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दोनों पैर न होने पर भी जिंदगी की जंग लड़ रहा है 42वर्षीय कार्तिक

खुद को दिव्यांग मानने से किया इनकार ई-रिक्शा चलाकर कर रहे हैं परिवार का भरण-पोषण बंदरों की तरह मिनटों में चढ़ जाते हैं सुपारी और नारियल पेड़ पर 21 वर्ष पहले रेल हादसे में गंवाने पड़े दोनों पैर सिलीगुड़ी. ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’. […]

खुद को दिव्यांग मानने से किया इनकार
ई-रिक्शा चलाकर कर रहे हैं परिवार का भरण-पोषण
बंदरों की तरह मिनटों में चढ़ जाते हैं सुपारी और नारियल पेड़ पर
21 वर्ष पहले रेल हादसे में गंवाने पड़े दोनों पैर
सिलीगुड़ी. ‘कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो’. इस कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं सिलीगुड़ी में इ-रिक्शा ‘टोटो’ चालक कार्तिक बारूइ. दोनों पैर न होने पर भी 42 वर्षीय कार्तिक जिंदगी की जंग अपने बलबूते पर लड़ रहा हैं.
कार्तिक अपने को ‘दिव्यांग’ नहीं मानता. सिलीगुड़ी के 36 नंबर वार्ड के घोघोमाली इलाके के निरंजननगर कॉलोनी में कार्तिक अपनी पत्नी और तीन बेटियों के साथ रहता है और टोटो चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण करता है. 21वर्ष पहले एक रेल हादसे में कार्तिक को अपने दोनों पैर गंवाने पड़े. उस समय उनकी उम्र मात्र 19वर्ष थी. आर्थिक रूप से कमजोर कार्तिक ने हिम्मत नहीं हारी. दोनों पैर गंवाने के बाद भी 21वर्षों से कार्तिक जिंदगी की जंग लड़ते आ रहा है. उसकी इच्छाशक्ति के आगे उम्र भी नतमस्तक है. वह आज भी किशोर उम्र की तरह और बंदरों के तर्ज पर सुपारी व नारियल के पेड़ों पर बगैर किसी रस्सी व अन्य किसी के सहयोग से मिनटों में चढ़ जाते हैं. उनके हिम्मत को देख उनकी पत्नी व तीनों बेटियां कार्तिक की इच्छाशक्ति को और बढ़ावा देती है.
यात्री भी जब टोटो पर बैठकर सवारी करते हैं तो वे भी कार्तिक के जोश को देखकर कायल हो जाते हैं.
इच्छाशक्ति के आगे हर असंभव काम संभव हैः कार्तिक
प्रभात खबर के प्रतिनिधि के साथ विशेष बातचीत के दौरान कार्तिक ने कहा कि इच्छाशक्ति के आगे हर असंभव काम संभव है. जरूरत है अपनी इच्छाशक्ति और हिम्मत को कभी कमजोर न होने देने की. 21वर्ष पहले के हादसे की याद ताजा करते हुए उसने कहा कि जब वह 19वर्ष का था तब चलती ट्रेन से रेलवे ट्रेक पर गिर गया. ट्रेन के पहियों के बीच उसके दोनों पैर आ गये और हमेशा के लिए दोनों पैर गंवाना पड़ा.
कार्तिक ने बताया कि जब अस्पताल में यह मालूम हुआ कि दोनों पैर नहीं है तो एकबार जिंदगी मायूस होती दिखी, लेकिन तभी उनके भीतर से अपने-आप इच्छाशक्ति ने जोर मारा और मुझे साहस मिला. उसने कहा कि मैंने तभी ठान लिया कि दोनों पैर गये तो क्या हुआ, दोनों हाथ और बाकि का शरीर तो सही-सलामत है. इसी के बलबूते किसी भी कीमत पर जिंदगी की हर जंग लड़ूंगा. उसने बताया कि अस्पताल से छुट्टी होने के बाद चिकित्सकों ने घर में ही हमेशा आराम करने का सलाह दिया. कुछ रोज घर में रहने के बाद मन छटपटाने लगा.
इसकी एक वजह परिवार की आर्थिक कमजोरी भी थी. दोनों पैर न होने के बाद भी कमायी के लिए दिल्ली चला गया. कई वर्ष वहां रहकर तरह-तरह का काम किया. बाद में सनाता से शादी होने के बाद वह वापस सिलीगुड़ी में ही बस गया. फिलहाल वह सिलीगुड़ी में भाड़े का टोटो चलाकर अपना परिवार अच्छी तरह से चला रहा है. उसने बताया कि हर रोज मालिक को टोटो का किराया चुकाने के बावजूद चार सौ से छह सौ रूपये तक की कमायी कर लेते हैं. कार्तिक को अपनी पत्नी और तीनों बेटियों से हमेशा सहयोग मिलता रहा है.

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