10.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

गुनाहगार कौन है?

जब कभी भी चुनाव का मौसम आता है, धन बल और बाहुबल का चुनाव में उपयोग किये जाने की चर्चा शुरू हो जाती है. चुनाव में कालाधन पानी की तरह बहता देख, लोग उसकी चर्चा भी खूब करते हैं, लेकिन बाद में चुनाव का परिणाम बताता है कि लोकतंत्र के पावन मंदिर में वोटरों ने […]

जब कभी भी चुनाव का मौसम आता है, धन बल और बाहुबल का चुनाव में उपयोग किये जाने की चर्चा शुरू हो जाती है. चुनाव में कालाधन पानी की तरह बहता देख, लोग उसकी चर्चा भी खूब करते हैं, लेकिन बाद में चुनाव का परिणाम बताता है कि लोकतंत्र के पावन मंदिर में वोटरों ने अपने बहुमूल्य वोट देकर सैकड़ों की संख्या में ऐसे लोगों भेजा है, जिनके खिलाफ आपराधिक शिकायतें दर्ज हैं.
संसद में अथवा विधानसभाओं में अपने बेहतर आचरण और कार्य के लिए सम्मानित होनेवाले जनप्रतिनिधियों की संख्या अंगुलियों पर गिनी जा सकती है. ऐसे जनप्रतिनिधियों को चुननेवाले मतदाता भी वंदनीय हैं, जिन्होंने राष्ट्र और लोकतंत्र की सेवा के लिए बार-बार योग्य लोगों को ही अपने जनप्रतिनिधि के रूप में निर्वाचन किया है. लेकिन यही कार्य अन्य जगहों पर क्यों नहीं हो पाता है.
आखिर क्यों अपराधी प्रवृत्ति के लोग जनप्रतिनिधि के रूप में संसद और विधानसभाओं में पहुंच जाते हैं. कुछ दशक पहले इस विषय का विश्लेषण करने वाले लोग इस सवाल के जवाब में कहा करते थे कि इसके लिए साक्षरता और जागरूकता की कमी जिम्मेदार है. जैसे ही इन दोनों समस्याओं का समाधान होगा, राजनीति और लोकतंत्र के मंदिरों में अपराधियों का प्रवेश स्वत: बंद हो जायेगा. अगर हम आज के परिप्रेक्ष्य में देखें, तो खासकर साक्षरता का प्रतिशत काफी बढ़ चुका है. शहर से लेकर गांव तक निरक्षर लोगों की संख्या बहुत ही कम हो चुकी है.
लोगों में अब जागरूकता का अभाव भी नहीं रहा. सूचना के माध्यम सूर्य की किरणों की तरह शहर से लेकर गांव तक पसरे हुए हैं. सामान्य से सामान्य सूचना भी हर वर्ग के लोगों तक उनके घर में अासानी से उपलब्ध हो जा रही है. अगर हम चुनाव में खड़े होनेवाले प्रत्याशियों की भी बात करें, तो अब प्राय: हर मतदाता को बड़ी आसानी से उसके इलाके में चुनाव लड़ रहे प्रत्याशी के बारे में सभी कुछ पता चल जाता है.
चुनाव आयोग भी विभिन्न माध्यमों से प्रत्याशी की शैक्षणिक योग्यता से लेकर संपत्ति का ब्योरा तक मतदाताओं को उपलब्ध करा देता है. इसके बाद भी अगर अयोग्य तथा अपराधी प्रवृत्ति का प्रत्याशी चुनाव जीत जाता है, तो फिर हम किसे दोष देंगे? सभी को पता है कि धन बल और बाहुबल से चुनाव जीतनेवाले राजनेताओं की संख्या क्रमश: बढ़ती ही जा रही है. सिर्फ कानून बनाने से इस पर अंकुश लगाना संभव नहीं है. जब धन बल और बाहुबल वाले प्रत्याशी ही चुनाव जीतते रहेंगे, तो फिर हर राजनीतिक दल को सिद्धांतों से समझौता करते हुए ऐसे ही प्रत्याशियों की शरण में जाने की बाध्यता बनी रहेगी, क्योंकि उन्हें सत्ता में पहुंचने के लिए संख्या चाहिए. जी हां, बिना संख्या के सरकारें न तो बन पाती हैं और ना ही चल पाती हैं.
मजबूरी मेें अपने सिद्धातों से समझौता करनेवाले देश के कई राजनीतिक दलों को समय-समय पर इस विषय पर आत्ममंथन करते देखा गया है, लेकिन परिणाम अभी भी नहीं निकल सका है.
धन बल और बाहुबल से संपन्न लोग प्राय: हर पार्टी में अपनी पैठ बनाये हुए हैं. यह राजनीतिक दलों के लिए एक बड़ी मजबूरी की स्थिति है. लेकिन, वोटर के साथ क्या मजबूरी है, यह अब समझ के परे है. आखिर क्यों एक आम वोटर कर्म, जाति, समुदाय या किसी भी अन्य कारण से किसी अपराधी को लोकतंत्र के पावन स्थल तक पहुंचने के लिए सीढ़ी बन जाता है.
अब तक कहीं भी किसी अपराधिक छविवाले उम्मीदवार का सार्वजनिक विरोध होते नहीं दिखा है, ऐसा शायद निकट भविष्य में संभव भी नहीं दिख रहा है. यही वजह है कि पश्चिम बंगाल विधानसभा के लिए हो रहे चुनाव में भी बड़ी संख्या में अपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोग उम्मीदवार के रूप में दिख रहे हैं. ऐसे उम्मीदवारों की उपस्थिति के कारण भी चुनाव के दौरान और उसके बाद भी हिंसा की घटनायें होती आ रही हैं.
घटनायें होती हैं, तो थोड़ी देर के लिए लोग दबी जुबान से राजनीति में पैठ बना चुके अपराधियों की चर्चा तो कर लेते हैं, लेकिन वोट देते समय नहीं सोचते हैं. अगर हर मतदाता बाहुबलियों को वोट नहीं देने को संकल्पित हो जाये तो फिर कम से कम आनेवाले चुनावों में हर राजनीतिक दल भी ऐसे लोगों को टिकट देने से पहले बार-बार सोचने को बाध्य होगा. बेहतर भविष्य की आशा से ही संसार चल रहा है और इस विषय में भी कुछ बेहतर होने की आशा जरूर की जानी चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें