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अमृतलाल नागर जन्मशती समारोह संपन्न
कोलकाता : प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य में नागरजी का अन्यतम स्थान रहा है. प्रेमचंद की सलाह पर नागरजी ने यथार्थ का आश्रय तो ग्रहण किया लेकिन उन्होंने अपनी लीक स्वयं बनाई. परंपरा से हटकर लिखने का अधिकारी वही व्यक्ति होता है, जो परंपरा का रस बनाकर पचा जाय. अद्भुत किस्सागोई, भाषिक सौंदर्य तथा जीवन को उकेरने […]
कोलकाता : प्रेमचंदोत्तर कथा साहित्य में नागरजी का अन्यतम स्थान रहा है. प्रेमचंद की सलाह पर नागरजी ने यथार्थ का आश्रय तो ग्रहण किया लेकिन उन्होंने अपनी लीक स्वयं बनाई. परंपरा से हटकर लिखने का अधिकारी वही व्यक्ति होता है, जो परंपरा का रस बनाकर पचा जाय.
अद्भुत किस्सागोई, भाषिक सौंदर्य तथा जीवन को उकेरने की प्रभावी पद्धति ने नागरजी को बड़े कथाकार के रूप में प्रतिष्ठित किया. नागरजी का कथा साहित्य साहित्यकारों एवं साधारण पाठक दोनों को समान रूप से प्रभावित करता है. ये विचार हैं प्रख्यात कथाकार गोविंद मिश्र (भोपाल) के जो जालान पुस्तकालय सभागार में श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय, बड़ाबाजार लाइब्रेरी तथा सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित अमृतलाल नागर जन्मशती समारोह के अवसर पर प्रधान वक्ता के रूप में बोल रहे थे. श्री मिश्र ने कहा कि नागरजी का रेंज बहुत बड़ा था. उनका ध्यान यदि सुहाग के नुपूर के माध्यम से दक्षिण भारत की कथा पर गया तो दूसरी ओर बंगाल के भयावह अकाल की वेदना भूख उपन्यास में व्यक्त हुई. समारोह के प्रधान अतिथि तथा नागरजी की सुपौत्री डॉ. दीक्षा नागर ने पारिवारिक जीवन से जुड़े भावपूर्ण प्रसंगों का उल्लेख किया.
उन्होंने बताया कि दादाजी में स्वाभिमान का अद्भुत तेज था, जो मृत्युपर्यन्त बना रहा. नागरजी के ऊपर बंगला के प्रख्यात कथाकार शरतचंद्र के प्रभाव की भी उन्होंने विस्तार से चर्चा की. अध्यक्षीय भाषण में प्रख्यात रंगकर्मी विमल लाठ ने नागरजी की कहानियों के मंचन के दौरान हुए अनुभव का भावपूर्ण विश्लेषण किया. कार्यक्रम का संचालन करते हुए डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने नागरजी के उपन्यासों पर अपने शोधकार्य के मार्मिक प्रसंगों का उल्लेख किया. कार्यक्रम का प्रारंभ इंदु चाण्डक ने सरस्वती वंदना से किया.
मंच पर जालान पुस्तकालय के अध्यक्ष तुलाराम जालान भी उपस्थित थे. अतिथियों का स्वागत नंदलाल शाह, डॉ वसुमति डागा, अनुराधा जालान तथा महावीर बजाज ने किया. भरत जालान ने धन्यवाद ज्ञापन किया. दुर्गा व्यास, अरुण प्रकाश मल्लावत, मनोज काकड़ा, श्रीराम तिवारी, सागरमल गुप्ता, डॉ. तारा दूगड़ आदि विशेष रूप से सक्रिय थे.
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