8वीं के इतिहास में पढ़ाया जायेगा सिंगूर आंदोलन
कोलकाता. आठवीं कक्षा के छात्र इतिहास के पाठ्यक्रम में सिंगूर आंदोलन पढ़ेंगे. राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने सोमवार को विधानसभा में बताया कि अगले शिक्षा वर्ष से आठवीं कक्षा के इतिहास पाठ्यक्रम में सिंगूर आंदोलन को शामिल किया जायेगा. उन्होंने प्रश्नोत्तर काल में बताया कि सिंगूर आंदोलन के विषय वस्तु को पाठ्यक्रम कमेटी […]
कोलकाता. आठवीं कक्षा के छात्र इतिहास के पाठ्यक्रम में सिंगूर आंदोलन पढ़ेंगे. राज्य के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी ने सोमवार को विधानसभा में बताया कि अगले शिक्षा वर्ष से आठवीं कक्षा के इतिहास पाठ्यक्रम में सिंगूर आंदोलन को शामिल किया जायेगा. उन्होंने प्रश्नोत्तर काल में बताया कि सिंगूर आंदोलन के विषय वस्तु को पाठ्यक्रम कमेटी व शिक्षा विभाग ने अनुमोदित कर दिया है. उन्होंने कहा कि सिंगूर आंदोलन वर्तमान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है. छात्रों को इतिहास के एक महत्वपूर्ण पड़ाव की जानकारी होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि केवल सिंगूर आंदोलन के इतिहास को नहीं, बल्कि तेभागा आंदोलन को भी पाठ्यक्रम में शामिल किया गया है.
छात्रों को राज्य की संस्कृति व इतिहास की जानकारी हासिल हो, इस मकसद से यह कदम उठाया गया है. गौरतलब है कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सिंगूर में नैनो कारखाना के लिए जमीन अधिग्रहण का विरोध किया था. इस आंदोलन के बाद राज्य से 34 वर्षों के वाम मोरचा शासन का खात्मा हो गया. कुछ समय पहले सुप्रीम कोर्ट ने सिंगूर जमीन अधिग्रहण कानून को खारिज करते हुए किसानों को उनकी भूमि लौटाने का निर्देश दिया था. तृणमूल कांग्रेस इसे मां, माटी, मानुष की जीत करार देती है. सिंगूर आंदोलन को इतिहास के पाठ्यक्रम में शामिल किये जाने की घोषणा पर माकपा विधायक दल के नेता सुजन चक्रवर्ती ने कहा कि उम्मीद है कि सरकार सिंगूर आंदोलन को पाठ्य पुस्तक में शामिल करने के साथ विधानसभा में तोड़फोड़ की घटना को भी शामिल करेगी. वैसे अभी पूरी जानकारी नहीं है कि सिंगूर आंदोलन के इस चैप्टर में किन-किन घटनाक्रम को शामिल किया गया है.
क्या है तेभागा आंदोलन: तेभागा आंदोलन बंगाल का चर्चित किसान संग्राम था. 1946 का यह आंदोलन सर्वाधिक सशक्त आंदोलन था, जिसमें किसानों ने ‘फ्लाइड कमीशन’ की सिफारिश के अनुरूप लगान की दर घटाकर एक तिहाई करने के लिए संघर्ष शुरू किया था. यह आंदोलन जोतदारों के विरुद्ध बंटाईदारों का आंदोलन था. इस संघर्ष ने तमाम प्रतिकूल दुष्प्रचार और सांप्रदायिक उकसावे का मुकाबला करते हुए वर्गीय आधार पर जनता की वास्तविक एकता स्थापित की और सांप्रदायिक शक्तियों को हतोत्साहित कर दिया. किसानों ने तीव्र पुलिस दमन और अत्याचार का मुकाबला करते हुए नवंबर, 1946 से फरवरी, 1947 के बीच फसल के दो-तिहाई हिस्से पर अपने कब्जे को बरकरार रखा.