कतार में लगेंगे आज तो कृत्रिम अंग मिलेगा छह माह बाद

1978 में हुई थी सेंटर की स्थापना पूर्वी भारत के एकमात्र आर्टिफिशियल लिंब सेंटर में कर्मियोें का अभाव लोगों को नहीं मिल रहे हैं कृत्रिम अंग, बढ़ रही है वेटिंग लिस्ट फिलहाल 700 लोग हैं कतार में शिव कुमार राउत कोलकाता : महानगर के रिजनल आर्टिफिशियल लिंब फिटिंग सेंटर(आरएएलएफसी) की हालत बेहद खस्ता है. यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 15, 2017 9:04 AM
1978 में हुई थी सेंटर की स्थापना
पूर्वी भारत के एकमात्र आर्टिफिशियल लिंब सेंटर में कर्मियोें का अभाव
लोगों को नहीं मिल रहे हैं कृत्रिम अंग, बढ़ रही है वेटिंग लिस्ट
फिलहाल 700 लोग हैं कतार में
शिव कुमार राउत
कोलकाता : महानगर के रिजनल आर्टिफिशियल लिंब फिटिंग सेंटर(आरएएलएफसी) की हालत बेहद खस्ता है. यह पूर्वी भारत का एकमात्र लिं‍ब सेंटर है. यहां कर्मियों के अभाव में कृत्रिम अंग तैयार करने में विलंब हो रहा है. इसके चलते मरीजों की वेटिं‍ग लिस्ट बढ़ती जा रही है. लोगों को कृत्रिम अंग लेने के लिए छह से आठ महीने तक इंतजार करना पड़ रहा है. यहां से कृत्रिम अंग नि:शुल्क दिये जाते हैं.
700 ऑर्डर पेंडिंग : मुर्शिदाबाद की एक महिला सड़क हादसे में अपना एक पैर खो चुकी है. कृत्रिम पैर लगवाने के लिए वह अपने पति के साथ दिसंबर 2016 में एनआरएस आयी. बता दें कि पहले मरीज के अंग का नाप लिया जाता है. उसके 15 से 20 दिन बाद कृत्रिम अंग तैयार कर उसे दिया जाता है.
लेकिन महिला को अब तक कृत्रिम पैर नहीं मिला. वह बार-बार कोलकाता आ रही है, लेकिन उसे निराशा हाथ लग रही है. सेंटर के एक कर्मी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि फिलहाल करीब 700 ऑर्डर पेंडिंग पड़े हैं. टेक्नीशियन के अभाव में ऑर्डर की लिस्ट लंबी होती जा रही है. एक ऑर्डर मिलने के बाद कृत्रिम अंग तैयार करने में करीब 6 महीने लग रहे हैं. यहां आवश्यक कच्चा माल समेत अन्य उपकरणों की कमी नहीं है. लेकिन कर्मियों के अभाव में अंग तैयार करने में परेशानी हो रही है. उसने बताया कि यहां कार्यरत सभी कर्मियों‍ को अस्थायी तौर पर रखा गया, जिससे हमारा मनोबल टूट रहा है. इस कारण कृत्रिम अंगों का उत्पादन प्रभावित हो रहा है.
वाममोरचा के शासनकाल में महानगर के नीलरतन सरकार मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (एनआरएस) में वर्ष 1978 में इसकी स्थापना की गयी थी. 10 स्थायी कर्मियों के साथ सेंटर चालू हुआ. लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते इसकी दशा खराब होती गयी. सभी कर्मियों के सेवानिवृत्त होने के बाद 2012 में सेंटर बंद हो गया. वर्ष 2013 से 15 तक सेंटर के नवीनीकरण का काम चला. वर्ष 2015 में दोबारा इसे चालू किया गया और छह अस्थायी टेक्नीशियन नियुक्त किये गये, जो कृत्रिम अंग बनाते हैं.
अन्य राज्यों से भी आते हैं लोग
बता दें कि सरकारी स्तर पर पूर्वी भारत का एकमात्र लिंब सेंटर होने के कारण पश्चिम बंगाल के अलावा बिहार, ओडिशा समेत अन्य राज्यों से भी लोग कृत्रिम अंग लेने के लिए यहां आते हैं.
कृत्रिम अंग मिलने में देरी की बात बेबुनियाद है. यहां किसी तरह की समस्या नहीं है. मरीजों को तय समय पर ही कृत्रिम अंग मुहैया कराया जा रहा है.
डॉ नित्यानंद कर, विभागाध्यक्ष (आरएएलएफसी)

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