पर आइजे सिंह ने जीपीएफ पेंशन स्कीम के विकल्प को नहीं चुना. 31 अक्तूबर 1987 में सीधी चयन प्रक्रिया के जरिये आइजे सिंह की नयी नियुक्ति धनबाद स्थित केंद्रीय विद्यालय में बतौर पीजीटी के रूप में हुई. श्री सिंह ने आरोप लगाया कि नयी नियुक्ति के बावजूद उन्हें जीपीएफ पेंशन स्कीम का विकल्प चुनने या सीपीएफ स्कीम जारी रखने का कोई विकल्प नहीं दिया गया. उनकी सहमति के बगैर संगठन की ओर से उन्हें सीपीएफ स्कीम के अंतर्गत ही रखा गया. यानी अवकाश ग्रहण करने के बाद (31.07.2010) वह पेंशन स्कीम के दायरे में शामिल नहीं रहे.
लगायी गुहार, पर नहीं हुआ फायदा
संगठन की लापरवाही का आरोप लगाते हुए आइजे सिंह ने पेंशन चालू करने की मांग को लेकर केवीएस मुख्यालय के आयुक्त को पत्र भेजा. इसका जवाब भेजा गया कि उन्होंने जीपीएफ पेंशन स्कीम की सेवा का विकल्प नहीं चुना था, इसलिए उन्हें यह सुविधा नहीं दी जा सकती. जवाब केवीसी मुख्यालय के वित्त विभाग के अधिकारी की ओर से दिया गया था. श्री सिंह ने आरोप लगाया है कि बतौर पीजीटी नयी नियुक्ति के बाद संगठन ने उन्हें जीपीएफ पेंशन स्कीम संबंधी कोई विकल्प नहीं दिया. वैसे भी वर्ष 1986 में केंद्रीय विद्यालय संगठन में नयी नियुक्तिवाले कर्मचारियों को सीधे जीपीएफ पेंशन स्कीम में शामिल किया गया, तो ऐसा उनके साथ क्यों नहीं हुआ? इसके बाद उन्होंने मानव संसाधन विकास मंत्री, प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी पत्र भेजा, लेकिन उत्तर पहले की तरह ही मिला, बस तारीख परिवर्तित कर दी गयी.
श्री सिंह ने कहा कि यह स्थिति केवल उनकी नहीं, अन्य सेवानिवृत्त शिक्षकों की भी है. पेंशन प्राप्त करने के लिए क्या केवल कानूनी लड़ाई का ही सहारा बच गया है, यह सवाल केवल आइजे सिंह ही नहीं बल्कि अन्य शिक्षकों की भी है.