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पढ़िये, कहां एमए पास लड़की को चाहिए वामपंथी दूल्हा

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कोलकाता: अखबारों में मैट्रिमोनियल सेक्शन में इस्तेहार आम हैं. इसमें दूल्हा या दुल्हन से संबंधित अपनी पसंद के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है. आमतौर पर इसमेंदूल्हाया दुल्हनकी शक्ल-सूरत, नौकरी, कद-काठी, शिक्षा और जाति जैसी बातोंका जिक्र किया जाता है. बहुत ज्यादा जानकारी दी जाती है, तो शाकाहार और मांसाहार का जिक्र कर दिया […]

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कोलकाता: अखबारों में मैट्रिमोनियल सेक्शन में इस्तेहार आम हैं. इसमें दूल्हा या दुल्हन से संबंधित अपनी पसंद के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है. आमतौर पर इसमेंदूल्हाया दुल्हनकी शक्ल-सूरत, नौकरी, कद-काठी, शिक्षा और जाति जैसी बातोंका जिक्र किया जाता है.

बहुत ज्यादा जानकारी दी जाती है, तो शाकाहार और मांसाहार का जिक्र कर दिया जाता है. या फिर क्षेत्र विशेष के भोजन का वर्णन होता है. लेकिन, विवाह के विज्ञापन में अब तक राजनीतिक विचारधारा का जिक्र हो, ऐसा देखा या सुना नहीं गया था.

कोलकाता के एक अखबार में मैट्रिमोनियल कॉलम में जो विज्ञापन दिया है, उसने नयी परंपरा की शुरुआत की है. एक परिवार को 26 साल की अपनी एमए पास लड़की के लिए एक ऐसा दूल्हा चाहिए, जो वामपंथी विचारों का समर्थक यानी कम्युनिस्ट हो. दीप्तांज दासगुप्ता ने अपनी बहन की शादी के लिए यह विज्ञापन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) के अखबार गणशक्ति में यह विज्ञापन प्रकाशित करवाया है.

दासगुप्ता खुद को मार्क्सवाद का छात्र बताते हैं. साथ ही कहते हैं कि वे किसी पार्टी के सदस्य नहीं हैं. दीप्तांज का कहना है कि उनकी बहन चाहती है कि उसका दूल्हा वामपंथी विचारधारा से प्रेरित हो.

उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि वाम विचारधारा के लोग संकीर्ण नहीं होते. जीवन के हर क्षेत्र में उनकी रुचि होती है. वह उच्च चिंतन रखते हैं. हमारे घर का माहौल ऐसा ही है. ऐसे में अपनी बहन के लिए हम वैसा लड़का चाहते हैं, जो खुद को वामपंथी बताने में गर्व महसूस करता हो. खासकर ऐसे समय में, जब साम्यवाद को कोरी कल्पना माना जा रहा है.’

उन्होंने कहा कि वह और उनका परिवार चाहता है किबेटीजब विदा होकर ससुराल जाये, तो उसे वहां भी घर जैसा माहौल मिले.

अविश्वसनीय विज्ञापन

कोलकाता के प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर दिशा कर ने इस विज्ञापन को अविश्वसनीय करार दिया. कहा, ‘विज्ञापन देनेवाले ने ईमानदारी के साथ बोल्ड कदम उठाते हुए अपनी विचारधारा को सामने रखा, जिसमें उनका विश्वास झलकता है. हालांकि, बंगाली अब खुद को अंतरराष्ट्रीय कहने लगे हैं, लेकिन पारंपरिक रूप में जो विभाजित है, वह अभी भी है. मैंने खुद देखा है कि विभिन्न राजनीतिक विचारधारावाली शादी कितनी कड़वी हो जाती हैं. यही स्थिति ईस्ट बंगाल और पश्चिम बंगाल के निवासियों के बीच होनेवाली शादियों में भी होती है.’

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