कोलकाता: बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि महानगर में भी एक धोबी घाट है. बालीगंज सर्कुलर रोड के रिची रोड इलाके में सेंट लॉरेंस स्कूल के पीछे यह धोबी घाट स्थित है. इसे साउथ धोबी खाना ने नाम से जाना जाता है, लेकिन आपको अब यह जान कर हैरानी होगी कि महानगर का यह धोबी घाट इतिहास बनने की कगार पर पहुंच चुका है. अगर यही हालत रही तो वह दिन दूर नहीं जब यह धोबी घाट इतिहास बन जायेगा. उधर निगम समस्या के समाधान के लिए बोरिंग ट्यूबवेल लगाने की बात पर जोर दे रहा है, लेकिन यह व्यवस्था किसकी ओर से की जायेगी, यह निगम ने साफ नहीं किया है.
जल संकट से जूझ रहा है धोबी घाट : बता दें कि मुंबई के बाद साउथ धोबीखाना देश का सबसे बड़ा व पुराना धोबी घाट है. यहां कपड़े धोने के लिए 108 पैन हैं जहां धोबी बारी-बारी से कपड़ों की सफाई करते हैं.यह बिल्कुल मुंबई के लोगों की तरह दिखता है. यहां कोलकाता नगर निगम के टाला टैंक से जलापूर्ति की जाती है लेकिन इन दिनों धोबी घाट को जल संकट से होकर गुजरना पड़ रहा है. बता दें कि यहां प्रतिदिन कई टन कपड़ों की सफाई की जाती है. इस धोबी घाट में महानगर के विभिन्न रेस्तरां, होटल, गेस्ट हाउस के अलावा कोलकाता में और आसपास के सभी धोबी ने अपने कपड़े धोने के लिए के लिए यहां के धोबियों को आउटसोर्स कर रखा है. तड़के चार बजे से यहां कपड़े धोने का कार्य शुरू होता है, जो मध्यरात्रि तक चलता है, लेकिन पिछले करीब 10 वर्षों से इस धोबी घाट को पानी की समस्या से जूझना पड़ा रहा है. यहां कार्य करनेवाले धोबियों की शिकायत है कि कई बार इन्हें पीने तक का पानी नहीं मिलता है. पानी के अभाव में अब इस धोबी घाट में काम करने में परेशानी होे रही है.
दिन में दो बार मिलता है पानी : एक धोबी ने नाम न छापने की शर्त पर हमें बताया कि यहां निगम की ओर से दिन में दो बार ही पानी की आपूर्ति की जाती है. यहां सुबह 6.30-9.00 बजे तक पानी मिलता है, लेकिन सुबह 7 बजे के बाद पानी का प्रेशर बढ़ता है. वहीं दोपहर के बाद शाम के 4-6 बजे तक पानी की सप्लाई की जाती है, लेकिन शाम के वक्त है पानी का फ्लो बेहद कम होता है.
ब्रिटिश सरकार के शासन काल में बना था रिची रोड स्थित धोबी घाट
ब्रिटिश सरकार के शासन काल में कलकत्ता के देश की राजधानी होने के कारण ब्रिटिश सरकार यहां कई ऐसी विरासतें हमारे लिए छोड़ गयी है. बता दें कि साउथ धोबी खाना को 1902 में ब्रिटिश सरकार ने स्थापित किया था. तब कलकत्ता भारत की राजधानी हुआ करता था. ब्रिटिश सरकार ने लॉन्ड्री से संबंधित जरूरतों को पूरा करने के लिए के लिए साउथ धोबी खाने की स्थापना की थी और यह काफी दिलचस्प है कि ब्रिटिश युग में काम करनेवाले धोबियों के वंशज आज भी यहां काम कर रहे हैं. मशीनी युग में कोलाकात के साउथ धोबी खाना घाट को देख कर मन आश्चर्य से भर उठता है. कैसे इस तकनीक के दौर में धोबी घाट के श्रमिक इस परंपरा को जीवित रखते हुए उपनिवेशवाद की याद दिला रहे हैं. यहां कार्य करनेवाले लोगों ने आज भी अपनी विरासत को संरक्षित रखा है.
पेयजल से कपड़े को साफ किया जाता है. महानगर में पहले से ही पानी की समस्या है. ऐसे में यहां पानी बढ़ाने पर इसके आसपास के इलाके में पेयजल की समस्या हो सकती है. इस समस्या के समाधान के लिए निगम की ओर से यहां बोरिंग ट्यूबवेल लगाने के कहा गया था, लेकिन यहां कार्य करनेवाले धोबी इसके लिए तैयार नहीं हैं.
सुखदेव चक्रवर्ती, पार्षद, 69 नंबर वार्ड, कोलकाता नगर निगम
यह काफी पुरानी समस्या है. इसके समाधान के लिए निगम दौरा भी कर चुका है. महानगर में पहले से ही पानी की किल्लत है. ऐसे में यहां पानी की सप्लाई बढ़ाने से आम लोगों को पेयजल की समस्या से जूझना पड़ सकता है. धोबियों को कहा गया कि वे इस समस्या के समाधान के लिए बोरिंग ट्यूबेल की व्यवस्था करें.
बीके माइती, डायरेक्टर जनरल, जलापूर्ति विभाग, कोलकाता नगर निगम .