वी फॉर विक्ट्री, आम जनता की बतकही

आनंद कुमार सिंह किसी बड़े मैच के पहले अक्सर खिलाड़ियों को आपने ‘वी’ का निशान बनाते हुए देखा होगा. वी यानी विक्ट्री. इसका मतलब हुआ कि हम ही जीत रहे हैं. चुनावी मौसम में उंगलियों से बनाये जाने वाला वी का निशान तो और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. दरअसल चुनाव यानी आपको खुद को […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 1, 2016 7:58 AM
आनंद कुमार सिंह
किसी बड़े मैच के पहले अक्सर खिलाड़ियों को आपने ‘वी’ का निशान बनाते हुए देखा होगा. वी यानी विक्ट्री. इसका मतलब हुआ कि हम ही जीत रहे हैं. चुनावी मौसम में उंगलियों से बनाये जाने वाला वी का निशान तो और भी महत्वपूर्ण हो जाता है. दरअसल चुनाव यानी आपको खुद को कॉन्फीडेंट दिखाना होगा. जनता उसे कैसे वोट दे सकती है, जो खुद निरीह और डरा-सहमा नजर आता हो. यानी आपका आत्मविश्वासी दिखना जरूरी है. तो होता क्या है कि क्या विपक्ष, क्या सत्ताधारी दल और क्या छुटभैया नेता. सभी कुछ अतिरिक्त ही आत्मविश्वासी नजर आते हैं.
एक्स्ट्रा कॉन्फीडेंट. मानों सभी जीत रहे हैं. मजे की बात तो तब हो गयी जब सत्ताधारी दल और विपक्ष ने दोनों ही राज्य विधानसभा चुनाव के दौरान खुद की 200 सीटें जीतने की भविष्यवाणी कर दी. दोनों की ही बात मान ली जाये, तो जनाब यहां 400 सीटें बनानी पड़ जाये. चुनाव के वक्त तक सभी खुद के जीतने की भविष्यवाणी करते दिखते हैं. लेकिन चुनाव के खत्म होते ही और नतीजों की घोषणा के पहले यदि फिर से वही सवाल पूछा जाये, तो सभी स्पष्ट उत्तर देने से बचते हैं.
हां, नतीजे यदि खराब आ जाये, तो यह कहना नहीं भूलते कि नतीजों की पार्टीगत स्तर पर समीक्षा करेंगे. यह देखेंगे कि उनसे क्या चूक हुई. क्यों जनता ने नकारा. या फिर विरोधियों पर चुनाव में गड़बड़ी करने का एवरग्रीन आरोप तो रहता ही है. तो जनाब विक्ट्री साइन समय के साथ-साथ मध्यम होती जाती है. कई बार तो यह पूरी तरह गायब भी हो जाती है. चुनाव के दौरान नेताओं द्वारा विक्ट्री साइन दिखाते वक्त उनके चेहरों पर गौर करना निहायत जरूरी है.
क्या होता है कि हमारा ध्यान अमूमन उंगलियों पर होता है तो, चेहरों पर नजर कम ही जाती है. लेकिन आप चेहरों को पढ़े, तो वोट की किस्मत का अंदाजा भी कुछ कुछ हो सकता है. उंगलियों से विक्ट्री का निशान दिखाते हुए कभी उनके चेहरे खुशी से दमकते हुए तो कभी मुरझाये हुए भी दिख सकते हैं. कई बार वह भावहीन तो कभी अतिरिक्त भाव दिख सकते हैं.
भावों को पढ़ने का शौक यदि आपको है, तो आप मतदान के झुकाव को भी ताड़ सकते हैं. आखिरकार चुनाव के बारे में हकीकत में सीधे जंग लड़ रहे नेताअों से अधिक किसे पता होता है. ये बात और है कि इस बाबत वह सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहते. लेकिन जनता की नस और चुनाव के रंग से वह भली-भांति वाकिफ होते हैं. इसलिए नजर रखें, नेताओं के चेहरे पर और वोटिंग के दौरान उंगलियां रखें सही बटन पर. हैप्पी वोटिंग.

Next Article

Exit mobile version