पिछले पांच चरणों के चुनावों में लोगों ने चिलचिलाती गर्मी में जिस प्रकार डंट कर मतदान किया है, उसे देख कर यही लगता है कि वास्तव में मतदान को लोग उत्सव के रूप में मनाते हैं और लोगों ने जिस प्रकार से मतदान किया है, यहां भी जनता किसी एक पार्टी को स्पष्ट बहुमत देने के पक्ष में नहीं है. हालांकि मतदान के प्रथम दो चरणों में कोई हिंसा देखने को नहीं मिली है, लेकिन तीसरे चरण से यहां चुनावी हिंसा जारी है.
इसमें कोई दो राय नहीं कि ममता बनर्जी की छवि साफ सुथरी और ईमानदार वाली है, लेकिन दीदी को इस चुनाव में सारधा घोटाले और नारदा स्टिंग से जूझना पड़ रहा है. इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि ‘मां- माटी-मानुष’ के नारे के साथ सत्ता में आयीं दीदी के लिए यह चुनाव सारधा घोटाले और स्टिंग के बाद एक कठिन परीक्षा से कम नहीं है. इसके साथ-साथ इस विधानसभा चुनाव में वाममोरचा का अस्तित्व भी दावं पर है, यही कारण है कि कांग्रेस और वाम मोरचा के गंठबंधन ने सियासी घमसान को दिलचस्प बना दिया है.
राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि कांग्रेस यदि पिछले चुनाव की तुलना में इस बार अधिक सीटें जीत लेती है तो यह माना जायेगा कि लोकसभा चुनाव में मिली भारी पराजय के बाद कांग्रेस फ़िर से उठ खड़े होने की कोशिश में कामयाब हो रही है. वहीं, भाजपा के लिए यह और भी महत्वपूर्ण है ताकि बिहार और दिल्ली में मिली हार के सदमे से वह उबरने की जुगत में है. वामदल अपनी वापसी के लिए किस कदर बेचैन हैं, उसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि पार्टी ने कांग्रेस के साथ समझौता करने से भी ऐतराज नहीं किया.
राज्य के चुनावी नतीजों का इंतजार पूरे देश को है. एक वक्त था जब वामदल और कांग्रेस एक-दूसरे को देखना तक नहीं चाहते थे और आज भी केरल में ये दल एक-दूसरे के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं. जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी ने तृणमूल का सहारा लेकर 42 के आंकड़े को छुआ लेकिन 2014 के लोकसभा चुनाव में स्थिति काफी दयनीय थी. 2014 लोकसभा चुनाव में मोदी लहर में जहां सभी पार्टियां धराशायी नजर आयीं वहीं इस लहर में भी ममता बनर्जी ने लोकसभा की 34 सीटों पर कब्जा कर एक संदेश दे दिया था.