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तीन तलाक, समान नागरिक संहिता पर सरकार के कदम का विरोध करेगा एआइएमपीएलबी

कोलकाता: ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने तीन तलाक और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ केंद्र सरकार के कदम का पुरजोर विरोध करने का फैसला किया है. बंद कमरे में हो रहे एआइएमपीएलबी के तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन यह फैसला किया गया. तीन तलाक, यूसीसी सहित मुसलिमों के अन्य धार्मिक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2016 2:08 AM
कोलकाता: ऑल इंडिया मुसलिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआइएमपीएलबी) ने तीन तलाक और समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के खिलाफ केंद्र सरकार के कदम का पुरजोर विरोध करने का फैसला किया है. बंद कमरे में हो रहे एआइएमपीएलबी के तीन दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन यह फैसला किया गया. तीन तलाक, यूसीसी सहित मुसलिमों के अन्य धार्मिक मामलों पर चर्चा के लिए सम्मेलन का आयोजन किया गया है.
तृणमूल कांग्रेस के सांसद और एआइएमपीएलबी की एक समिति के अध्यक्ष सुल्तान अहमद ने बताया कि सम्मेलन में एकमत से फैसला किया गया कि हम तीन तलाक के बरकरार रहने के पक्ष में हैं और हम इसके खिलाफ सरकार के किसी भी कदम का विरोध करेंगे. हम समान नागरिक संहिता का भी विरोध करेंगे. तीन तलाक सदियों से चला आ रहा हैै और यह हमारे धार्मिक अधिकारों का हिस्सा है. एआइएमपीएलबी पहले ही सरकार के कदम के खिलाफ एक हस्ताक्षर अभियान शुरू कर चुका है और देश भर की 10 करोड़ से ज्यादा मुसलिम महिलाओं ने तीन तलाक की प्रथा के समर्थन में दस्तखत किये हैं. मुसलिम युवकों को कथित तौर पर परेशान किये जाने के मुद्दे पर भी इस सम्मेलन में चर्चा हुई. एआइएमपीएलबी के एक सदस्य ने अपने नाम का खुलासा नहीं करने की शर्त पर बताया कि उनके अध्यक्ष मौलाना रबे हसनी नदवी ने अपने संबोधन के दौरान साफ तौर पर कहा कि केंद्र की भाजपा सरकार देश के मुसलिमों, खासकर युवा पीढ़ी, को परेशान करने के एजेंडे पर काम कर रही है. सरकार की प्रवृति है कि मुसलिमों को देश विरोधियों के तौर पर फंसाओ और परेशान करो.

उन्होंने कहा कि भाजपा मुसलिमों के धार्मिक अधिकारों में दखल देने की कोशिश कर रही है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जायेगा. उन्होंने कहा : मुसलिम इस महान धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य भारत का हिस्सा हैं. हम भाजपा सरकार के इन सांप्रदायिक मंसूबों के खिलाफ लड़ेंगे.

अल्पसंख्यक स्कूलों में अलग होगा नियुक्ति का मापदंड
शिक्षा के क्षेत्र में हाल ही में राज्य सरकार द्वारा जारी किये गये नये निर्देश से शिक्षक संगठनों में आक्रोश है. सामान्य स्कूलों की तुलना में अल्पसंख्यक स्कूलों की नियुक्ति प्रक्रिया में बदलाव किया गया है. इससे शिक्षकों का कहना है कि सरकार शिक्षकों के बीच एक असमानता व भेदभाव की स्थिति पैदा कर रही है. अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए अब एक अलग क्राइटेरिया सरकार ने तय कर दिया है. सामान्य स्कूलों में नियुक्ति के लिए डीआइ (डिस्ट्रक्ट इंस्पेक्टर) की अनुमति अनिवार्य होती है, लेकिन आगामी शैक्षणिक सत्र से अल्पसंख्यक स्कूलों में अब यह नियम लागू नहीं होगा. इन स्कूलों में मैनेजमेंट कमेटी मेरिट सूची व स्कूल सर्विस कमीशन द्वारा भेजी गयी सूची के आधार पर ही नियुक्ति करेगी. इसी मापदंड पर पहले मदरसा व अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति होगी. इसे लेकर शिक्षकों असंतोष पनप रहा है. कुछ शिक्षकों का कहना है कि आर्टीकल 30 में स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति के लिए एक ही नियुक्ति प्रक्रिया का वर्णन है, लेकिन हाल ही में सरकार ने अल्पसंख्यक स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति का नियम बदल दिया है. अब अल्पसंख्यक स्कूल की मैनेजिंग कमेटी को नियुक्ति के लिए डीआइ की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी. वहीं सामान्य स्कूलों में नियुक्ति के लिए प्रबंधन कमेटी को डीआइ की अनुमति लेनी पड़ती है. अल्पसंख्यक स्कूलों को यह अाजादी रहेगी कि प्रबंधन कमेटी स्वयं ही विज्ञापन देकर शिक्षकों की नियुक्ति कर सकती है.

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