बीमार बछिया की सेवा ने बदल दी सिराज की पूरी दुनिया
आसनसोल : हिंदू धर्म के अनुयायी गौ को माता का दर्जा देकर उसकी पूजन करते हैं. इस पूजन का प्रतिफलन उन्हें मिलता है कि नहीं, वह तो श्रद्धालु ही बता सकते हैं, लेकिन रेलपार बैरागी तालाब निवासी मुसलमान मोहम्मद सिराज (चीमा) की दुनिया ही गो सेवा बदल गयी है. वे इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार […]
आसनसोल : हिंदू धर्म के अनुयायी गौ को माता का दर्जा देकर उसकी पूजन करते हैं. इस पूजन का प्रतिफलन उन्हें मिलता है कि नहीं, वह तो श्रद्धालु ही बता सकते हैं, लेकिन रेलपार बैरागी तालाब निवासी मुसलमान मोहम्मद सिराज (चीमा) की दुनिया ही गो सेवा बदल गयी है. वे इसे सार्वजनिक रूप से स्वीकार भी करते हैं.
गायों के प्रति उनका सेवाभाव धर्म और पशुओं के नाम पर समाज में वैमनस्य फैलानेवालों के लिए चुनौती तथा प्रेरणास्तंभ भी है. मोहम्मद सिराज ने बताया कि सात साल पहले वे हॉकरी करते थे. इसी क्रम में एक दिन वे जीटी रोड होकर नियामतपुर जा रहे थे. उन्होंने देखा कि एक ट्रक से कुछ लोगों ने एक बछिया को नीचे फेंक दिया और भाग गये. नीचे गिरने के कारण वह बुरी तरह से छटपटा रही थी तथा उसके शरीर पर कई गहरे घाव और चोट के निशान थे. उसके शरीर के कई हिस्सों से रक्त स्त्रव हो रहा था. बछिया की हालत ने उन्हें झकझोर कर रख दिया.
उन्होंने उसे उठाया और ठेला पर लाद कर उसे रेल पार स्थित अपने आवास ले आये. परिजनों की मदद से उसे मवेशियों के चिकित्सक के पास ले गये. दवा के बाद उसे राहत मिली. उनकी सेवा और दवा के कारण उसके जख्म भरने लगे. कुछ ही दिनों में वह पूरी तरह से स्वस्थ हो गयी. उस बछिया से उन्हें बेटी सा लगाव हो गया. कई लोगों ने उसे खरीदने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उन्होंने उसे अस्वीकार कर दिया. उन्होंने कहा कि उस बछिया की सेवा के कारण ही इस समय उसकी वंशावली की छह गायें उनके पास हैं. उन्होंने एक भी गाय नहीं बेची है. उन्होंने बताया कि उस बछिया की सेवा करते करते उनके सारे दुख दूर हो गये.
पहले वे गली गली घूम कर तथा बस स्टैंडों में हॉकरी करते थे. परन्तु इस समय वे बड़े वितरक बन गये हैं. उनका निजी व्यवसाय है. वे कोल्ड ड्रिंक, मिनरल वाटर तथा आइस क्रीम की एजेंसी चलाते हैं. लाखों का वार्षिक कारोबार है. गाय की सेवा से उनकी माली हालत सुधरी है तथा घर परिवार में शांति भी कायम है. रोजाना वह गाय कुल दस लीटर दूध देती है जिसमें से एक लीटर दूध अपनी बेटी के लिए रख कर बाकी का दूध वे अपने पड़ोसियों, बीमार और जरुरतमंदों में नि:शुल्क बांट देते हैं. पर्व त्योहारों में भी लोग उनके पास आते हैं और वे उन्हें नि:शुल्क दूध देते हैं. उन्होंने बताया कि वे उस गाय को अपनी मां मानते हैं.
उन्होंने बताया कि वर्ष 1990 में वे जामताड़ा (झारखंड) से रोजी रोटी की तलाश में आसनसोल रेलपार इलाके में आये और हॉकरी शुरू की थी. मोहम्मद सिराज ने कहा कि उनकी पत्नी जुलेखा परवीन बीएड कर रही हैं और बेटी सुजाला परवीन (04) यूकेजी में पढ़ रही है. उन्होंने बताया कि वे एक स्कूल खोलना चाहते है. जिसमें गरीब और जरूरतमंद लोगों के बच्चे नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे.
उन्होंने कहा कि रमजान के इस पवित्र मौके पर उनकी इच्छा यही है कि समाज में आपसी सौहार्द, प्यार और सहयोग बना रहे. प्रकृति ने जो समान सुविधाएं सबको दी है, उस पर मानव-मानव का बंटवारा न हो.