बंगाल-ओड़िशा के बीच रसगुल्ले की लड़ाई पहुंची कोर्ट
कोलकाता : रसगुल्ला पर पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के बीच जारी तकरार अब पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कोर्ट में पहुंचा है. पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को रसगुल्ला पर भौगोलिक संकेत (जीआइ टैग) के लिए अपना दावा पेश किया. पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कंट्रोलर जनरल ओपी गुप्ता की अगुआई वाली 10 सदस्यीय टीम […]
कोलकाता : रसगुल्ला पर पश्चिम बंगाल और ओड़िशा के बीच जारी तकरार अब पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कोर्ट में पहुंचा है. पश्चिम बंगाल सरकार ने सोमवार को रसगुल्ला पर भौगोलिक संकेत (जीआइ टैग) के लिए अपना दावा पेश किया. पेटेंट्स डिजाइंस एंड ट्रेडमार्क्स के कंट्रोलर जनरल ओपी गुप्ता की अगुआई वाली 10 सदस्यीय टीम के समक्ष बाजाप्ता साक्ष्य पेश कर दावा किया गया कि रसगुल्ला का उदभव स्थान बंगाल ही है.
बंगाल सरकार के विभिन्न विभाग के प्रतिनिधियाें, पश्चिम बंगाल मिष्ठान व्यवसायी समिति के पदाधिकारियों, रसगुल्ला का अविष्कार करने का दावा करने वाले केसी दास के संस्थापक नवीनचंद्र दास के वंशज धीमान चंद्रदास व अन्य ने अपना पक्ष रखा. हालांकि ओड़िशा सरकार ने रसगुल्ला पर अपना दावा पेश करने के लिए ऐसी कोई अपील नहीं की है. इस कारण उसका कोई भी प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था.
विज्ञान एवं तकनीक विभाग की नोडल ऑफिसर महुआ होम चौधरी ने बताया कि राज्य सरकार ने अपने पक्ष में कई दस्तावेज भी प्रस्तुत किये. रसगुल्ला का उल्लेख कृष्णदेव कविराज की चैतन्य चरिता मृत में मिलता है और कई बार मिलता है. इस पर पेटेंट के अधिकारियों ने सवाल किया कि जिस समय चैतन्य चरिता मृत लिखा गया था उस समय बिहार, बंगाल और ओड़िशा एक राज्य ही था. ऐसी स्थिति में रसगुल्ला बंगाल का कैसे हुआ.
लेकिन, पक्षकारों ने वीडियो फुटेज पेश किया. साथ ही यह बताया कि यह मिठाई छेने से बनती है और छेना बंगाल का ही उत्पाद है. ओड़िशा के रसगुल्ला में या बंगाल के रसगुल्ला में इस्तेमाल होने वाला रस व स्पंज अलग-अलग हैं. इनका घनत्व भी अलग है. उधर, राज्य सरकार चाहती है कि जीआई टैग मिल जाये, ताकि वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनका इस्तेमाल कर सके. साथ ही बंगाल ने चावल की दो प्रजातियां गोविंदभोग और तुलाईपंजी पर भी जीआइ टैग के लिए अपील की.
पेटेंट्सडिजाइंस एंड ट्रेड मार्क्स ने शुरू की सुनवाई व्यवसायी आश्वस्त
बांग्ला मिष्ठान व्यवसायी समिति के महासचिव रवींद्र कुमार पॉल ने कहा कि चैतन्य महाप्रभु का आविर्भाव 530 वर्ष पहले हुआ था और उस समय रसगुल्ला का उल्लेख है. धीमान चंद्र दास ने कहा कि हमारा 60 फीसदी काम पूरा हो गया. केवल तकनीकी सूचनाएं ही उपलब्ध करानी है. उम्मीद है फैसला हमारे पक्ष में होगा.
वेबसाइट पर आपत्ति मांगी जायेगी
दूसरी ओर, पेटेंट्सडि जाइंस एंड ट्रेडमार्कस के अधिकारियों ने कहा कि पश्चिम बंगाल के दावे को वेबसाइट पर जारी कर आपत्तियां मंगायी जायेंगी. आपत्ति पर सुनवाई होगी. हालांकि ऐसा प्रतीत होता है कि बंगाल का रसगुल्ला और ओड़िशा का रसगुल्ला दोनों ही अलग-अलग हैं.