दुर्लभ वाद्य की श्रेणी से शहनाई को हटाये सरकार
बोले शहनाई वादक पंडित दयाशंकर कोलकाता : विवाह, जन्मदिन, पूजा सहित विभिन्न शुभ कार्य में शहनाई विरले ही सुनने को मिलती है. उसकी जगह फिल्मी गीतों ने ले लिया है. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के निधन के बाद केंद्र सरकार ने शहनाई को ‘दुर्लभ’ वाद्य की श्रेणी में डाल दिया है. सितार, सरोद व […]
बोले शहनाई वादक पंडित दयाशंकर
कोलकाता : विवाह, जन्मदिन, पूजा सहित विभिन्न शुभ कार्य में शहनाई विरले ही सुनने को मिलती है. उसकी जगह फिल्मी गीतों ने ले लिया है. शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खान के निधन के बाद केंद्र सरकार ने शहनाई को ‘दुर्लभ’ वाद्य की श्रेणी में डाल दिया है.
सितार, सरोद व बांसुरी की तरह पहले से ही शहनाई किसी भी विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम की सूची में नहीं है. केंद्र सरकार के इस फैसले से अति प्राचीन मंगलवाद्य के अस्तित्व को लेकर और भी संकट खड़ा हो गया है. इन विपरीत परिस्थितियों में शहनाई वाद्य के सुर को शहनाई वादक पंडित दयाशंकर जीवित रखे हुए हैं. पंडित दयाशंकर पांच फरवरी को प्ले ऑन द्वारा कोलकाता के रोइंग क्लब में विश्वमोहन भट्ट (मोहनवीणा), पंडित तरुण भट्टाचार्य (संतूर) और विक्रम घोष (तबला) ‘गोल्डेन ट्रायो’ के साथ अपना सुर बिखेरेंगे. प्रभात खबर के अजय विद्यार्थी ने उनसे बातचीत की. प्रस्तुत हैं बातचीत के प्रमुख अंश :
सवाल : वर्तमान में शास्त्रीय संगीत को किस रूप में देखते हैं ?
जवाब : संगीत का अर्थ है. सम एवं गीत. जब दिल धड़कता है, तो संगीत निकलता है. मुंह से स्वर निकलता है, तो वह संगीत होता है. यह जीवन खुद एक संगीत है. संगीत जीवन के हर पहलु से जुड़ा है. संगीत हमारी सभ्यता और संस्कृति की पहचान है. संगीत हमारी परंपरा है. उस परंपरा का हमारा परिवार पिछले 450 वर्षों से निर्वाह कर रहा है. मेरे दादा जी प्रसिद्ध शहनाई वादक अनंत लाल से शुरू हुई परंपरा का निर्वाह अब मेरे पुत्र संजीव और अश्विनी शंकर कर रहे हैं. शहनाई ही मेरा जीवन है. यह मेरी साधना है. हमें अपनी परंपरा को बनाये रखना है, लेकिन यह बहुत आसान नहीं है. काफी मुश्किल है. कोरिया की एक लड़की उनसे शहनाई सीखने आयी है. विदेश से लोग शहनाई सीखने के आ रहे हैं. अमेरिका, लंदन, पेरिस, जापान आदि देशों में शास्त्रीय संगीत को बड़ी तन्मयता से सीखते हैं, लेकिन अपने देश में ही शहनाई के प्रति उदासीनता है. न तो लोग सीखने के प्रति रूचि रखते हैं और न ही सरकार को ही कोई रूचि है. संगीत भारतीय सभ्यता और संस्कृति है.
सवाल : शहनाई के प्रति लोगों का आकर्षण कैसा है ?
जवाब : शहनाई बहुत ही पुराना वाद्य यंत्र है. शादी, विवाह से लेकर अन्य शुभ कार्य की शुरुआत शहनाई वादन से होती थी, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बिस्मिल्लाल खान के निधन के बाद सरकार ने शहनाई को ‘दुर्लभ’ वाद्य की श्रेणी में डाल दिया है. ऐसा नहीं है कि अब शहनाई बजाने वाला कोई नहीं है. सरकार द्वारा ‘शहनाई’ को दुर्लभ वाद्य में डालने से इसका भविष्य और भी अंधकारमय हो गया है. वह चाहते हैं कि सरकार अपने फैसले पर पुनर्विचार करे.
सवाल : शहनाई के प्रति आम लोगों का रवैया कैसा है ?
जवाब : पहले तो शहनाई के बिना कोई मंगल कार्य ही नहीं शुरू होता था. इसी कारण शहनाई को मंगलवाद्य के नाम से जाना जाता है, लेकिन अब समाज में भी परिवर्तन आया है. विभिन्न संगीत समारोह के आयोजन होते हैं.
आरंभ में शहनाई से शुरुआत के बावजूद केंद्रीय भूमिका में शहनाई दिखायी नहीं देता है. इस कारण शहनाई के प्रति लोगों की रूचि घट रही है. इसमें बहुत रियाज की जरूरत होती है, लेकिन युवा पीढ़ी तुरंत ही कुछ हासिल करना चाहता है. ऐसे में विदेशी को उनके पास शहनाई सीखने के लिए आ रहे हैं, लेकिन अपने ही नहीं आते हैं. ऐसे में घर में बैठकर शहनाई बजाने से क्या फायदा है. हमने शहनाई के लिए पूरा जीवन समर्पित कर दिया. संगीत ही उनका जीवन है. अब यही चाहते है कि शहनाई को आगे बढ़ाने के लिए सरकार व समाज कदम उठाये, ताकि यह वाद्य समय के अंधकार में कहीं डूब नहीं जाये.