डॉक्टरों का भविष्य तय करेगी परीक्षा

कोलकाता : चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है. यदि इलाज में लापरवाही के कारण किसी मरीज की जान चली जाती है तो डॉक्टरी पेशा की ईमानदारी पर सवाल उठने लगतेे हैं. हाल में ऐसी कई घटनाएं सामने आयी हैं. इलाज में लापरवाही के कारण कई बार मरीजों की जान चली जाती है. इससे […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2017 3:14 AM
कोलकाता : चिकित्सक को धरती का भगवान कहा जाता है. यदि इलाज में लापरवाही के कारण किसी मरीज की जान चली जाती है तो डॉक्टरी पेशा की ईमानदारी पर सवाल उठने लगतेे हैं. हाल में ऐसी कई घटनाएं सामने आयी हैं. इलाज में लापरवाही के कारण कई बार मरीजों की जान चली जाती है. इससे संबंधित कई मामले हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच जाते हैं.

देश की चिकित्सा व्यवस्था की गुणवत्ता बेहतर बनाने, चिकित्सा पद्धति में और निखार लाने के लिए केंद्र सरकार एक विशेष योजना पर कार्य कर रही है. केंद्रीय परिवार व कल्याण स्वास्थ्य मंत्रालय देशभर के सरकारी एवं निजी अस्पताल में कार्यरत एलोपैथी डॉक्टरो‍ं की बोधशक्ति का टेस्ट करना चाह रहा है. इसके लिए डॉक्टरों‍ को रीवैलिडेशन परीक्षा देनी होगी. परीक्षा में फेल होनेवाले चिकित्सक का पंजीकरण तक रद्द हो सकता है. देश के हरेक चिकित्सक को यह परीक्षा देनी होगी. केंद्र सरकार की ओर से हरेक तीन से पांच साल के अ‍ंतराल पर यह परीक्षा ली जायेगी. इसके लिए केंद्रीय स्वास्थ्य व परिवार कल्याण मंत्रालय लोकसभा में एक बिल लाने की तैयारी में जुटा है.

अगले वर्ष से लागू हो सकती है रीवैलिडेशन टेस्ट
जानकारी के अनुसार केंद्र सरकार अगले वर्ष से रीवैलिडेशन परीक्षा को लागू करने की तैयारी में जुटा है. सरकार यह योजना पहले महानगर दिल्ली, चेन्नई, मुंबई, बंगलुरू और कोलकाता में लागू करेगी.
पश्चिम बंगाल में केंद्र के फैसले का विरोध
पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से केंद्र के इस फैसले का विरोध किया जा रहा है. साथ ही इंडियन मेडिकल एसोसिएशन समेत डॉक्टरों के कई संगठन इसके खिलाफ हैं. राज्य में एमबीबीएस में करीब 2500 सीट हैं. राज्य सरकार मेडिकल सीट बढ़ाने का प्रयास कर रही हैं. केंद्र के इस फैसले से सरकार की यह योजना बैकफुट पर जा सकती है. राज्य में डॉक्टरो‍ं की संख्या पहले से ही कम है. ऐसी स्थिति में यदि टेस्ट में राज्य के डॉक्टर फेल हुए तो दूसरे डॉक्टरों की नियुक्ति सरकार के लिए चुनौती हो सकती है. यह बिल पारित होने पर राज्य सरकार को पहले निजी अस्पताल के डॉक्टरों‍ की परीक्षा लेनी होगी. इसके बाद सरकारी अस्पताल के चिकित्सकों का नंबर आयेगा.
परीक्षा देनी अनिवार्य
अाइएमए के पूर्व अध्यक्ष डॉ प्रदीप कुमार नेमानी ने बताया कि यूरोपियन देशों में इस तरह की परीक्षा ली जाती है. लेकिन भारत में इसे लागू करना संभव नहीं. क्योंकि भारत में 15 लाख पंजीकृत डॉक्टर हैं. इतनी संख्या में डॉक्टरों की परीक्षा लेने के लिए भारत में आधारभूत ढांचा का अभाव है. मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के पास सभी पंजीकृत डॉक्टरों का सटीक डाटा बेस भी उपलब्ध नहीं है. सरकार को पहले आधारभूत ढांचा में सुधार करना होगा. इसके बाद ही रीवैलिडेशन परीक्षा ली जा सकती है. परीक्षा के लिए केंद्र सरकार वर्ष 2004 से योजना बना कर बैठी है लेकिन अब तक इसमें सफल नहीं हो सकी. आइएमए सरकार के इस फैसले का विरोध करता है.

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