समाज की पहल से बसा महिला का घर
कोलकाता. डेढ़ साल से न्याय के लिए दर -दर भटक रही एक महिला का घर आखिरकार समाज की पहल से पुन: बस गया. समाज के लोगों की मध्यस्थता के बाद उसेे ससुराल के लोगों ने अपना लिया. अब वह अपने पति और सास के साथ खुशी-खुशी रहने के लिए तैयार है. सास व पति अब […]
By Prabhat Khabar Digital Desk |
October 18, 2016 2:05 AM
कोलकाता. डेढ़ साल से न्याय के लिए दर -दर भटक रही एक महिला का घर आखिरकार समाज की पहल से पुन: बस गया. समाज के लोगों की मध्यस्थता के बाद उसेे ससुराल के लोगों ने अपना लिया. अब वह अपने पति और सास के साथ खुशी-खुशी रहने के लिए तैयार है. सास व पति अब पुराने गिले-शिकवे को अब भुला चुके हैं.
यह घटना है गोराबाजार की 24 नंबर हरि साहा स्ट्रीट की. रांची के बरीयातु थाना अंचल की निवासी रेणु साव की शादी अंजलि साव के पुत्र सूरज साव से करीब ढाई साल पहले हुई है. रेणु साव का डेढ़ साल का बच्चा भी है. शुरुआत में सब कुछ ठीक चल रह था. बाद में छोटी-छोटी बातों को लेकर कलह होने लगा. धीरे-धीरे स्थिति यह हो गयी कि रेणु को बेघर होना पड़ा. उसके पिता रांची से आकर यहां दमदम नगरपालिका के चेयमैन हरेंद्र सिंह व अपने समाज के लोगों से गुहार लगा रहे थे. इस मामले को लेकर श्री सिंह के साथ ससुराल व मायका पक्ष के लोगों की कई बार बैठक हुई. इसके बाद समाज के मनोहर साहा, लक्खी साहा, व्यवसायी समिति के सचिव विश्वजीत दास व समाज के स्थानीय गणमान्य लोग ससुराल पक्ष से सुलह के लिए लगातार प्रयास करते रहे. अंतत: समाज को इसमें सफलता मिली.
इस संबंध में रेणु के पति सूरज साव का कहना है कि अतीत में परिवारिक कलह से उन्हें जूझना पड़ा. वे अब उसे भूला कर समाज के निर्णय को स्वीकार कर लिया है. उन्होंने कई बैठक के बाद अपनी पत्नी रेणु साव के साथ रहने का फैसला लिया है.
दूसरी ओर सास अंजली साव का कहना है कि उनकी बहू अच्छी है, लेकिन अपने पिता के बहकावे में आकर अतीत में गलत कदम उठा लेती थी. बहू अपने परिवार में रहना चाहती है. उनका परिवार अपने बहू को वापस घर में पाकर काफी खुश है. पूरा परिवार अतीत को भूला कर वर्तमान में रहने के लिए तैयार हो गया है. दमदम नगरपालिका के चेयरमैन हरेंद्र सिंह ने बताया कि दोनों पक्ष ने मामले के समाधान के लिए उनके पास कई बार फरियाद की थी. उन्होंने स्थानीय लोगों को मामला सुलझाने का जिम्मा दिया था. स्थानीय लोगों की पहल को ससुराल पक्ष के लोगों ने स्वीकार कर अपने बहू को स्वीकार कर लिया है. समाज की पहल की उन्होंने सारहना की.