हम सब दोस्त हैं

चुनाव के दौरान आपने नेताओं को एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते हुए देखा होगा. कैसे वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के न केवल राजनीतिक बल्कि निजी जीवन की बखिया उधेड़ते हैं. उनके जीवन के अनजाने पहलुओं से जनता को रूबरू कराते हैं. उनके छिपे चेहरों को जनता के सामने लाना वह अपना परम कर्तव्य समझते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 24, 2016 8:25 AM
चुनाव के दौरान आपने नेताओं को एक दूसरे के खिलाफ आग उगलते हुए देखा होगा. कैसे वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के न केवल राजनीतिक बल्कि निजी जीवन की बखिया उधेड़ते हैं. उनके जीवन के अनजाने पहलुओं से जनता को रूबरू कराते हैं. उनके छिपे चेहरों को जनता के सामने लाना वह अपना परम कर्तव्य समझते हैं. इसके लिए वह कोई गर्व भी नहीं करते.
आराम से विरोधियों को अपने शब्दों के बाणों से छलनी करते हैं. ऐसे में यह प्रतीत हो सकता है कि भविष्य में शायद ये नेता अपने प्रतिद्वंद्वियों का चेहरा तक न देखें. या फिर इनसे हर किस्म की दूरी वह बना लेंगे. आखिरकार जिस प्रकार की छवि उन्होंने अपने विरोधियों की बनायी हैै, ऐसे में वह एक दूसरे का सामना कर भी कैसे सकते हैं. लेकिन जनाब यहां आप धोखा खा गये. ऐसा बिल्कुल नहीं होता. चुनावी लड़ाई अलग है और राजनीतिक भाईचारा अपनी जगह. अगर वह भविष्य में मिलते हैं, तो एकबारगी लग सकता है कि भरत मिलाप हो रहा है. इतनी आत्मीयता, इतना भाईचारा, शायद ही पृथ्वीलोक में अन्यत्र दिखे. इस विडंबना को समझने के लिए आपको राजनीति भी समझनी जरूरी है.
जैसा कि कहते हैं कि राजनीति में कोई स्थायी दोस्त या शत्रु नहीं होता. और जो शत्रु भी होता है वह निजी जीवन में कभी भी शत्रु नहीं होता. क्योंकि पता नहीं कब वह फिर से दोस्त बन जाये. वरना जीवन भर घोर विरोधी रहनेवाले राजनेता कई बार एक दूसरे के साथ मिल जाते हैं. कभी एक ही पार्टी में आ जाते हैं, तो कभी गंठबंधन को अंजाम दे देते हैं. यह केवल स्थानीय स्तर पर नहीं होता. न ही केवल चुनाव के दौरान यह होता है.
यह शाश्वत नियम है और हमेशा होता है. लड़ने व मरनेवाले हमेशा संगठन के निचले पायदान के समर्थक-कार्यकर्ता होते हैं. आपको जानकार आश्चर्य होगा कि केंद्रीय स्तर पर भी विपक्षी पार्टियों के नेताओं की सिफारिश पर सत्ताधारी दल सबसे पहले ध्यान देते हैं. उनके अनुरोध को शायद ही कभी ठुकराया जाता होगा. यह सबकुछ अलिखित, अनकहे नियम के आधार पर होता है. इसलिए बुजुर्ग ज्ञानी हमेशा कहते हैं कि कभी भी भावनाओं में न बहें, अपनी अक्ल का इस्तेमाल करें. राष्ट्र निर्माण की ओर ध्यान दें.

Next Article

Exit mobile version